दफ्तर में व्यक्ति हर दिन अपना सबसे अधिक समय बिताता है। इस दौरान उसकी सहकर्मियों से दोस्ती भी होती है तो कुछ के साथ प्रतियोगी रिश्ता बन जाता है। कहीं आपको प्रोफेशनलिज्म दिखाना पड़ता है तो कहीं दफ्तर की पाॅलिटिक्स से बचना होता है। इसके अलावा सहकर्मियों और बाॅस से रिश्ता भी मधुर बनाकर रखना होता है। इस सब के बीच अपनी सीमाएं भी तय करनी होती हैं। ये वह सीमाएं होती हैं जो आपके समय, सम्मान, भावनाओं और काम की गुणवत्ता को सुरक्षित रखें, बिना खुद को अशिष्ट या अभिमानी दिखाएं।
Office Boundaries Tips: दफ्तर में चाहिए सम्मान तो अपनाएं ये टिप्स, "ना" कहने पर भी नहीं होगा कोई नाराज
Office Boundaries Tips आइए जानते हैं, कैसे लोग हर दिन दफ्तर की भीड़ में खुद को खोए बिना, ईमानदारी और संतुलन के साथ प्रोफेशनल बाउंड्री की एक मजबूत दीवार खड़ी कर सकते हैं।
सबसे पहले अपने आप से पूछें कि कौन-सी बातें मुझे परेशान करती हैं? कौन-सी बातें मेरे काम को डिस्टर्ब करती हैं। किन व्यवहारों से मेरी ऊर्जा खत्म होती है? या कौन सा अनुरोध में सच में पूरा कर सकता/सकती हूं। जब तक अपनी सीमाएं स्पष्ट नहीं होंगी, आप दूसरों से क्या उम्मीद रखेंगे? सीमाएं खुद के भीतर तय होती हैं, ऑफिस में सिर्फ लागू की जाती हैं।
सौम्य लेकिन स्पष्ट रहें
आपको न कहना आना चाहिए लेकिन सही तरीके से। हर “ना” शोर के साथ नहीं होना चाहिए, बल्कि कभी-कभी नरम, विनम्र और संतुलितना का असर ज़्यादा होता है। जैसे कोई अगर आपसे ऐसा काम करने को कहे, जो आपके लिए नहीं है तो आप का उत्तर हो सकता है, कि अभी मैं एक अतिआवश्यक कार्य कर रहा हूँ, इसे खत्म करके देखते हैं।”, “ये मेरे दायरे में नहीं आता, शायद वो (कोई अन्य)बेहतर गाइड कर पाएंगे।”, “मैं आपकी मदद करना चाहूंगी, पर इस समय मेरी डेडलाइन ड्यू है।” कहने का तरीका जितना शांत होगा, सामने वाला उतना ही समझेगा।
दफ्तर की दोस्ती रहे संतुलित
2025 में दो चीजें बहुत बढ़ीं हैं, एक अत्यधिक साझा करना और अत्यधिक भागीदारी। लेकिन निजी दुनिया में आपको अपना पर्सनल स्पेस चाहिए। दफ्तर के दोस्तों के साथ ओवर शेयरिंग और ओवर इंवाॅलवमेंट का संतुलन बनाए रखें।
दफ्तर में क्या न करें?
सीमाएं तय करने के लिए सबसे जरूरी है कि दफ्तर या सहकर्मियों के साथ कुछ काम न करें। जैसे बहुत निजी बातें शेयर करने से बचें। अपनी निजी योजनाएं और रिश्ते पर चर्चा न करें। हर बात पर अपनी सलाह न दें। दफ्तर के गाॅसिप से दूर रहें। थोड़ी सी दूरी अपने दफ्तर के जीवन को आसान बना सकती है।
काम की सीमाएं
ध्यान रखें आपकी जिम्मेदारियां आपकी हैं, दूसरों की नहीं। हमेशा सबका काम उठाना प्रोफेशनल दयालुता नहीं, आत्म उपेक्षा है। आप किस काम के लिए जिम्मेदार हैं, साफ रखें। एक्स्ट्रा काम लेने से पहले खुद को वर्कलोड का निरिक्षण कर लें। “मैं कोशिश करूँगा” की जगह “मैं नहीं ले पाऊँगा” कहना सीखें। हर काम में “बचाओ” मोड में न पड़ें। सम्मानजनक अस्वीकारना प्रोफेशनलिज्म का हिस्सा है।
समय की सीमा
हर मिनट की क़ीमत होती है। देर शाम की काॅल्स, रविवार को आने वाले मैसेज, लंच टाइम में दफ्तर का काम, ये सब धीरे धीरे आपकी जिंदगी को व्यस्त बना देते हैं। इसलिए समय सीमा भी सेट करें। दफ्तर के समय में स्पष्ट संवाद रखें। लंच के घंटे में काम न करें, बल्कि इसे ब्रेक तक ही सीमित रखें। दफ्तर खत्म होने के बाद आने वाले संदेशों का जवाब अगले दिन ही दें। क्या अर्जेंट है और क्या नहीं, इसकी कैटेगरी बनाएं। लोग आपके समय की कदर तब करेंगे जब आप खुद अपने वक्त की कीमत को समझेंगे।