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Indore Lok Sabha Result: इंदौर ने रचे तीन कीर्तिमान, नोटा और लालवानी को रिकॉर्ड वोट, सबसे बड़ी जीत भी यहीं की
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर
Published by: अर्जुन रिछारिया
Updated Tue, 04 Jun 2024 06:28 PM IST
सार
स्वच्छता में नंबर वन इंदौर ने लोकसभा चुनाव परिणाम में भी तिहरा रिकॉर्ड बनाया है। चुनाव के दौरान देशभर में चर्चा का केंद्र रहा इंदौर परिणाम आने के बाद भी छाया रहा। यहां नोटा ने रिकॉर्ड बनाया, शंकर लालवानी के नाम भी दो कीर्तिमान रहे।
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इंदौर में लोकसभा चुूनाव परिणाम में तीन रिकॉर्ड बने हैं।
- फोटो : अमर उजाला
लोकसभा चुनाव में इंदौर इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। पहले कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम के नामांकन वापस लेने की वजह से और फिर परिणाम के बाद तीन नए रिकॉर्ड बनाने की वजह से। परिणामों में इंदौर ने सबसे ज्यादा नोटा और सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बनाया है। तो वहीं किसी भाजपा प्रत्याशी को 12 लाख वोट मिलने का कीर्तिमान भी रचा गया। नोटा को 218674 वोट मिले हैं और भाजपा के प्रत्याशी शंकर लालवानी 1226751 वोटों के साथ 1175092 वोट के अंतर से जीते हैं।
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- फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर
लालवानी ने कहा कांग्रेस ने दुष्प्रचार किया
परिणाम आने के बाद शंकर लालवानी ने कहा कि कांग्रेस ने दुष्प्रचार किया जिसकी वजह से नोटा को इतने अधिक वोट मिले। कांग्रेस ने जिस तरह से चुनाव के दौरान लोगों से नोटा को वोट देने की अपील की उससे गलत संदेश गया।
इंजीनियरिंग के बाद राजनीति में गए थे लालवानी
शंकर लालवानी को उनके मिलनसार व्यक्तित्व के लिए पहचाना जाता है। वे विवादों से दूर रहना पसंद करते हैं और भाजपा के अधिकांश वरिष्ठ नेता उन्हें पसंद करते हैं। वे भाजपा की गुटबाजी से भी दूरी बनाकर रखते हैं। शंकर लालवानी का जन्म 16 अक्टूबर 1961 को इंदौर में हुआ था। उनके पिता जमनादास लालवानी अखंड भारत के विभाजन से पहले इंदौर आए थे। जमनादास लालवानी इंदौर आकर भी आरएसएस में सक्रिय थे। वे जनसंघ पार्टी में थे और सामाजिक कामों में सक्रिय रहते थे। वे कई वर्षों तक मध्य प्रदेश में सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। शंकर लालवानी की माताजी गोरी देवी लालवानी एक गृहिणी थीं। शंकर लालवानी ने मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास की, फिर मुंबई से बी-टेक की पढ़ाई की फिर इंदौर आकर व्यापार और कंसल्टेंसी में लग गए।
परिणाम आने के बाद शंकर लालवानी ने कहा कि कांग्रेस ने दुष्प्रचार किया जिसकी वजह से नोटा को इतने अधिक वोट मिले। कांग्रेस ने जिस तरह से चुनाव के दौरान लोगों से नोटा को वोट देने की अपील की उससे गलत संदेश गया।
इंजीनियरिंग के बाद राजनीति में गए थे लालवानी
शंकर लालवानी को उनके मिलनसार व्यक्तित्व के लिए पहचाना जाता है। वे विवादों से दूर रहना पसंद करते हैं और भाजपा के अधिकांश वरिष्ठ नेता उन्हें पसंद करते हैं। वे भाजपा की गुटबाजी से भी दूरी बनाकर रखते हैं। शंकर लालवानी का जन्म 16 अक्टूबर 1961 को इंदौर में हुआ था। उनके पिता जमनादास लालवानी अखंड भारत के विभाजन से पहले इंदौर आए थे। जमनादास लालवानी इंदौर आकर भी आरएसएस में सक्रिय थे। वे जनसंघ पार्टी में थे और सामाजिक कामों में सक्रिय रहते थे। वे कई वर्षों तक मध्य प्रदेश में सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। शंकर लालवानी की माताजी गोरी देवी लालवानी एक गृहिणी थीं। शंकर लालवानी ने मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास की, फिर मुंबई से बी-टेक की पढ़ाई की फिर इंदौर आकर व्यापार और कंसल्टेंसी में लग गए।
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- फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर
पार्षद से शुरुआत की और पिछले सांसद चुनाव में पांच लाख वोट से जीते थे
1994 से 1999 तक वे इंदौर नगर निगम में पार्षद रहे। इसके बाद 1999 से 2004 तक वे 5 वर्ष तक इंदौर नगर निगम के सभापति पद पर रहे। 2013 में इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बनाए गए। 2019 में जब भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया तो भारतीय जनता पार्टी करीब 5 लाख 47 हजार वोटों के ऐतिहासिक अंतर से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी से जीत हासिल की। सांसद बनने के बाद, वह लोकसभा में आवास और शहरी मामलों की स्थायी समिति, सदन की बैठक से सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति, संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय की सलाहकार समिति, सहकारिता विभाग सलाहकार समिति, उपभोक्ता मामले खाद्य और सार्वजनिक वितरण परामर्श समिति एवं एमएसएमई नेशनल बोर्ड के भी सदस्य हैं।
सिंधी राज्य की मांग से मुकरे
सांसद बनने के बाद शंकर लालवानी ने लोकसभा में सिंधी भाषा में अपनी बात रखते हुए सिंधी कला बोर्ड, सिंधी टीवी चैनल और अलग सिंधी प्रदेश की मांग पर सरकार को विचार करने के लिए कहा था। उनकी इस मांग के बाद देश में बड़ा बवाल मचा था। बाद में उन्होंने कहा कि मैंने उसी दिन स्पष्ट कर दिया था और बताया था कि मैंने कभी अलग सिंधी राज्य की मांग नहीं की। उसी दिन मैंने खंडन भी कर दिया था। उनकी इस मांग पर उन्हीं के समाज के लोग नाराज हो गए थे।
1994 से 1999 तक वे इंदौर नगर निगम में पार्षद रहे। इसके बाद 1999 से 2004 तक वे 5 वर्ष तक इंदौर नगर निगम के सभापति पद पर रहे। 2013 में इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बनाए गए। 2019 में जब भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया तो भारतीय जनता पार्टी करीब 5 लाख 47 हजार वोटों के ऐतिहासिक अंतर से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी से जीत हासिल की। सांसद बनने के बाद, वह लोकसभा में आवास और शहरी मामलों की स्थायी समिति, सदन की बैठक से सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति, संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय की सलाहकार समिति, सहकारिता विभाग सलाहकार समिति, उपभोक्ता मामले खाद्य और सार्वजनिक वितरण परामर्श समिति एवं एमएसएमई नेशनल बोर्ड के भी सदस्य हैं।
सिंधी राज्य की मांग से मुकरे
सांसद बनने के बाद शंकर लालवानी ने लोकसभा में सिंधी भाषा में अपनी बात रखते हुए सिंधी कला बोर्ड, सिंधी टीवी चैनल और अलग सिंधी प्रदेश की मांग पर सरकार को विचार करने के लिए कहा था। उनकी इस मांग के बाद देश में बड़ा बवाल मचा था। बाद में उन्होंने कहा कि मैंने उसी दिन स्पष्ट कर दिया था और बताया था कि मैंने कभी अलग सिंधी राज्य की मांग नहीं की। उसी दिन मैंने खंडन भी कर दिया था। उनकी इस मांग पर उन्हीं के समाज के लोग नाराज हो गए थे।

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