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Banswara News: दीपावली पर वागड़ की अनोखी परंपरा ‘मेरियू’, नवदंपतियों के सुखद जीवन के लिए करते हैं प्रार्थना

न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, बांसवाड़ा Published by: प्रिया वर्मा Updated Sat, 18 Oct 2025 09:33 AM IST
सार

राजस्थान के वागड़ अंचल में दीपावली का पर्व “मेरियू” परंपरा के बिना अधूरा है। नवदंपती के सुख, समरसता और सामाजिक एकजुटता की प्रतीक यह परंपरा दीपावली की शाम को पूरे रीति-रिवाज से निभाई जाती है।

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Diwali 2025 Banswara Unique Diwali Tradition Meriyu in Vagad Region Celebrated for Newlyweds Prosperous Life
वागड़ की अनूठी परंपरा मेरियू - फोटो : अमर उजाला

दीपावली पर देश-प्रदेश में कई अनूठी परंपराएं हैं, जो इस त्योहार के उत्साह को बहुगुणित करती हैं। राजस्थान के दक्षिणांचल में मध्यप्रदेश और गुजरात की संस्कृति को समाहित किए वागड़ अंचल में मेरियू ऐसी ही एक अनूठी रीत है, जिसका निर्वहन नवदंपती के सुखद जीवन की कामना के लिए किया जाता है।

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मेरियू की परंपरा निभाती महिलाएं - फोटो : सोशल मीडिया

अंचल में सामाजिक एकजुटता, समरसता और नवदंपती के सुखद जीवन की कामना का भाव लिए यह परंपरा दीपावली और इसके अगले दिन निभाई जाती है, जिसमें नवविवाहित दूल्हा अपने परिजनों और मित्रों संग दुल्हन के घर पहुंचता है। स्वागत-सत्कार के बाद संध्या काल में मेरियू रस्म निभाई जाती है, इसमें मिट्टी और गन्ने से बनाए मेरियू में दुल्हन के घर की महिलाएं लोकगीत गाते हुए आती हैं। घर की चौखट पर खड़े दूल्हा-दुल्हन के हाथ में पकड़े मेरियू में बाती प्रज्वलित कर तेल डालती हैं। इसके साथ ही आल दिवारी, काल दिवारी, पमणै दाड़ै मेरियू,... गीत गाती हैं। दूल्हे के साथ आए परिजन व मित्र आतिशबाजी करते हैं। परिवार के लोग नवदंपती को आशीर्वाद व उपहार देते हैं। इसके बाद सभी आगंतुकों को मिष्ठान युक्त स्नेह भोज कराया जाता है। 

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मेरियू प्रज्वलित करके जाते बुजुर्ग - फोटो : अमर उजाला
ऐसे बनता है मेरियू
मेरियू दीपक का ही एक रूप होता है। इसके निर्माण में गन्ने के एक-डेढ़ फीट के टुकड़े के ऊपरी भाग को गाय के गोबर से लीप कर मशाल सा स्वरूप दिया जाता है। इसमें रुई की बड़ी बत्तियां भी लगाई जाती है। अच्छी तरह सुखाने के बाद मेरियू तैयार हो जाता है। आयोजन के दिन रूई की बत्तियों को तेल से भिगोने के बाद प्रज्वलित करते हैं। विगत कुछ समय से मिट्टी से बने मेरियू का भी उपयोग होने लगा है।
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देवों को भी अर्पित किया जाता है मेरियू - फोटो : अमर उजाला
देवों को भी अर्पित
मेरियू दीपावली पर देवों को भी अर्पित किया जाता है। बड़े-बुजुर्गों के सान्निध्य में मेरियू प्रज्वलित कर घर के मंदिर में प्रतिष्ठापित देवी-देवताओं की प्रतिमा या तस्वीर के सामने घुमाया जाता है। वहीं सामुदायिक एकजुटता और लोक सांस्कृतिक परंपराओं को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न समाजों के प्रतिनिधि मंदिरों में मेरियू परंपरा का निर्वहन करते हैं। 
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बच्चे को भी रहता है मेरियू का इंतजार - फोटो : अमर उजाला
बच्चों में उत्साह
दीपावली पर मेरियू का सबसे अधिक उत्साह बच्चों में दृष्टिगत होता है। बच्चों का समूह "आल दिवारी, काल दिवारी, पमणै दाड़ै मेरियू, मेरियू मांगे तेल, गो माता की जय, काली, गाय, सफेद गाय, गो माता की जय... का समवेत स्वरों में गान हर घर के बाहर जाकर करते हैं। घर के लोग मेरियू में तेल डालते हैं और बच्चों को उपहार स्वरूप राशि देते हैं। उससे बच्चों के चेहरे खिल उठते हैं।
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