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Rajasthan News: उपेक्षा की मार झेल रहा राजस्थान का मिनी खजुराहो, शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है भांड देवरा मंदिर

Ashish Kulshrestha आशीष कुलश्रेष्ठ
Updated Tue, 04 Nov 2025 11:55 AM IST
सार

मिनी खजुराहो कहा जाने वाला रामगढ़ पहाड़ियों में बसा भांड देवरा मंदिर आज अपनी भव्यता के बावजूद उपेक्षा का शिकार है। 10वीं शताब्दी में बना भगवान शिव का यह मंदिर अपनी अनोखी शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है।

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Rajasthan Mini Khajuraho Bhand Devara Temple in Baran History Beliefs Myth and Facts in Hindi
राजस्थान का मिनी खजुराहो भांड देवरा मंदिर - फोटो : अमर उजाला

राजस्थान के बारां जिले से लगभग 36 किलोमीटर दूर रामगढ़ की पहाड़ियों के बीच स्थित भांड देवरा मंदिर, जिसे मिनी खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है, आज अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के बावजूद जर्जर हालत में है। भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है, जो बिना रेत, चूना या सीमेंट के केवल पत्थरों को जोड़कर बनाया गया था।

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Rajasthan Mini Khajuraho Bhand Devara Temple in Baran History Beliefs Myth and Facts in Hindi
स्थापत्य कला का सुंदर नमूना - फोटो : अमर उजाला
स्थानीय निवासी चंद्र स्वामी के अनुसार मंदिर की स्थापना 942 ईस्वी में राजा मलय वर्मन ने की थी। उनका कहना है कि मध्यप्रदेश में खजुराहो के मंदिरों की स्थापना 1025 ईस्वी में हुई थी, इसलिए वास्तुशैली की दृष्टि से उन्हें रामगढ़ शैली का कहा जाना चाहिए। कुछ स्थानीय निवासियों का यह भी मानना है कि मंदिर की स्थापना लगभग 250 वर्ष पहले ही की गई थी।
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खूबसूरत शिल्पकला - फोटो : अमर उजाला
भांड देवरा मंदिर भगवान शिव परिवार को समर्पित है और इसमें तीन तल हुआ करते थे। कहा जाता है कि इस मंदिर ने कई विदेशी आक्रमणों के प्रहार झेले, जिनके निशान आज भी यहां देखे जा सकते हैं। राजा मलय वर्मन ने मंदिर निर्माण के लिए रामगढ़ की पहाड़ियों को इसलिए चुना था क्योंकि करोड़ों वर्ष पूर्व यहां उल्का पिंड गिरने से एक क्रेटर बना था, जिसे अब रामगढ़ क्रेटर के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
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अपनी ऐतिहासिक पहचान पाने की आस में - फोटो : अमर उजाला
स्थानीय लोगों के अनुसार करीब 25 वर्ष पहले मंदिर से भगवान शिव का प्राचीन विग्रह चोरी हो गया था। बताया जाता है कि वह शिवलिंग बाद में मथुरा संग्रहालय में देखा गया। वर्ष 2013 से पहले मंदिर के संरक्षण के लिए करीब 10 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे, लेकिन बाद में वह राशि रद्द हो गई।
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इस मंदिर ने कई विदेशी आक्रमणों के प्रहार झेले - फोटो : अमर उजाला
आज यह ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षा का शिकार होकर धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। वह मंदिर, जिसने विदेशी आक्रांताओं का सामना किया, अब अपने ही लोगों की उदासीनता झेल रहा है।
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