Chaturmas Mein Kya Daan Karein: हिंदू धर्म में चतुर्मास की शुरुआत हर साल आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी से होती है, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है, क्योंकि इसे धार्मिक दृष्टि से शुभ नहीं माना जाता। चतुर्मास को साधना, तप और संयम का समय माना गया है।
Chaturmas 2025: चातुर्मास में कौन-कौन से काम कर सकते हैं? जानिए इससे जुड़े नियम
Chaturmas Dos and Dont: देवशयनी एकादशी से चतुर्मास की शुरुआत होती है, जिसमें कई मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। यदि आप इन महीनों में कुछ विशेष कार्य करना चाहते हैं, तो शास्त्रीय नियमों और सावधानियों का पालन करना ज़रूरी है, नहीं तो जीवन में बाधाएं आ सकती हैं।
चातुर्मास में कार्य ये करें
- चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु, शिव जी और अन्य देवी-देवताओं की आराधना विशेष फल देती है। आप नियमित रूप से मंत्र जाप, कथा-श्रवण और पूजा कर सकते हैं। यह समय भगवान की कृपा पाने के लिए आदर्श माना जाता है।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में तीर्थ स्थलों की यात्रा करना और पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ होता है। इससे पापों का क्षय होता है और आत्मा की शुद्धि मानी जाती है।
- घर में या मंदिरों में हवन-पूजन जैसे कर्मकांड करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह समय यज्ञ आदि के लिए भी अनुकूल है।
- जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, दवाइयां या धन देना अत्यंत पुण्यकारी होता है। भोजन कराना या अनाज दान करना विशेष रूप से शुभ माना गया है।
- तुलसी, पीपल, आंवला जैसे धार्मिक और औषधीय पौधे इस अवधि में लगाने से शुभ फल मिलता है। इन्हें लगाने से पर्यावरण के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।
- भगवद गीता, रामायण, भागवत, पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन इस समय अत्यधिक लाभकारी होता है। इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है और जीवन की दिशा स्पष्ट होती है।
- आत्म-शुद्धि और मानसिक शांति के लिए ध्यान और प्राणायाम करें। यह मन को स्थिर करता है और आत्मिक जागरूकता को बढ़ाता है।
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
- विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नव व्यापार की शुरुआत जैसे शुभ कार्य इस समय न करें। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु के योगनिद्रा में होने के कारण ये कार्य फलदायक नहीं होते।
- इस दौरान प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा और अधिक मसालेदार भोजन से परहेज करें। पत्तेदार सब्जियां और दही का त्याग भी कई लोग करते हैं।
- कई भक्त इस समय एक समय भोजन या फलाहार करते हैं। इससे आत्मसंयम और मन की शुद्धता बढ़ती है।
- इस अवधि में इंद्रियों पर संयम रखें। वाणी, आचरण और सोच में भी पवित्रता और विनम्रता बनाए रखें। गुस्से, लालच, मोह से बचें।
- भोग-विलास, प्रदर्शन या फिजूलखर्ची से बचें। जितना संभव हो, जीवनशैली को सादा और शुद्ध बनाएं।
- यदि आप किसी गुरु या आध्यात्मिक शिक्षक के शिष्य हैं, तो इस दौरान उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करें। यह समय आत्मिक रूप से जुड़ने का होता है।
चातुर्मास का महत्व
हिंदू धर्म में चातुर्मास का समय विशेष रूप से पवित्र और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त माना जाता है। यह चार महीने आत्मचिंतन, तपस्या, और आत्म-संयम के होते हैं। जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, तब संसार के संचालन की जिम्मेदारी भगवान शिव संभालते हैं। ऐसे में यह समय सिर्फ बाहरी कर्मकांडों का नहीं, बल्कि आंतरिक जागरण और स्वयं को सुधारने का भी है।
इस अवधि में व्यक्ति को अपनी दिनचर्या को सात्विक बनाने का प्रयास करना चाहिए। रामायण, श्रीमद्भागवत गीता, विष्णु पुराण और अन्य धर्मग्रंथों का नियमित पाठ न सिर्फ ज्ञान देता है, बल्कि मन को शुद्ध और एकाग्र भी करता है। साथ ही, सुबह-संध्या का समय ध्यान, जप और शिव या विष्णु की पूजा के लिए समर्पित करें। यह साधना काल है, जिसमें जितना अधिक आप अपने भीतर उतरेंगे, उतनी ही गहराई से शांति और संतुलन अनुभव करेंगे।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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