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Devshayani Ekadashi 2025: शुभ योग में देवशयनी एकादशी आज, जानें महत्व और उपाय

ज्योतिषाचार्य पं.मनोज कुमार द्विवेदी Published by: मेघा कुमारी Updated Sun, 06 Jul 2025 05:19 AM IST
सार

Devshayani Ekadashi 2025: भगवान विष्णु को पंचदेवों में सर्वश्रेष्ठ और विशेष माना गया है। मांगलिक कार्य की शुरुआत पंचदेव पूजा से ही होती है। भगवान श्री हरि विष्णु समस्त जगत के पालनकर्ता हैं। सृष्टि के संचालन का भार इन्हीं पर हैं। इसलिए हर शुभ कार्य में विष्णु जी की पूजा करने का प्रावधान है। 
 

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देवशयनी एकादशी से सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु करीब 4 महीने तक योग निद्रा में रहते हैं। - फोटो : Adobe Stock

Devshayani Ekadashi 2025: पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 5 जुलाई शनिवार को शाम 7 बजे शुरू हो चुकी है। वहीं इसका समापन 6 जुलाई को रात 09 बजकर 14 मिनट पर होगा। ऐसे में इस वर्ष देवशयनी एकादशी 6 जुलाई रविवार के दिन मनाई जा रही है। ज्योतिषाचार्य पं.मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि देवशयनी एकादशी से सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु करीब 4 महीने तक योग निद्रा में रहते हैं।

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देवउठनी एकादशी से विष्णु जी के जाग्रत होने के बाद ही मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है। - फोटो : Adobe Stock

आखिर क्यों चातुर्मास में लगता है मांगलिक कार्यों पर विराम ?
भगवान विष्णु को पंचदेवों में सर्वश्रेष्ठ और विशेष माना गया है। मांगलिक कार्य की शुरुआत पंचदेव पूजा से ही होती है। भगवान श्री हरि विष्णु समस्त जगत के पालनकर्ता हैं। सृष्टि के संचालन का भार इन्हीं पर हैं। इसलिए हर शुभ कार्य में विष्णु जी की पूजा करने का प्रावधान है। देवउठनी एकादशी से विष्णु जी के जाग्रत होने के बाद ही मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है।
 

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चातुर्मास में भगवान विष्णु के विश्राम पर चले जाने के कारण विवाह व शुभ कार्य को इसलिए वर्जित माना जाता है, क्योंकि वे हमारे शुभ कार्य में उपस्थित नहीं हो पाते हैं। - फोटो : Adobe Stock

चातुर्मास में भगवान विष्णु के विश्राम पर चले जाने के कारण विवाह व शुभ कार्य को इसलिए वर्जित माना जाता है, क्योंकि वे हमारे शुभ कार्य में उपस्थित नहीं हो पाते हैं। इस वजह से देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक विवाह व मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त नहीं रहते हैं।

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देवशयनी एकादशी - फोटो : Adobe Stock

भगवान श्री नारायण की प्रिय हरिशयनी एकादशी या फिर कहें देवशयनी एकादशी से सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत आदि पर अगले चार मास के लिए विराम लग जाएगा। इसी दिन से सन्यासी लोगों का चातुर्मास्य व्रत आरम्भ हो जाता है। 

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ज्योतिषाचार्य पं. मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि धार्मिक दृष्टि से ये चार महीने भगवान विष्णु के निद्राकाल माने जाते हैं। - फोटो : Adobe Stock

देवशयनी एकादशी पौराणिक कथा
ज्योतिषाचार्य पं. मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि धार्मिक दृष्टि से ये चार महीने भगवान विष्णु के निद्राकाल माने जाते हैं। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इस दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है, जल की मात्रा अधिक हो जाती है, वातावरण में अनेक जीव-जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं। इसलिए साधु-संत, तपस्वी इस काल में एक ही स्थान पर रहकर तप, साधना, स्वाध्याय व प्रवचन आदि करते हैं। इन दिनों केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है, क्योंकि इन महीनों में भूमण्डल के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर वास करते हैं।

गरुड़ध्वज जगन्नाथ के शयन करने पर विवाह, यज्ञोपवीत, संस्कार, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गोदान, गृहप्रवेश आदि सभी शुभ कार्य चार्तुमास में त्याज्य हैं। इसका कारण यह है कि जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि से तीन पग भूमि मांगी, तब दो पग में पृथ्वी और स्वर्ग को श्री हरि ने नाप दिया और जब तीसरा पग रखने लगे तब बलि ने अपना सिर आगे रख दिया।

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