Pradosh Vrat October Date 2024: प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। ये व्रत भगवान शिव की पूजा को समर्पित है। इस दिन शिव परिवार की आराधना करने से दाम्पत्य जीवन बेहतर होता है। साथ ही धन संपत्ति की प्राप्ति के योग बनते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि इस दिन सच्चे भाव से उपवास किया जाए, तो भोलेनाथ सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। पंचांग के अनुसार अक्तूबर में ये व्रत 15 तारीख को रखा जाएगा। इस दिन वृद्धि योग और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र बन रहा है। साथ ही चन्द्रमा मीन राशि में रहेंगे। ऐसे में कुछ चीजों का दान करने से जातक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं। आइए इनके बारे में जान लेते हैं।
October Pradosh Vrat 2024: अक्तूबर में प्रदोष व्रत कब ? जानें तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत में पूजा के लिए मुहूर्त 15 अक्तूबर शाम 05 बजकर 38 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 13 मिनट तक है। इस दौरान आप भगवान शिव की आराधना कर सकते हैं।
इन चीजों का करें दान
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत पर गौशाला में हरी सब्जियों का दान करना चाहिए। इससे जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
- इस दौरान महिलाएं विवाहित महिलाओं को हरे रंग की चूड़ियां का दान करें। इससे वैवाहिक जीवन में खुशियां बनी रहती हैं।
- प्रदोष व्रत के दिन दूध, दही, रसगुल्ले का दान करने से जातक को शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है।
- आप चाहें, तो फलों का दान भी कर सकते हैं।
पूजा विधि
प्रदोष व्रत के दिन मुहूर्त के अनुसार पूजा स्थल पर सभी सामग्रियों को एकत्रित कर लें। इसके बाद एक साफ चौकी लगाकर उसपर वस्त्र बिछाएं। अब शिव-पार्वती की मूर्ति को स्थापित करें। फिर शिवलिंग पर शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक करें। इसके बाद धीरे-धीरे महादेव को फूल, बेलपत्र और भांग अर्पित करते जाएं। अब दीया और धूप बत्ती जलाएं। महादेव के मंत्रों का जाप करें। इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें। अंत में आरती करते हुए जाने अनजाने में हुई गलतियों की क्षमा मांगे।
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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