Muharram 2025 Date: इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम महीने से होती है, जिसे सबसे पाक महीनों में गिना जाता है। इस माह की खास बात यह है कि इसे सब्र, कुर्बानी और सच्चाई की मिसाल के रूप में याद किया जाता है। इस महीने में रोजा रखने का भी खास महत्व है। माना जाता है कि रमज़ान के बाद सबसे पुण्य फल मुहर्रम के रोज़े का ही होता है।
Muharram 2025: 6 या 7 जुलाई कब है मुहर्रम? जानें चांद के अनुसार यौमे-ए-अशूरा की सही तारीख
Youm E Ashura 2025 Date India: मुहर्रम इस्लामी साल का पहला और सबसे पाक महीना माना जाता है, जिसे सब्र और कुर्बानी की मिसाल के तौर पर याद किया जाता है। इस साल अशूरा की तारीख को लेकर भ्रम है, लेकिन चांद के मुताबिक भारत में यह 6 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा।
कब है मुहर्रम 2025?
इस्लामी कैलेंडर चंद्र चक्र पर आधारित होता है, जिसमें हर नया महीना चांद दिखने के साथ शुरू होता है। इसी परंपरा के अनुसार, भारत में 26 जून 2025 की शाम को चांद दिखने के बाद, मुहर्रम का पाक महीना 27 जून शुक्रवार से शुरू हुआ। मुहर्रम का दसवां दिन यानी ‘यौमे-ए-अशूरा’ बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, जो इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। ऐसे में इस बार अशूरा 6 जुलाई 2025 (रविवार) को मनाया जाएगा। यह दिन सब्र, बलिदान और इंसाफ की भावना का प्रतीक है, जो हर साल दुनिया भर के मुसलमानों को इंसानियत की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।
कब है अशूरा 2025?
मुहर्रम महीने का 10वां दिन ‘यौमे-ए-अशूरा’ के रूप में मनाया जाता है, जिसे इस्लाम धर्म में बेहद पाक और अहम दिन माना गया है। इसी दिन कर्बला की ज़मीन पर इमाम हुसैन ने अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। वे पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे थे, और उनकी यह शहादत आज भी सब्र, इंसाफ और बलिदान की सबसे बड़ी मिसाल मानी जाती है। अशूरा की तारीख हर साल मुहर्रम महीने के चांद के दीदार पर निर्भर करती है, जो अलग-अलग स्थानों पर थोड़ा अलग हो सकती है। भारत में इस वर्ष अशूरा 6 जुलाई 2025 (रविवार) को मनाया जाएगा। यह दिन सिर्फ एक शोक का नहीं, बल्कि उस सत्य और हक के लिए खड़े होने की याद भी है, जिसे इमाम हुसैन ने अपने कर्म और कुर्बानी से अमर कर दिया।।
यौमे-ए-अशुरा कर्बला में क्यों मनाया जाता?
अशूरा का दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि सच और इंसाफ के लिए दी गई सबसे बड़ी कुर्बानी की याद है। इस दिन इमाम हुसैन और उनके वफादार साथियों ने यज़ीद के जुल्मों का सामना करते हुए शहादत प्राप्त की थी। वे झुके नहीं, बिके नहीं बल्कि सच्चाई के लिए आखिरी सांस तक डटे रहे। इराक की राजधानी बगदाद से करीब 100 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कस्बा है कर्बला, जो आज भी उस दर्दनाक इतिहास की गवाही देता है। यही वो ज़मीन है जहां इमाम हुसैन और उनके साथियों को बेरहमी से शहीद किया गया। उसी कर्बला की याद में आज दुनिया के हर हिस्से में ‘कर्बला’ नाम की जगहें बनाई गई हैं मातम, ताजिए और शोक सभाएं इसी के प्रतीक हैं। मुहर्रम की दसवीं तारीख, यानी अशूरा, को हर साल ताजिए निकाले जाते हैं, जिन्हें बाद में दफनाया जाता है। यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि उस पीड़ा और संघर्ष की अभिव्यक्ति है जो यज़ीद की सत्ता के खिलाफ खड़े होकर इमाम हुसैन ने झेली। आज भी, जब ये दिन आता है, पूरी दुनिया के मुसलमान गहरे शोक में डूब जाते हैं, और इमाम हुसैन की उस महान कुर्बानी को याद कर, अपने ईमान और इंसानियत को फिर से जाग्रत करते हैं।
मुहर्रम में रखते हैं रोजा
मुहर्रम के महीने में रोज़ा रखने की परंपरा भी बेहद अहम मानी जाती है, लेकिन इसे लेकर शिया और सुन्नी समुदायों की मान्यताएं थोड़ी अलग होती हैं। सुन्नी समुदाय के लोग आमतौर पर मुहर्रम की 9वीं और 10वीं तारीख को रोज़ा रखते हैं। उनका मानना है कि यह दिन पुण्य और अल्लाह की रहमत पाने के लिए बहुत खास होता है। वहीं दूसरी ओर, शिया समुदाय के लोग मुहर्रम की 1 से 9 तारीख तक रोज़ा रखते हैं, लेकिन 10वीं तारीख यानी यौमे-ए-अशूरा को रोज़ा नहीं रखते। उनका मानना है कि इस दिन इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, और इसलिए इस दिन को शोक और मातम का दिन माना जाता है, न कि उपवास या उत्सव का। इस दिन शिया समुदाय के लोग मातम करते हैं, जुलूस निकालते हैं, ताजिए उठाते हैं और इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करते हुए ग़म में शरीक होते हैं। यह दिन उनके लिए सब्र, बलिदान और सच्चाई की राह पर चलने की प्रेरणा है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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