आज कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। आज के दिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत किया जाता है और चांद देखकर व्रत का पारण किया जाता है। इस बार करवा चौथ का पर्व रविवार को पड़ रहा है, जो कि बेहद शुभ संयोग लेकर आया है। करवाचौथ के इस व्रत को करक चतुर्थी, दशरथ चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा चौथ का यह व्रत तीज के बाद सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है. करवा चौथ के व्रत में अन्न और जल का त्याग किया जाता है, इसीलिए करवा चौथ के व्रत को निर्जला व्रत भी कहा जाता है। आज के दिन यानि करवाचौथ का सुहागिन स्त्रियों को वर्ष भर इंतजार रहता है। आज करवाचौथ के दिन सुहागिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं, पूजा करते समय करवा चौथ व्रत की कथा सुनने के बाद और फिर चंद्रमा के दर्शन करने के उपरांत छलनी से अपनी पति का चेहरा देखती हैं और फिर इस व्रत का पारण करती हैं।
Karwa Chauth 2021:करवाचौथ पर बन रहा है विशेष योग, जानिये पूजा विधि
पंचांग के अनुसार 24 अक्टूबर, रविवार को कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुथी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा। इस चतुर्थी की तिथि को संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश जी को समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश जी की भी विशेष पूजा की जाती है।
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: 24 अक्टूबर प्रातः 3 बजकर 2 मिनट से शुरू
चतुर्थी तिथि समाप्त: 25 अक्टूबर सुबह 5 बजकर 43 मिनट तक
चन्द्रोदय का समय : सायं 7 बजकर 51 मिनट पर
करवाचौथ के दिन लगने वाले विशेष योग
करवाचौथ को कुछ विशेष योग लग रहे हैं। 24 अक्टूबर को रात 11 बजकर 35 मिनट तक वरियान योग रहेगा। वरीयान योग मंगलदायक कार्यों में सफलता प्रदान करता है। इसके साथ ही देर रात 1 बजकर 2 मिनट तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा।
- करवा चौथ के दिन पूजा के लिए घर के उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को अच्छे से साफ करके लकड़ी का पाटा बिछाकर उस पर शिवजी, मां गौरी और गणेश जी की तस्वीर या चित्र रखें। इस प्रकार देवी- देवताओं की स्थापना करके उत्तर दिशा में एक जल से भरा कलश स्थापित करें और उसमें थोड़े-से अक्षत डालें।
- अब उस पर रोली, अक्षत का टीका लगाएं और और कलश की गर्दन पर मौली बांधें। कुछ लोग कलश के आगे मिट्टी से बनी गौरी जी या सुपारी पर मौली लपेटकर भी रखते हैं। इस प्रकार कलश की स्थापना के बाद मां गौरी को सिंदूर चढ़ाएं।
- चार पूड़ी और चार लड्डू तीन अलग-अलग जगह लेकर, एक हिस्से को पानी वाले कलश के ऊपर रख दें, दूसरे हिस्से को मिट्टी या चीनी के करवे पर रखें और तीसरे हिस्से को पूजा के समय महिलाएं अपने साड़ी या चुनरी के पल्ले में बांध लें।अब देवी मां के सामने घी का दीपक जलाएं और उनकी कथा पढ़ें।
- इस प्रकार पूजा के बाद अपनी साड़ी के पल्ले में रखे प्रसाद और करवे पर रखे प्रसाद को अपने बेटे या अपने पति को खिला दें और कलश पर रखे प्रसाद को गाय को खिला दें।
- बाकी पानी से भरे कलश को पूजा स्थल पर ही रखा रहने दें। रात को चन्द्रोदय होने पर इसी कलश के जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और घर में जो कुछ भी बना हो, उसका भोग लगाएं। इसके बाद व्रत का पारण करें।

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