जिसने भी इस पृथ्वी जन्म लिया और ईश्वर में विश्वास करता है तो वह ईश्वर की भक्ति अवश्य करता है। पृथ्वी पर जन्म लेने वाले ज्यादातर लोग भगवान में आस्था रखते हैं और उनकी भक्ति करते हैं, परंतु हर मनुष्य का भक्ति करने का तरीका भिन्न होता है। सभी अपनी तरह से ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वंय इस बारे में बताते हुए कहा है कि चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन। आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।। इस तरह से भगवान कृष्ण ने चार प्रकार के भक्तो के बारे में बताया है। ये चार प्रकार के भक्त होते हैं ''आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी''
भगवान कृष्ण ने बताए हैं ये चार प्रकार के भक्त, जानिए कौन सी श्रेणी में आते हैं आप
अर्थार्थी भक्त
जो लोग ईश्वर को केवल लोभ यानि धन-वैभव, सुख-समृद्धि आदि के लिए ही ईश्वर का स्मरण करते हैं। ऐसे लोगों के लिए भगवान से ज्यादा भौतिक सुख सर्वोपरि होता है, इस तरह से भक्तों को (अर्थार्थी) निम्न कोटि के भक्त की श्रेणी में रखा जाता है।
आर्त भक्त
कुछ लोग भगवान को केवल तभी याद करते हैं जब उन्हें किसी प्रकार का कष्ट हो, वे दुख और समस्या से घिरे हुए हो। यानि जो भक्त समस्या के समय ईश्वर को याद करते हैं वे (आर्त) भक्त की श्रेणी में आते हैं। ये निम्नकोटि से थोड़े श्रेष्ठ होते हैं।
जिज्ञासु भक्त
जिज्ञासु अर्थात जिसमें कुछ जानने की जिज्ञासा हो कहने का अर्थ यह है कि जो लोग भगवान को अपनी निजी समस्या के लिए याद न करें संसार में फैले हुए अनित्य को देखकर ईश्वर की खोज में लगते हैं और ईश्वर की भक्ति करते हैं।
ज्ञानी भक्त
ऐसा भक्त जो केवल ईश्वर की चाह रखता है। वह केवल ईश्वर में लीन रहना चाहता है, वह भगवान के किसी भी प्रकार की कोई इच्छा नहीं रखता है। ईश्वर ऐसे भक्तों पर हमेशा अपनी कृपा रखते हैं और हमेशा अपने भक्त की रक्षा करते हैं। ऐसे भक्त ईश्वर की आत्मा होते हैं।

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