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Kharmas 2024: खरमास में क्यों थम जाती है शहनाइयों की गूंज, जानिए खरमास के नियम और पौराणिक कथा
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: शिखर बरनवाल
Updated Mon, 09 Dec 2024 03:44 PM IST
सार
हिंदू धर्म में खरमास को अत्यधिक महत्वपूर्ण समय माना गया है। खरमास इस साल 15 दिसंबर, रविवार से शुरू होने जा रहा है और 14 जनवरी, 2025 को समाप्त होगा। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्यक्रम करने से बचना चाहिए।
Kharmas 2024 Start and End Date: हिंदू धर्म में खरमास को एक विशेष महत्व दिया जाता है। यह साल में एक बार आने वाला ऐसा समय होता है जब सूर्य देव धनु या मीन राशि में प्रवेश करते हैं। इस अवधि को खरमास कहते हैं। खरमास इस साल 15 दिसंबर, रविवार से शुरू होने जा रहा है और 14 जनवरी, 2025 को समाप्त होगा। खरमास के दौरान सूर्य की गति धीमी हो जाती है और इस कारण शुभ कार्यों के लिए यह समय प्रतिकूल माना जाता। इस दौरान शादी-विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य मांगलिक कार्य करने से बचा जाता है। मान्यता है कि खरमास में किए गए शुभ कार्य सफल नहीं होते हैं। इसलिए, इस अवधि में लोग धार्मिक कार्यों, पूजा-पाठ और दान आदि पर अधिक ध्यान देते हैं।
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खरमास 2024
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खरमास में क्यों नहीं होते मांगलिक कार्य?
खरमास शब्द में खर का अर्थ होता है गधा(गर्दभ) और मास का अर्थ होता है महीना। खरमास का शाब्दिक अर्थ है 'गर्दभ का महीना'। शास्त्रों के अनुसार, जब सूर्य देव बृहस्पति ग्रह की राशियों, धनु या मीन में प्रवेश करते हैं, तो वे अपने गुरु की सेवा में लग जाते हैं। इस अवधि के दौरान सूर्य देव की ऊर्जा कमजोर पड़ जाती है।
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सूर्य की कमजोरी के कारण बृहस्पति ग्रह का प्रभाव भी कम हो जाता है। शुभ कार्यों के लिए सूर्य और बृहस्पति दोनों ग्रहों का मजबूत होना आवश्यक माना जाता है। इन दोनों ग्रहों की कमजोरी के कारण मांगलिक कार्य सफल नहीं होते हैं और यही वजह है कि खरमास में मांगलिक कार्य करना अशुभ माना जाता है।
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खरमास के नियम
खरमास को आमतौर पर अशुभ माना जाता है, लेकिन यह धार्मिक कार्यों के लिए भी एक महत्वपूर्ण समय होता है। इस अवधि में पूजा-पाठ, तीर्थ यात्रा, मंत्र जाप, भागवत गीता और रामायण का पाठ करना तथा विष्णु भगवान की आराधना करना विशेष फलदायी माना जाता है। दान, पुण्य और भगवान का ध्यान लगाने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस मास में भगवान शिव की आराधना और सूर्य देव को अर्घ्य देने से भी विशेष लाभ प्राप्त होते हैं। खासकर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तांबे के लोटे में जल, रोली या लाल चंदन, शहद और लाल पुष्प डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने से अनेक लाभ मिलते हैं।
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कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जब सूर्य देव अपने सात घोड़ों के रथ पर ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे, तो उनके घोड़े अत्यधिक थक गए। सभी घोड़े प्यास से व्याकुल हो रहे थे। घोड़ों की यह स्थिति देखकर सूर्य देव बहुत दुखी हुए और उनकी चिंता होने लगी। रास्ते में उन्हें एक तालाब दिखाई दिया जिसके पास दो खर यानी गधे खड़े थे। सूर्य देव ने घोड़ों को आराम देने के लिए उन्हें खोल कर दो खरों को अपने रथ में बांध लिया। खरों की धीमी गति होने के कारण सूर्य देव का रथ भी धीमी गति से चलने लगा। इसी कारण इस महीने को खरमास कहा जाता है। इस अवधि में सूर्य की तीव्रता कम हो जाती है और पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का प्रभाव कमजोर पड़ जाता है। सनातन धर्म में सूर्य को महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए सूर्य की कमजोर स्थिति को अशुभ माना जाता है और इस दौरान मांगलिक कार्य करने से बचा जाता है।
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