E-Commerce Festive Sale Strategy: त्योहारों का सीजन शुरू होने वाला है। ऐसे में इसे देखते हुए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बंपर छूट वाली सेल शुरू हो चुकी हैं। इसको लेकर सोशल मीडिया, टीवी चैनल, मेट्रो स्टेशन आदि हर पब्लिक प्लेस पर सेल से जुड़े विज्ञापन भी आपको देखने को मिल रहे हैं। हर ऑफर का जमकर प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है। ऐसे में मन में एक सवाल का आना लाजमी है कि जिस सामान को हम इतने दिनों से जिस कीमत पर देख रहे हैं वो अचानक इतना कम कैसे हो जाता है? अगर कम हो भी रहा है तो कंपनियां इससे मुनाफा कैसे कमाती हैं? आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? आइए इस लेख में इसी के बारे में विस्तार से जानते हैं कि आखिर किन स्ट्रेटेजी से ये कंपनियां कम पैसे में सामान बेचकर भी खूब सारा मुनाफा कमाती हैं।
Sale : ई-कॉमर्स सेल में क्यों सस्ते हो जाते हैं महंगे स्मार्टफोन? ये है पर्दे के पीछे की छिपी सच्चाई
प्राइज एंकरिंग ट्रैप
प्राइज एंकरिंग ट्रैप एक खतरनाक मार्केटिंग स्ट्रेटजी है, जिसमें ग्राहक अपने आप फंसते जाता है। इस स्ट्रेटजी में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सबसे पहले प्रोडक्ट की कीमत कम करके ग्राहक को हुक करते हैं। इस कीमत पर प्रोडक्ट केवल चंद ग्राहकों को बेचा जाता है। इसके कुछ देर बाद प्रोडक्ट की कीमत को थोड़ा बढ़ा दिया जाता है। ऐसे में ग्राहक को प्रोडक्ट की कम कीमत पर हुक हुआ था वह प्रोडक्ट की कीमत थोड़ी से बढ़ने से दोबारा उसे खरीदने की कोशिश करता है।
इसे एक आसान उदाहरण से समझते हैं - मान लीजिए कि आपका कोई पसंदीदा स्मार्टफोन ई-कॉमर्स वेबसाइट पर 60 हजार रुपये का बिकता है। हालांकि, आपका बजट अधिक से अधिक 35 हजार तक का है इसलिए आप उस फोन को नहीं खरीदते हैं। सेल आने से पहले इस फोन की कम कीमत का खूब प्रचार किया गया है, और इस फोन को 40 हजार में बेचने का दावा किया जाता है। अब ग्राहक को लगेगा कि 35 हजार का तो मेरा बजट था ही क्यों न 5 हजार और लगाकर 40 हजार का फोन खरीद लेते हैं।
प्राइज एंकरिंग ट्रैप की कहानी यहीं से शुरू होती है। सेल वाला दिन जब आता है और आप फोन खरीदने जाते हैं तब उस समय आपको कुछ सच्चाइयों का सामना करना पड़ता है। जैसे वो स्मार्टफोन 40 हजार का जरूर है लेकिन उसके लिए आपको किसी खास बैंक के क्रेडिट कार्ड की जरूरत है। अगर क्रेडिट कार्ड नहीं है तो आपको वही फोन 48 हजार का पड़ेगा। अब क्योंकि आपने कई दिनों तक इस फोन को खरीदने के लिए सोचा है और समय गंवाया है, तो उस स्मार्टफोन को खरीदने की जिज्ञासा और बढ़ गई है। ऐसे में उस फोन से एक इमोशनल जुड़ाव भी हो जाता है और मन में ऐसा महसूस होने लगता है कि हम अपने पसंदीदा फोन को खरीदने के बहुत करीब आ चुके हैं।
ऐसे में अब ग्राहक 48 हजार रुपये का फोन खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन जब ऑर्डर करने जाते हैं तब फोन ऑर्डर नहीं हो पाता है। क्योंकि इस दौरान वेबसाइट क्रैश करने लगती है और कई बार तो प्रोडक्ट आउट ऑफ स्टॉक हो जाता है। जब थोड़ी देर बाद वह फोन वापस स्टाक में आता है तो उसकी कीमत बढ़कर 52 हजार हो जाती है। ऐसे में बहुत से ग्राहक को लगता है कि सिर्फ 4 हजार ही तो बढ़ा है। इस प्रवृत्ति को एफओएमओ(फोमो) यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट कहते हैं। अब कस्टमर को 40 हजार में दिखाए गए विज्ञापन की मदद से फोन को 52 हजार का खरीदना पड़ता है। देखा जाए तो बहुत गिने-चुने लोग ही होते हैं जो इस स्मार्टफोन को 40 हजार में खरीद पाते हैं।