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24 साल पहले किया था इमीग्रेशन फ्राॅड: 74 साल की महिला की दोषसिद्धि बरकरार, HC ने कहा-कोई सहानुभूति नहीं

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Tue, 06 May 2025 08:10 AM IST
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सार

बठिंडा निवासी चरनजीत कौर ने अपने साथी के साथ वर्ष 1999 में दो व्यक्तियों को कनाडा भेजने के नाम पर 15 लाख रुपये ठगे थे। केस 2000 में दर्ज हुआ था। 

Fraud in name of sending abroad Conviction of 74 year old woman upheld in 24 year old case Highcourt
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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24 साल पुराने इमिग्रेशन फ्रॉड के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 74 वर्षीय चरनजीत कौर की दोष सिदि्ध को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अपराधों में अनावश्यक सहानुभूति नहीं दिखाई जानी चाहिए, क्योंकि ये समाज में तेजी से बढ़ रहे हैं। यह अपील 2008 में पारित दोषसिद्धि आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।
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अभियोजन पक्ष के अनुसार, वर्ष 1999 में बठिंडा निवासी चरनजीत कौर और उसके एक साथी ने जगजीत सिंह और प्रितपाल सिंह को कनाडा भेजने के नाम पर 15 लाख रुपये ठग लिए थे। ट्रायल कोर्ट ने चरनजीत कौर को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 120-बी के तहत दो साल की कठोर सजा सुनाई थी। 
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अभियोजन पक्ष ने आरोपों को संदेह से परे किया साबित

हाईकोर्ट ने मामले की जांच के दौरान आई कुछ खामियों को स्वीकार करते हुए कहा कि इससे आरोपी को लाभ नहीं दिया जा सकता क्योंकि अभियोजन पक्ष ने आरोपों को संदेह से परे साबित कर दिया है। जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की पीठ ने कहा कि अवैध रूप से विदेश भेजे जाने के प्रयास के अपराध बढ़ते जा रहे हैं। लोग अपनी जीवनभर की पूंजी लगा देते हैं या कर्ज लेकर एजेंटों को भुगतान करते हैं। चाहे वे कानूनी हों या अवैध ताकि वे विदेश जा सकें। लेकिन अधिकतर मामलों में एजेंट पैसे लेकर धोखा देते हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी तरह विदेश पहुंच भी जाता है, तो उसकी यात्रा में अत्यधिक जोखिम होता है, शारीरिक शोषण होता है और अधिक पैसे की मांग की जाती है। 

यह भी पढ़ें: Punjab Haryana Water Row: 'मैं झुकूंगा नहीं, सुप्रीम कोर्ट तक लड़ूंगा...', पानी पर पंजाब की हरियाणा को दो टूक

अदालत ने कहा कि विदेश पहुंचने की दुर्लभ स्थिति में भी उस व्यक्ति पर डिपोर्ट होने का खतरा मंडराता रहता है और साथ ही उस पर भारत में लिए गए कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी भी होती है। इसलिए अदालतों को चाहिए कि वे इस प्रकार की बुराई को शुरू में ही रोकने की पूरी कोशिश करें और आरोपी के प्रति अनावश्यक सहानुभूति न रखें। 

मामले में एफआईआर वर्ष 2000 में दर्ज हुई थी और अब आरोपी की उम्र लगभग 74 वर्ष हो चुकी है, इसे ध्यान में रखते हुए अदालत ने सजा को संशोधित करते हुए एक वर्ष के साधारण कारावास में बदल दिया। अदालत ने यह भी कहा कि यह तर्क कि एफआईआर 24 साल पहले दर्ज हुई थी और अब आरोपी वृद्ध हो चुकी है, इसलिए उसे प्रोबेशन पर छोड़ दिया जाए स्वीकार नहीं किया जा सकता।
 
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