सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Punjab ›   Chandigarh-Punjab News ›   Notice to Punjab Government Punjab Haryana highcourt on taking children life due to poverty

पंजाब सरकार को नोटिस: जब सरेंडर करने का प्रावधान, तो गरीबी के कारण क्यों ली जा रही अपने ही बच्चों की जान

विवेक शर्मा, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Sat, 30 Aug 2025 09:27 AM IST
विज्ञापन
सार

मोहाली निवासी कंवर पाहूल सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याची ने कोर्ट को बताया था कि पंजाब में किशोर न्याय अधिनियम के बारे में जागरूकता न होने से बच्चों की हत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं।

Notice to Punjab Government Punjab Haryana highcourt on taking children life due to poverty
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

पंजाब में हाल ही में गरीबी के कारण अपनों द्वारा ही खुद के बच्चों की हत्या के मामलों का हवाला देते हुए पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई। इस पर हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार सहित अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।
loader
Trending Videos


किशोर न्याय अधिनियम के तहत यदि कोई बच्चों को नहीं रख सकता है तो उसे चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पास सरेंडर करने का विकल्प होता है। इस कानून के प्रचार प्रसार न करने पर हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को जवाब देने का कहा है।
विज्ञापन
विज्ञापन


यह भी पढ़ें: पंजाब में राहत नहीं: बाढ़ का दायरा बढ़ा, 10 जिलों के 900 गांव चपेट में; आठ लोगों की जा चुकी है जान

मोहाली निवासी कंवर पाहूल सिंह ने याचिका दाखिल करते हुए बताया कि तीन अक्तूबर 2023 को जालंधर में गरीबी के कारण एक प्रवासी दंपती ने अपनी तीन नाबालिग बेटियों को कथित तौर पर जहर दे दिया और उनके शवों को एक ट्रंक में डाल दिया था। एक अन्य दुखद घटना का भी जिक्र किया गया है जिसमें 22 मई 2025 को मोहाली के बलौंगी गांव में एक नवजात बच्ची को सड़क किनारे एक बाल्टी में छोड़ दिया गया था।

इसके अलावा 18 अगस्त 2025 की एक और घटना का हवाला दिया गया है, जिसमें जालंधर में छह महीने की बच्ची की उसके नाना-नानी द्वारा कथित तौर पर गला घोंटकर हत्या कर दी गई थी। याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि ये घटनाएं दर्शाती हैं कि पंजाब में किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधान को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। सरकार को अधिनियम के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि उन्होंने 22 मई 2025 को इन मुद्दों पर अधिकारियों को एक प्रतिनिधित्व भेजा था लेकिन 60 दिन की कानूनी समय सीमा बीतने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। एक्ट के अनुसार यदि कोई अपने बच्चों को रख नहीं सकता है तो उन्हें चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को सौंप सकता है। कमेटी दो महीने विचार करने का मौका देती है ओर इसके बाद बच्चे को गोद लेने के लिए योग्य करार देती है। किसी को भी अपने बच्चों को गरीबी के कारण मारने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है। लोगों को इस प्रावधान की जानकारी नहीं है तभी इस प्रकार की दुखद घटनाएं सामने आ रही हैं।
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

एप में पढ़ें

Followed