पंजाब की पर्यावरणीय समस्या से समाधान: पराली से निकलेगा प्लास्टिक का तोड़, ब्रिक-नाबी के वैज्ञानिकों को सफलता
ब्रिक-नेशनल एग्री फूड एंड बायो मैन्युफैक्चरिंग इंस्टीट्यूट (ब्रिक-नाबी) मोहाली और पुणे के वैज्ञानिकों की संयुक्त परियोजना ने तीन साल की मेहनत के बाद एक चमत्कारी खोज की है। यह फिल्म सिर्फ प्लास्टिक का विकल्प नहीं बल्कि देश की खाद्य पैकेजिंग इंडस्ट्री में क्रांति ला सकती है।

विस्तार
पंजाब की हर साल की पर्यावरणीय त्रासदी, पराली जलाने की समस्या, अब देश को प्लास्टिक से मुक्ति दिलाने का रास्ता बन सकती है। वैज्ञानिकों ने गेहूं की पराली से एक ऐसी बायोडिग्रेडेबल नैनो-कॉम्पोजिट फिल्म तैयार की है जो पारंपरिक प्लास्टिक का हर तरह से पर्यावरण अनुकूल विकल्प साबित हो सकती है।

ब्रिक-नेशनल एग्री फूड एंड बायो मैन्युफैक्चरिंग इंस्टीट्यूट (ब्रिक-नाबी) मोहाली और पुणे के वैज्ञानिकों की संयुक्त परियोजना ने तीन साल की मेहनत के बाद एक चमत्कारी खोज की है। यह फिल्म सिर्फ प्लास्टिक का विकल्प नहीं बल्कि देश की खाद्य पैकेजिंग इंडस्ट्री में क्रांति ला सकती है।
कचरा नहीं, कमाई बनेगी पराली
- पंजाब में हर साल 200 लाख टन से ज्यादा पराली उत्पन्न होती है
- पराली जलाने से 150 मिलियन टन सीओ₂, 9 मिलियन टन सीओ और भारी मात्रा में सल्फर ऑक्साइड व ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन
- अब इसी पराली से बनेगी बायोफिल्म, पूरी तरह प्राकृतिक और विघटित होने योग्य
नैनो-फिल्म की खासियत
- 99.999% बैक्टीरिया और फंगस को नष्ट करती है
- पराबैंगनी किरणों से बचाव, खाद्य पदार्थ लंबे समय तक सुरक्षित
- पारदर्शी, लचीली और कम लागत वाली
- मिट्टी में मिलकर पूरी तरह नष्ट हो जाती है
- प्लास्टिक की तरह कचरा नहीं छोड़ती
वैज्ञानिकों की टीम और शोध की उपलब्धि
इस नवाचार के पीछे वैज्ञानिक डॉ. जयीता भौमिक, डॉ. सीमा किरार, डॉ. अनिल भिसे, स्व. डॉ. सस्वता गोस्वामी, देवेश मोहने, मनाली सिंह और वर्षा सागर की मेहनत शामिल है। यह शोध केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से पूरा हुआ और हाल ही में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका सस्टेनेबल मैटेरियल एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। शोध को पेटेंट भी मिल चुका है।
किसानों और पर्यावरण, दोनों को राहत
- पराली अब किसानों की आय का स्रोत बनेगी
- जलाने की जरूरत नहीं
- प्रदूषण में भारी कमी
- खाद्य पैकेजिंग इंडस्ट्री में देश को आत्मनिर्भरता
- प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ निर्णायक कदम
स्वच्छ, हरित और टिकाऊ भारत
यह तकनीक सिर्फ पंजाब ही नहीं पूरे देश के लिए मिसाल बन सकती है। अगर बड़े स्तर पर लागू किया गया तो देश प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से काफी हद तक निजात पा सकता है और किसानों को भी आर्थिक संबल मिल सकता है।