{"_id":"686a80b5ece613c92e027c32","slug":"haidaus-was-played-with-naked-swords-in-ajmer-the-scene-of-karbala-was-remembered-ajmer-news-c-1-1-noi1334-3138018-2025-07-06","type":"story","status":"publish","title_hn":"Rajasthan News: अजमेर में नंगी तलवारों से खेला गया हाईदौस, कर्बला का मंजर किया याद","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Rajasthan News: अजमेर में नंगी तलवारों से खेला गया हाईदौस, कर्बला का मंजर किया याद
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, अजमेर
Published by: अजमेर ब्यूरो
Updated Sun, 06 Jul 2025 11:41 PM IST
विज्ञापन
सार
पूरे एशिया में केवल दो ही स्थानों पर तलवारों से हाईदौस खेलने की यह परंपरा निभाई जाती है। इनमें देश में अजमेर और पाकिस्तान का हैदराबाद शहर शामिल है। यह परंपरा केवल अंदरकोट कोटियान पंचायत समाज के लोग निभाते हैं।

अजमेर मे नंगी तलवारों से खेला गया हाईदौस
विस्तार
अजमेर में रविवार को मुस्लिम समुदाय द्वारा हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए मोहर्रम मनाया गया। वहीं, ख्वाजा की नगरी अजमेर में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने नंगी तलवारों से हाईदौस खेलकर इमाम हुसैन के प्रति अपनी अकीदत पेश की।
मोहर्रम कन्वीनर एडवोकेट अब्दुल शाहिद ने बताया कि डोले शरीफ के जुलूस के दौरान निभाई जाने वाली इस परंपरा के लिए खुद अजमेर का पुलिस प्रशासन 100 लोगों को तलवारें मुहैया कराता है। हाईदौस खेलते समय कई लोग तलवार की चोट से गंभीर रूप से घायल भी हो जाते हैं, लेकिन कोई भी न तो पुलिस में शिकायत करता है और न ही मुकदमा दर्ज कराया जाता है। बल्कि घायल हुए लोग इसे अपनी "खुशकिस्मती" मानते हैं।
हाथों में चमचमाती तलवारें और दिलों में जोश-ए-हुसैनी लिए मुस्लिम समाज के लोग आज कर्बला की पहाड़ियों में हुई ऐतिहासिक जंग की यादें ताजा कर रहे हैं। हालांकि, देशभर में गम-ए-हुसैन मनाया जा रहा है, लेकिन गरीब नवाज की नगरी अजमेर के अंदरकोट में दी पंचायत अंदरकोटियान के नेतृत्व में खुलेआम तलवारों से हाईदौस खेलकर इसे अनूठे अंदाज में मनाने की परंपरा रही है।
एडवोकेट शाहिद ने बताया कि यह परंपरा पिछले 500 वर्षों से निभाई जा रही है और अजमेर पुलिस प्रशासन स्वयं हाईदौस खेलने वालों को सौ तलवारें उपलब्ध कराता है। उन्होंने बताया कि रविवार अशूरा है — इस्लामिक इतिहास का सबसे बड़ा दिन, जब कर्बला की पहाड़ियों पर इस्लाम की रक्षा करते हुए हजरत इमाम हुसैन और उनके सैकड़ों साथियों को शहीद कर दिया गया था। उन्हीं की याद में अजमेर में हाईदौस खेला जाता है। सैकड़ों लोग हाथों में तलवारें लेकर इस भावना से हाईदौस खेलते हैं कि काश वे भी उस समय कर्बला में होते, तो इमाम हुसैन से पहले अपनी जान न्योछावर कर देते।
पूरे एशिया में केवल दो ही स्थानों पर तलवारों से हाईदौस खेलने की यह परंपरा निभाई जाती है। इनमें देश में अजमेर और पाकिस्तान का हैदराबाद शहर शामिल है। यह परंपरा केवल अंदरकोट कोटियान पंचायत समाज के लोग निभाते हैं। इस परंपरा की खास बात यह भी है कि यदि खेल के दौरान कोई व्यक्ति घायल हो भी जाए, तो वह इसे एक सौभाग्य मानता है और न तो कोई शिकायत करता है और न ही किसी प्रकार की दुश्मनी रखता है। बच्चे, बुजुर्ग और जवान सभी तलवारों के साए में इमाम हुसैन को सलाम करते हुए अपनी आस्था प्रस्तुत करते हैं। पुलिस प्रशासन की ओर से विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। हाईदौस का आगाज़ तोपों की गर्जन से होता है और सैकड़ों लोग ढोल-ताशों की मातमी धुन के साथ डोले शरीफ को कंधों पर उठाकर सैराब करने के लिए निकल पड़ते हैं।
विज्ञापन

Trending Videos
मोहर्रम कन्वीनर एडवोकेट अब्दुल शाहिद ने बताया कि डोले शरीफ के जुलूस के दौरान निभाई जाने वाली इस परंपरा के लिए खुद अजमेर का पुलिस प्रशासन 100 लोगों को तलवारें मुहैया कराता है। हाईदौस खेलते समय कई लोग तलवार की चोट से गंभीर रूप से घायल भी हो जाते हैं, लेकिन कोई भी न तो पुलिस में शिकायत करता है और न ही मुकदमा दर्ज कराया जाता है। बल्कि घायल हुए लोग इसे अपनी "खुशकिस्मती" मानते हैं।
विज्ञापन
विज्ञापन
हाथों में चमचमाती तलवारें और दिलों में जोश-ए-हुसैनी लिए मुस्लिम समाज के लोग आज कर्बला की पहाड़ियों में हुई ऐतिहासिक जंग की यादें ताजा कर रहे हैं। हालांकि, देशभर में गम-ए-हुसैन मनाया जा रहा है, लेकिन गरीब नवाज की नगरी अजमेर के अंदरकोट में दी पंचायत अंदरकोटियान के नेतृत्व में खुलेआम तलवारों से हाईदौस खेलकर इसे अनूठे अंदाज में मनाने की परंपरा रही है।
एडवोकेट शाहिद ने बताया कि यह परंपरा पिछले 500 वर्षों से निभाई जा रही है और अजमेर पुलिस प्रशासन स्वयं हाईदौस खेलने वालों को सौ तलवारें उपलब्ध कराता है। उन्होंने बताया कि रविवार अशूरा है — इस्लामिक इतिहास का सबसे बड़ा दिन, जब कर्बला की पहाड़ियों पर इस्लाम की रक्षा करते हुए हजरत इमाम हुसैन और उनके सैकड़ों साथियों को शहीद कर दिया गया था। उन्हीं की याद में अजमेर में हाईदौस खेला जाता है। सैकड़ों लोग हाथों में तलवारें लेकर इस भावना से हाईदौस खेलते हैं कि काश वे भी उस समय कर्बला में होते, तो इमाम हुसैन से पहले अपनी जान न्योछावर कर देते।
पूरे एशिया में केवल दो ही स्थानों पर तलवारों से हाईदौस खेलने की यह परंपरा निभाई जाती है। इनमें देश में अजमेर और पाकिस्तान का हैदराबाद शहर शामिल है। यह परंपरा केवल अंदरकोट कोटियान पंचायत समाज के लोग निभाते हैं। इस परंपरा की खास बात यह भी है कि यदि खेल के दौरान कोई व्यक्ति घायल हो भी जाए, तो वह इसे एक सौभाग्य मानता है और न तो कोई शिकायत करता है और न ही किसी प्रकार की दुश्मनी रखता है। बच्चे, बुजुर्ग और जवान सभी तलवारों के साए में इमाम हुसैन को सलाम करते हुए अपनी आस्था प्रस्तुत करते हैं। पुलिस प्रशासन की ओर से विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। हाईदौस का आगाज़ तोपों की गर्जन से होता है और सैकड़ों लोग ढोल-ताशों की मातमी धुन के साथ डोले शरीफ को कंधों पर उठाकर सैराब करने के लिए निकल पड़ते हैं।