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Barmer News: अरावली की परिभाषा में बदलाव पर प्रदेश कांग्रेस सचिव ने जताई चिंता, पर्यावरण को बताया गंभीर खतरा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बाड़मेर
Published by: बाड़मेर ब्यूरो
Updated Fri, 19 Dec 2025 10:39 PM IST
सार
पीसीसी सचिव ने अरावली पर्वतमाला की परिभाषा में किए गए हालिया बदलाव पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे पर्यावरण संतुलन के लिए गंभीर खतरा बताया है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खनन की अनुमति दी है। ऐसे में 100 मीटर से नीचे के भूभाग को अब अरावली पहाड़ी नहीं माना जाएगा।
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पीसीसी सचिव आजाद सिंह राठौड़
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विस्तार
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव आजाद सिंह राठौड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पर्वतों की परिभाषा में हाल ही में किए गए बदलाव पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय सदियों पुरानी अरावली पहाड़ियों के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। राठौड़ के अनुसार अरावली केवल पहाड़ों की शृंखला नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिमी भारत की जीवनरेखा है और इसके संरक्षण से किसी भी प्रकार का समझौता आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा।
राठौड़ ने बताया कि अरावली पर्वतमाला का सबसे बड़ा हिस्सा राजस्थान में स्थित है, इसलिए परिभाषा में बदलाव का सबसे अधिक दुष्प्रभाव प्रदेश को झेलना पड़ेगा। अरावली मरुस्थलीकरण को रोकने, मानसून पैटर्न को संतुलित रखने, भूजल संरक्षण और जैव विविधता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। यदि अरावली कमजोर होती है तो राजस्थान में वर्षा का असंतुलन, सूखे की तीव्रता और जल संकट और गहरा सकता है।
उन्होंने कहा कि अरावली पहाड़ियां उत्तर भारत के लिए प्राकृतिक ढाल का काम करती हैं। यह रेगिस्तान के फैलाव को रोकती हैं और हरियाणा, दिल्ली व पश्चिमी उत्तरप्रदेश सहित पूरे उत्तर-पश्चिमी भारत के पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। अरावली की परिभाषा में बदलाव कर संरक्षण के दायरे को कमजोर करना खनन और अनियंत्रित विकास के रास्ते खोलने जैसा है।
ये भी पढ़ें: Sawai Madhopur News: रणथंभौर में खुशखबरी, बाघिन टी-107 सुल्ताना नन्हे शावकों को शिफ्ट करती दिखी
आजाद सिंह राठौड़ ने चेतावनी दी कि इस बदलाव से पर्यावरणीय कानूनों की पकड़ कमजोर होगी, जिससे अवैध खनन, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को बढ़ावा मिलेगा। इसका सीधा असर किसानों, पशुपालकों और आम नागरिकों के जीवन पर पड़ेगा।
उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि अरावली पर्वतमाला की मूल और वैज्ञानिक परिभाषा को बरकरार रखा जाए और इसके संरक्षण के लिए सख्त व प्रभावी कदम उठाए जाएं। साथ ही उन्होंने सामाजिक संगठनों, पर्यावरणविदों, युवाओं और जनप्रतिनिधियों से राजनीति से ऊपर उठकर अरावली संरक्षण के लिए एकजुट होने की अपील की।
राठौड़ ने कहा कि यदि आज समाज चुप रहा तो आने वाली पीढ़ियां इसे कभी माफ नहीं करेंगी। अरावली को बचाना केवल पर्यावरण का नहीं, बल्कि भविष्य को सुरक्षित रखने का सवाल है।
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राठौड़ ने बताया कि अरावली पर्वतमाला का सबसे बड़ा हिस्सा राजस्थान में स्थित है, इसलिए परिभाषा में बदलाव का सबसे अधिक दुष्प्रभाव प्रदेश को झेलना पड़ेगा। अरावली मरुस्थलीकरण को रोकने, मानसून पैटर्न को संतुलित रखने, भूजल संरक्षण और जैव विविधता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। यदि अरावली कमजोर होती है तो राजस्थान में वर्षा का असंतुलन, सूखे की तीव्रता और जल संकट और गहरा सकता है।
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उन्होंने कहा कि अरावली पहाड़ियां उत्तर भारत के लिए प्राकृतिक ढाल का काम करती हैं। यह रेगिस्तान के फैलाव को रोकती हैं और हरियाणा, दिल्ली व पश्चिमी उत्तरप्रदेश सहित पूरे उत्तर-पश्चिमी भारत के पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। अरावली की परिभाषा में बदलाव कर संरक्षण के दायरे को कमजोर करना खनन और अनियंत्रित विकास के रास्ते खोलने जैसा है।
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आजाद सिंह राठौड़ ने चेतावनी दी कि इस बदलाव से पर्यावरणीय कानूनों की पकड़ कमजोर होगी, जिससे अवैध खनन, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को बढ़ावा मिलेगा। इसका सीधा असर किसानों, पशुपालकों और आम नागरिकों के जीवन पर पड़ेगा।
उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि अरावली पर्वतमाला की मूल और वैज्ञानिक परिभाषा को बरकरार रखा जाए और इसके संरक्षण के लिए सख्त व प्रभावी कदम उठाए जाएं। साथ ही उन्होंने सामाजिक संगठनों, पर्यावरणविदों, युवाओं और जनप्रतिनिधियों से राजनीति से ऊपर उठकर अरावली संरक्षण के लिए एकजुट होने की अपील की।
राठौड़ ने कहा कि यदि आज समाज चुप रहा तो आने वाली पीढ़ियां इसे कभी माफ नहीं करेंगी। अरावली को बचाना केवल पर्यावरण का नहीं, बल्कि भविष्य को सुरक्षित रखने का सवाल है।