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एयर स्ट्राइक और मसूद की आंधी से जूझती कांग्रेस की ज्योति
समीर शर्मा, जयपुर
Published by: Avdhesh Kumar
Updated Sat, 04 May 2019 04:08 AM IST
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ज्योति खंडेलवाल, कांग्रेस प्रत्याशी
- फोटो : सोशल मीडिया
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गुलाबी सिटी के नाम से विश्व विख्यात जयपुर शहर के भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशी राष्ट्रीय या प्रदेश स्तर पर चर्चित नहीं हैं, लेकिन राजस्थान की राजधानी होने के कारण लोगों की नजर इन पर टिकी है। राजधानी में जीत के महत्व को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी-अपनी रैलियों के जरिए जोर लगा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी सांसद रामचरण बोहरा काम के बजाय मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं, तो कांग्रेस की प्रत्याशी पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल को प्रदेश में सत्ता परिवर्तन से उम्मीद है।
एक अंतरराष्ट्रीय घटना के बाद मोदी की रैली की टाइमिंग ने भाजपा खेमे में उल्लेखनीय उत्साह भर दिया है। पुलवामा हमले के मास्टर माइंड मसूद अजहर के वैश्विक आतंकी घोषित होने के तुरंत बाद हुई मोदी की रैली ने शहर को मौसमी गर्मी से ज्यादा राष्ट्रीय भावना से गरमा दिया। इधर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट जोर-शोर से बेरोजगारी, मंदी, चौपट व्यापार व उद्योग और भाजपा के अधूरे वादों के मुद्दे उछालकर जनता का ध्यान इन पर खींचने में जुटे हैं। दोनों नेता मोदी पर झूठ बोलने, जुमले गढ़ने, गलत नीतियां बनाने जैसे आरोप लगा रहे हैं।
भाजपा समाज के ताने-बाने को बिगाड़ने में जुटी है। बेरोजगारी घर-घर फैल गई है। गरीबों को 'न्याय' गरीबी के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक साबित होगी। -ज्योति खंडेलवाल, प्रत्याशी कांग्रेस हमारे पीएम चांद पर तिरंगा फहराने की बात करते हैं और कुछ पार्टियां तिरंगे पर चांद लगाने की कोशिश में हैं। ऐसी ताकतों को भाजपा ही जवाब दे सकती है। -रामचरण बोहरा, सांसद व प्रत्याशी, भाजपा
भाजपा की दौड़ में बाधाएं और चुनौतियांः भाजपा का गढ़ माने जाने वाले जयपुर में 2014 जैसा प्रदर्शन कर पाने की चुनौती है। पिछली बार की तुलना में बाधाएं ज्यादा हैं। पिछली बार बोहरा ने कांग्रेस प्रत्याशी व पूर्व सांसद महेश जोशी को 5.39 लाख वोटों से हराया था। तब देशभर में प्रचंड मोदी लहर थी। यहां की विधानसभा की आठों सीटों पर भाजपा का कब्जा था। लेकिन अब स्थितियां अलग हैं। दिसम्बर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बन गई है। जयपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से पांच कांग्रेस के पास हैं। पांचों विधायक जोर-शोर से प्रचार में जुटे हैं।
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एक अंतरराष्ट्रीय घटना के बाद मोदी की रैली की टाइमिंग ने भाजपा खेमे में उल्लेखनीय उत्साह भर दिया है। पुलवामा हमले के मास्टर माइंड मसूद अजहर के वैश्विक आतंकी घोषित होने के तुरंत बाद हुई मोदी की रैली ने शहर को मौसमी गर्मी से ज्यादा राष्ट्रीय भावना से गरमा दिया। इधर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट जोर-शोर से बेरोजगारी, मंदी, चौपट व्यापार व उद्योग और भाजपा के अधूरे वादों के मुद्दे उछालकर जनता का ध्यान इन पर खींचने में जुटे हैं। दोनों नेता मोदी पर झूठ बोलने, जुमले गढ़ने, गलत नीतियां बनाने जैसे आरोप लगा रहे हैं।
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भाजपा समाज के ताने-बाने को बिगाड़ने में जुटी है। बेरोजगारी घर-घर फैल गई है। गरीबों को 'न्याय' गरीबी के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक साबित होगी। -ज्योति खंडेलवाल, प्रत्याशी कांग्रेस हमारे पीएम चांद पर तिरंगा फहराने की बात करते हैं और कुछ पार्टियां तिरंगे पर चांद लगाने की कोशिश में हैं। ऐसी ताकतों को भाजपा ही जवाब दे सकती है। -रामचरण बोहरा, सांसद व प्रत्याशी, भाजपा
भाजपा की दौड़ में बाधाएं और चुनौतियांः भाजपा का गढ़ माने जाने वाले जयपुर में 2014 जैसा प्रदर्शन कर पाने की चुनौती है। पिछली बार की तुलना में बाधाएं ज्यादा हैं। पिछली बार बोहरा ने कांग्रेस प्रत्याशी व पूर्व सांसद महेश जोशी को 5.39 लाख वोटों से हराया था। तब देशभर में प्रचंड मोदी लहर थी। यहां की विधानसभा की आठों सीटों पर भाजपा का कब्जा था। लेकिन अब स्थितियां अलग हैं। दिसम्बर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बन गई है। जयपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से पांच कांग्रेस के पास हैं। पांचों विधायक जोर-शोर से प्रचार में जुटे हैं।
जीत-हार के समीकरण
परकोटे में बसे पुराने जयपुर के बड़े हिस्से में मुसलमान रहते हैं, यहां वैश्य समाज भी बड़ी संख्या में हैं। वहीं, परकोटे के 30 किलोमीटर की परिधि में नई कॉलोनियां बसी हैं। पूरी सीट की बात करें, ब्राह्मणों के वोट अच्छे खासे हैं। वैश्य समाज की होने के कारण ज्योति को कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक से भी उम्मीदें हैं। क्षेत्र में संघ व भाजपा के प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि यहां के पूर्व महाराजा भवानी सिंह को भाजपा के सामान्य नेता गिरधारी लाल भार्गव ने हरा दिया था।
बोहरा ब्राह्मण समाज से हैं, लेकिन वे भाजपा के परंपरागत वोट बैंक, संघ व मोदी के सहारे जीत की आस लगाए हैं। जयपुर-शहर सीट पर परिसीमन से पहले 1989 से लगातार भाजपा का राज रहा। 2009 में यहां कांग्रेस जीती, तो 2014 में वापस भाजपा की जीत हुई।
गांधीजी के कहने पर तीन महीने बाद लोहिया ने छोड़ी सिगरेट
देश में गैर-कांग्रेसवाद की अलख जगाने वाले स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने महज चार साल में भारतीय संसद को अपने मौलिक राजनीतिक विचारों से झकझोर कर रख दिया था। जवाहरलाल नेहरू के रोजाना 25 हजार रुपये खर्च करने की बात हो या इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहने का साहस हो, लोहिया ने बिना झिझक यह बातें कहीं। जिस समय जवाहरलाल नेहरू को पूरा देश बड़ा नेता मान रहा था, उस दौरान लोहिया ने उन्हें घेरा और एक बार तो उन्हें देश का बीमार प्रधानमंत्री बताते हुए इस्तीफा तक देने की बात कह दी।
1962 में लोहिया फूलपुर से नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़े। 1967 में जब हर तरफ कांग्रेस का जलवा था, तब लोहिया इकलौते ऐसे शख्स थे जिन्होंने कहा कि कांग्रेस के दिन जाने वाले हैं और नए लोगों का जमाना आ रहा है। तब नौ राज्यों में कांग्रेस हार गई थी। लोहिया को अपने निजी जीवन में किसी का भी दखल बर्दाश्त नहीं था। एक बार महात्मा गांधी ने उनसे सिगरेट छोड़ने को कहा था। इस पर लोहिया ने बापू को कहा था कि सोच कर बताएंगे। इसके तीन महीने के बाद लोहिया ने बापू से कहा कि उन्होंने सिगरेट छोड़ दी।
बोहरा ब्राह्मण समाज से हैं, लेकिन वे भाजपा के परंपरागत वोट बैंक, संघ व मोदी के सहारे जीत की आस लगाए हैं। जयपुर-शहर सीट पर परिसीमन से पहले 1989 से लगातार भाजपा का राज रहा। 2009 में यहां कांग्रेस जीती, तो 2014 में वापस भाजपा की जीत हुई।
गांधीजी के कहने पर तीन महीने बाद लोहिया ने छोड़ी सिगरेट
देश में गैर-कांग्रेसवाद की अलख जगाने वाले स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने महज चार साल में भारतीय संसद को अपने मौलिक राजनीतिक विचारों से झकझोर कर रख दिया था। जवाहरलाल नेहरू के रोजाना 25 हजार रुपये खर्च करने की बात हो या इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहने का साहस हो, लोहिया ने बिना झिझक यह बातें कहीं। जिस समय जवाहरलाल नेहरू को पूरा देश बड़ा नेता मान रहा था, उस दौरान लोहिया ने उन्हें घेरा और एक बार तो उन्हें देश का बीमार प्रधानमंत्री बताते हुए इस्तीफा तक देने की बात कह दी।
1962 में लोहिया फूलपुर से नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़े। 1967 में जब हर तरफ कांग्रेस का जलवा था, तब लोहिया इकलौते ऐसे शख्स थे जिन्होंने कहा कि कांग्रेस के दिन जाने वाले हैं और नए लोगों का जमाना आ रहा है। तब नौ राज्यों में कांग्रेस हार गई थी। लोहिया को अपने निजी जीवन में किसी का भी दखल बर्दाश्त नहीं था। एक बार महात्मा गांधी ने उनसे सिगरेट छोड़ने को कहा था। इस पर लोहिया ने बापू को कहा था कि सोच कर बताएंगे। इसके तीन महीने के बाद लोहिया ने बापू से कहा कि उन्होंने सिगरेट छोड़ दी।