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Karauli News: महिलाओं ने बदली इलाके की तकदीर, बंजर जमीन को हराभरा बनाकर डकैत पतियों को दिखाया किसानी का रास्ता
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, करौली
Published by: प्रिया वर्मा
Updated Mon, 26 May 2025 07:59 AM IST
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सार
करौली के बंजर इलाके में महिलाओं ने अपनी मेहनत और लगन से पूरे इलाके की तस्वीर बदलकर रख दी है। बीते कुछ सालों में पूरे जिले में करीब 500 पोखर बनाए गए हैं। महिलाओं ने 15 साल पहले तक डकैत रहे पतियों को फिर से किसानी करने का जज्बा दिया है।

राजस्थान
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
नारी की जिजीविषा और हौसला बंजर जमीन में फसल लहलहा सकता है तो डकैतों से किसानी तक करा सकता है। राजस्थान की करौली की महिलाओं ने यह कर दिखाया है। करीब 15 साल पहले तक संपत्ति देवी जैसी कई महिलाएं रोज खौफ में जीती थीं। उनके पति डकैत बनने को मजबूर हो गए थे और वे लौटकर आएंगे या नहीं उन्हें हमेशा सशंकित करता था।

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डकैत बनने की कहानी भी अजीब है। इस इलाके में लगातार सूखा और कम होती बारिश ने जमीनों को बंजर बना दिया था। डर और निराशा से आजिज आ चुकीं महिलाओं ने 2010 के आसपास अपने पतियों को बंदूक छोड़ने के लिए तैयार किया और फिर शुरू हुई करौली के इन परिवारों की जिंदगी में खुशी, उम्मीद और अमन-चैन की बहाली। भूरखेड़ा के लज्जाराम कभी 40 केसों में आरोपी थे। पानी और खेती के अभाव में वे डकैत बने। बहन के समझाने पर उन्होंने आत्मसमर्पण किया। अब वे 10 बीघा जमीन में सरसों, चना, बाजरा उगाते हैं और आठ भैंसों के साथ संपन्न जिंदगी जीते हैं। लज्जाराम अकेले नहीं हैं, यहां के कई डकैत अब खेतीबाड़ी ही करते हैं।
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उम्मीदों के तालाब लबलबा उठे
1975 से जल संरक्षण के लिए समर्पित अलवर की जल-संरक्षण संस्था तरुण भारत संघ (टीबीएस) की मदद से इन महिलाओं ने पुराने तालाबों को पुनर्जीवित किया और नए पोखर बनाए। संपत्ति देवी और उनके पति जगदीश ने दूध बेचकर हुई कमाई से एक पोखर बनवाया और उनकी जिंदगी बदल गई। 58 साल के जगदीश कहते हैं, मैं अब तक मर चुका होता। उसने मुझे वापस आकर फिर से खेती शुरू करने के लिए राजी किया। बारिश होते ही पोखर भर गया और परिवार को सालभर के लिए पानी मिला। आज वे सरसों, गेहूं, बाजरा और सब्जियां उगाते हैं। जलाशय को सिंघाड़े की खेती के लिए किराए पर देकर वे हर सीजन में लगभग 1 लाख रुपये कमाते हैं। गर्व से सम्पत्ति देवी कहती हैं, अब हम सरसों, गेहूं, बाजरा और सब्जियां उगाते हैं।
जंगलों के 16 पोखर अब जल संरक्षण का जरिया
बीते कुछ साल में टीबीएस और स्थानीय समुदाय ने मिलकर वहीं गांव आसपास के जंगलों में अब 16 पोखर हैं, जो पहाड़ियों से बहता पानी रोकते हैं। डीजल पंप से पानी खेतों में पहुंचता है। करौली, जो कभी डकैतों के लिए कुख्यात था, अब अमन-चैन की मिसाल बन चुका है।
भूजल का संकट भी टला
गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर सुमित डूकिया बताते हैं कि चंबल का पथरीला इलाका बारिश के पानी को तेजी से बहा देता है, जिससे यह पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाता। करौली में सूखे के वक्त सूखे का सामना करना पड़ता है और भारी बारिश होने पर अचानक बाढ़ आ जाती है लेकिन करौली में संरक्षण की लहर ने मौसमी नदी सेरनी को बारहमासी नदी में बदल दिया है।
टीबीएस के संरक्षणवादी रणवीर सिंह बताते हैं कि 10 साल पहले यह नदी दिवाली के बाद सूख जाती थी। अब गर्मियों में भी इसमें पानी रहता है और भूजल केवल 5–10 फीट नीचे है।