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Constitution Day 2025: संविधान निर्माण में थी इन 15 महिलाओं की अहम भूमिका, जानें इनके बारे में

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला Published by: शिवानी अवस्थी Updated Mon, 24 Nov 2025 01:52 PM IST
सार

Indian Constitution Day 2025: भारत की संविधान सभा में कुल 15 महिलाएं सदस्य थीं। यह संख्या भले कम लगे, लेकिन उनकी भूमिका अत्यंत निर्णायक रही। संविधान दिवस 2025 के मौके पर आइए जानते हैं संविधान निर्माण में अपना योगदान देने वाली 15 महिलाओं के बारे में।

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Indian Constitution Day 2025 15 Women Contributed In Samvidhan Nirman me mahilaon ki bhumika
संविधान निर्माण में था इन महिलाओं का योगदान - फोटो : Amar ujala
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विस्तार
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Indian Constitution Day 2025: हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। देश की आजादी के बाद भारत सरकार के लिए देश में कानून और संविधान लागू करना सबसे पहली और बड़ी चुनौती थी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा का निर्माण हुआ। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डाॅ. भीमराव आंबेडकर के प्रयासों से भारत के संविधान को मूर्त रूप मिला और औपचारिक तौर पर 26 नवंबर 1949 को संविधान लागू हो गया। संविधान निर्माण में कई लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं।

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भारत की संविधान सभा में कुल 15 महिलाएं सदस्य थीं। यह संख्या भले कम लगे, लेकिन उनकी भूमिका अत्यंत निर्णायक रही। ये महिलाएं शिक्षा, सामाजिक सुधार, महिला अधिकार, स्वास्थ्य, आदिवासी अधिकार और समानता के मुद्दों को दृढ़ता से लेकर आईं। संविधान दिवस 2025 के मौके पर आइए जानते हैं संविधान निर्माण में अपना योगदान देने वाली 15 महिलाओं के बारे में। 
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संविधान निर्माण में महिलाओं की भूमिका


1. अम्मू स्वामीनाथन

केरल के पालघाट जिले की रहने  वाली अम्मू स्वामीनाथन ने 1946 में मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से संविधान सभा का हिस्सा बनीं। 24 नवंबर 1949 को संविधान के मसौदे को पारित करने के लिए अपने भाषण में अम्मू ने कहा, 'बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने अपनी महिलाओं को बराबर अधिकार नहीं दिए हैं। अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोग स्वयं अपने संविधान को तैयार करते हैं तो उन्होंने देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिए हैं।"


2. सरोजिनी नायडू

सरोजिनी नायडू को "भारत कोकिला" के नाम से जाना जाता है। हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 को सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। सरोजिनी नायडु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं। वहीं उन्हें भारतीय राज्य का गवर्नर भी नियुक्त किया गया था। वे संविधान सभा में महिला अधिकारों की प्रबल समर्थक थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, समानता और राजनीतिक अधिकारों पर जोर दिया।

3. बेगम एजाज रसूल

संविधान सभा में एकमात्र  मुस्लिम महिला बेगम एजाज  रसूल थीं। भारत सरकार अधिनियम 1935 के लागू होने के साथ ही बेगम और उनके पति मुस्लिम लीग में शामिल हो गए और चुनावी राजनीति में उतरे। 1937 के चुनावों में वे यूपी विधानसभा के लिए चुनी गईं। बाद में जब 1950 में भारत में मुस्लिम लीग भंग हुई तो बेगम एजाज कांग्रेस में शामिल हो गईं। 1952 में वह राज्यसभा के लिए चयनित हुईं और 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य रहीं। 1967 से 1971 के बीच बेगम एजाज रसूल सामाजिक कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री रहीं। उन्हें साल 2000 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है। 

4. हंसा मेहता

हंसा मेहता का जन्म बड़ौदा में 3 जुलाई 1897 को हुआ था। उन्होंने इंग्लैंड में पत्रकारिता और समाजशास्त्र की पढ़ाई की। वह सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षिका और लेखिका भी थीं। 1926 में हंसा को बॉम्बे स्कूल कमेटी के लिए चुना गया। वहीं 1945-46 में हंसा अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं। संविधान सभा की सदस्य रहीं और इस दौरान उन्होंने समान नागरिक अधिकारों की वकालत की। हंसा मेहता ने ये सुनिश्चित किया कि संविधान में महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार मिले।

5. सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी आजाद भारत में पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं। हरियाणा के अंबाला में साल 1908 में जन्मी  सुचेता ने 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला विंग की स्थापना की। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। संविधान सभा में महिलाओं की शिक्षा और उनके राजनीतिक अधिकारों के लिए जोर दिया।
 

Indian Constitution Day 2025 15 Women Contributed In Samvidhan Nirman me mahilaon ki bhumika
राजकुमारी अमृत कौर - फोटो : Instagram

6. कमला चौधरी

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में संपन्न परिवार में जन्मी कमला चौधरी एक प्रसिद्ध लेखिका थीं। उनकी कहानियां महिलाओं पर आधारित होती थीं। 1930 में कमला चौधरी ने महात्मा गांधी के नागरिक अवज्ञा आंदोलन में सक्रियता से हिस्सा लिया। वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष रहीं और लोकसभा सदस्य के रूप में चुनी गईं। कमला चौधरी ने भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों को उठाया।
 

7. दुर्गाबाई देशमुख

15 जुलाई 1909 में जन्मी दुर्गा बाई देशमुख ने महज 12 वर्ष की आयु से समाज सेवा का कार्य शुरू कर दिया था। छोटी सी उम्र में गैर-सहभागिता आंदोलन में भाग लिया। 1936 में दुर्गाबाई ने आंध्र महिला सभा की स्थापना की। इसके बाद वह केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय शिक्षा परिषद और राष्ट्रीय समिति पर लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा जैसे कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष भी रहीं। दुर्गाबाई ने संविधान सभा में महिलाओं के लिए विशेष प्रावधानों की मांग की। दुर्गा बाई देशमुख को चौथे नेहरू साहित्यिक पुरस्कार और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

8. विजया लक्ष्मी पंडित

विजया लक्ष्मी पंडित आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन थीं। उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत इलाहाबाद नगर निगम चुनाव से की। 1936 में विजया लक्ष्मी पंडित को संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुना गया। 1937 में स्थानीय सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री का पद मिला। वह देश की महिला कैबिनेट मंत्री बनने वाली पहली भारतीय थीं। उन्होंने संविधान सभा में अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने की बात कही।
 

9. राजकुमारी अमृत कौर

अमृत कौर का जन्म लखनऊ में 2 फरवरी 1889 में हुआ था। वह कपूरथला के पूर्व महाराज के पुत्र हरनाम सिंह की बेटी थीं। उन्होंने ट्यूबरक्लोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की थी। लीड ऑफ रेड क्रॉस सोसाइटी के गवर्नर बोर्ड और सेंट जॉन एम्बुलेंस सोसाइटी की कार्यकारी समिति की उपाध्यक्ष भी रहीं। संविधान सभा में उन्होंने स्वास्थ्य और महिला अधिकारों से जुड़े विषयों पर जोर दिया। उनके निधन के बाद द न्यूयॉर्क टाइम्स ने अमृत कौर को देश की सेवा के लिए ‘राजकुमारी’ की उपाधि दी थी।

10. पूर्णिमा बैनर्जी

पूर्णिमा बनर्जी इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की सचिव रहीं। उन्होंने सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल भी गईं। संविधान सभा में पूर्णिमा बनर्जी के भाषण का एक सबसे खास पहलू समाजवादी विचारधारा के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता थी। उन्होंने महिलाओं और कमजोर वर्गों के लिए सामाजिक न्याय की बात की। बनर्जी ने शहर समिति के सचिव के रूप में ट्रेड यूनियनों, किसान मीटिंग्स और अधिक ग्रामीण जुड़ाव की दिशा में काम किया था। 
 

Indian Constitution Day 2025 15 Women Contributed In Samvidhan Nirman me mahilaon ki bhumika
दक्षिणानी वेलायुद्ध - फोटो : instagram

11. एनी मस्कारेन

केरल के तिरुवनंतपुरम में जन्मी एनी मस्कारेन ने महिला और मजदूर वर्ग के अधिकारों की वकालत की। वह एक लैटिन कैथोलिक परिवार से ताल्लुक रखती है। एनी मस्कारेन त्रावणकोर राज्य से कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिला थीं। बाद में त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी का हिस्सा बनने वाली भी पहली महिला बनीं। 1939 से साल 1977 कर कई बार उन्हें उनकी राजनीतिक सक्रियता के कारण जेल जाना पड़ा। इतिहास से उनका नाम केरल की पहली महिला सांसद के रूप में भी दर्ज है।

12. रेणुका रे

रेणुका ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए की पढ़ाई पूरी की। बाद में 1934 में कानूनी सचिव के रूप में कार्य किया। उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी विकलांगता’ नामक एक दस्तावेज प्रस्तुत किया था। 1943 से 1946 तक रेणुका केंद्रीय विधान सभा, संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य रहीं। साल 1952 से 1957 में रेणुका पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास के मंत्री के तौर पर कार्यरत रहीं। संविधान सभा में रेणुका ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण पर बल दिया और उनके लिए विशेष प्रावधानों की मांग की।
 

13. लीला रॉय

असम के गोलपाड़ा में लीला राॅय का जन्म हुआ था। उनके पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। लीला साल 1937 में कांग्रेस में शामिल हुईं, जिसके बाद उन्होंने बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की। लीला राॅय सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उपसमिति की भी सदस्य बनीं। 1947 लीला राॅय ने पश्चिम बंगाल में एक महिला संगठन और भारतीय महिला संघती की स्थापना की थी। लीला रॉय बंगाल की महिला अधिकारों की प्रखर समर्थक थीं। उन्होंने संविधान सभा में महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने पर बल दिया।

14. मालती चौधरी

मालती चौधरी 16 साल की उम्र में शांति निकेतन चली गईं, जहां विश्व भारती में उनकी भर्ती हो गई। इसके बाद उन्होंने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया। इस दौरान मालती चौधरी अपने पति संग कांग्रेस में शामिल हुईं और आंदोलन में भाग लेने लगीं। संविधान सभा की सदस्य बन मालती ने महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर दिया। वे समाजवादी विचारधारा की समर्थक थीं।

15. दक्षिणानी वेलायुद्ध 
 
संविधान सभा की एकमात्र दलित महिला दक्षिणानी वेलायुद्ध थीं। उनका जन्म कोच्चि के बोलगाटी द्वीप पर 4 जुलाई 1912 को हुआ था। वह समाज के शोषित वर्गों की नेता थीं। साल 1945 में दक्षिणानी को कोच्चि विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया। वहीं एक साल बाद 1946 में संविधान सभा के लिए पहली और एकमात्र दलित महिला का चयन हुआ। 

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