Lady Bhagirathi: मिलिए कर्नाटक की लेडी भागीरथी गौरी नाइक से, जिन्होंने अकेले खोदा 60 फीट गहरा कुआं
Karnataka Lady Bhagirathi Story: गौरी कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के सिरसी तालुक के गणेश नगर की रहने वाली हैं। 51 वर्षीय गौरी एस. नाइक रोजाना पांच से छह घंटे तक तीन महीने लगातार जमीन खोदती रहीं।

विस्तार
Karnataka Lady Bhagirathi Story: यह कहानी केवल एक महिला की नहीं, बल्कि स्त्री-शक्ति, आत्मनिर्भरता और अदम्य साहस की मिसाल है। कर्नाटक की एक महिला ने दिखा दिया कि अगर जज्बा हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता है। पानी की किल्लत से जूझते गांव को गौरी एस. नाइक नाम की महिला ने अपने दम पर अकेले 60 फीट गहरा कुआं खोदकर न सिर्फ पानी दिया, बल्कि ये संदेश भी दिया कि महिलाएं केवल घर की जिम्मेदारी तक सीमित नहीं हैं। गौरी एस. नाइक की कहानी यह सिखाती है कि महिला सशक्तिकरण केवल किताबों या भाषणों का विषय नहीं है, बल्कि यह जमीनी स्तर पर किए गए कामों से दिखता है। उनकी लगन, मेहनत और आत्मविश्वास हर भारतीय महिला को यह प्रेरणा देता है कि उम्र, गरीबी या लिंग, कोई भी बाधा सपनों को रोक नहीं सकती। आइए जानते हैं 51 साल की उम्र में इस जज्बे के जरिए लोगों को प्रेरणा देने वाली गौरी ए. नाइक की कहानी।

कौन हैं गौरी एस. नाइक
गौरी कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के सिरसी तालुक के गणेश नगर की रहने वाली हैं। 51 वर्षीय गौरी एस. नाइक रोजाना पांच से छह घंटे तक तीन महीने लगातार जमीन खोदती रहीं। बिना किसी पुरुष सहयोग के, उन्होंने अकेले अपने हाथों से 60 फीट गहरा कुआँ खोद डाला। यह वही काम है जिसे कई लोग मशीनों और मजदूरों के बिना असंभव मानते हैं। लेकिन गौरी ने साबित कर दिया कि इच्छाशक्ति के सामने कोई बाधा बड़ी नहीं।
लेडी भागीरथी की उपाधि
कहते हैं राजा भगीरथ ने तपस्या कर गंगा को धरती पर लाया था। उसी तरह गांववालों ने गौरी को "लेडी भागीरथी" कहा क्योंकि उन्होंने धरती की गहराई से पानी निकालकर सबकी प्यास बुझाई। 60 फीट की खुदाई के बाद जब 7 फीट पानी मिला तो यह पूरे गांव के लिए आशा और जीवन का प्रतीक बन गया।
रोजमर्रा की जिम्मेदारियों के बीच संघर्ष
गौरी केवल एक कुआँ खोदने वाली महिला नहीं, बल्कि एक मां और दिहाड़ी मजदूर भी हैं। इन ज़िम्मेदारियों के बीच उन्होंने अपने घर के आसपास 150 सुपारी के पेड़, 15 नारियल के पेड़ और केले के पौधे भी लगाए। पेड़ों के लिए पानी की जरूरत को महसूस किया, जिसने उन्हें इस कठिन काम के लिए प्रेरित किया।
समाज में बदलाव की प्रेरणा
गांव के लोग मज़दूर रखने का खर्च नहीं उठा सकते थे, लेकिन गौरी ने हालात से हार मानने के बजाय खुद मज़दूर बनने का रास्ता चुना। उनका साहस हर उस महिला को संदेश देता है जो अक्सर सोचती है कि मैं अकेले क्या कर सकती हूँ?
कमेंट
कमेंट X