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एआई से बदल रहा है सेब कारोबार : नितीन
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ग्रेडिंग की ताकत अब बागवानों के हाथ
रंग, पकने की स्थिति से हो रहा सेब का आकलन
संवाद न्यूज एजेंसी
शिमला। प्रदेश के सेब कारोबार में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित ग्रेडिंग तकनीक से बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। अब सेब की गुणवत्ता का आकलन केवल आकार से नहीं, बल्कि रंग, पकने की स्थिति और सतह की गुणवत्ता के आधार पर भी किया जा रहा है। इससे बागवानों को बेहतर मूल्य मिलने लगा है। यह जानकारी शनिवार को प्रेसवार्ता के दौरान ईसरो के पूर्व वैज्ञानिक और मार्श हैरिसर कंपनी के निदेशक नितिन गुप्ता ने दी।
उन्होंने कहा कि मौसम की मार, ओलावृष्टि, रोग या बाजार में मामूली गिरावट भी किसान की साल भर की कमाई पर भारी पड़ सकती है। ऐसे में अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित तकनीक हिमाचल के सेब कारोबार की तस्वीर बदलने लगी है। विशेषज्ञों के अनुसार पारंपरिक ग्रेडिंग में जहां कई बार अच्छे सेब कम श्रेणी में चले जाते थे वहीं एआई आधारित सिस्टम अधिक सटीक पहचान कर नुकसान को कम कर रहा है। इससे आढ़तियों द्वारा कीमत घटाने की गुंजाइश भी सीमित हुई है।
उन्होंने बताया कि कई क्षेत्रों में किसानों द्वारा अपनाई जा रही इस तकनीक से पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान घटा है और ग्रेडिंग का अधिकार सीधे बागवान के हाथ में आया है। यदि यह तकनीक छोटे और मध्यम किसानों तक व्यापक रूप से पहुंची तो हिमाचल के सेब बागवानों की आय में वृद्धि होगी। खाद, कीटनाशक, सिंचाई, मजदूरी और बागान प्रबंधन का खर्च पहले ही हो जाता है, लेकिन असली चुनौती कटाई के बाद शुरू होती है जब फल की सही पहचान, ग्रेडिंग और सॉटिंग न होने के कारण किसान को उसकी मेहनत का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता। इस दौरान प्रगतीशील बागवान यशवंत चौहान, देवराज वर्मा, सुरेंद्र सिंह चौहान और बलविंदर कंवर भी मौजूद रहे।
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रंग, पकने की स्थिति से हो रहा सेब का आकलन
संवाद न्यूज एजेंसी
शिमला। प्रदेश के सेब कारोबार में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित ग्रेडिंग तकनीक से बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। अब सेब की गुणवत्ता का आकलन केवल आकार से नहीं, बल्कि रंग, पकने की स्थिति और सतह की गुणवत्ता के आधार पर भी किया जा रहा है। इससे बागवानों को बेहतर मूल्य मिलने लगा है। यह जानकारी शनिवार को प्रेसवार्ता के दौरान ईसरो के पूर्व वैज्ञानिक और मार्श हैरिसर कंपनी के निदेशक नितिन गुप्ता ने दी।
उन्होंने कहा कि मौसम की मार, ओलावृष्टि, रोग या बाजार में मामूली गिरावट भी किसान की साल भर की कमाई पर भारी पड़ सकती है। ऐसे में अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित तकनीक हिमाचल के सेब कारोबार की तस्वीर बदलने लगी है। विशेषज्ञों के अनुसार पारंपरिक ग्रेडिंग में जहां कई बार अच्छे सेब कम श्रेणी में चले जाते थे वहीं एआई आधारित सिस्टम अधिक सटीक पहचान कर नुकसान को कम कर रहा है। इससे आढ़तियों द्वारा कीमत घटाने की गुंजाइश भी सीमित हुई है।
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उन्होंने बताया कि कई क्षेत्रों में किसानों द्वारा अपनाई जा रही इस तकनीक से पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान घटा है और ग्रेडिंग का अधिकार सीधे बागवान के हाथ में आया है। यदि यह तकनीक छोटे और मध्यम किसानों तक व्यापक रूप से पहुंची तो हिमाचल के सेब बागवानों की आय में वृद्धि होगी। खाद, कीटनाशक, सिंचाई, मजदूरी और बागान प्रबंधन का खर्च पहले ही हो जाता है, लेकिन असली चुनौती कटाई के बाद शुरू होती है जब फल की सही पहचान, ग्रेडिंग और सॉटिंग न होने के कारण किसान को उसकी मेहनत का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता। इस दौरान प्रगतीशील बागवान यशवंत चौहान, देवराज वर्मा, सुरेंद्र सिंह चौहान और बलविंदर कंवर भी मौजूद रहे।