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Himachal News: सूखे से सेब बगीचों के लिए कैंसर बनने लगा कैंकर, वूली एफिड का भी हमला

अमर उजाला ब्यूरो, शिमला/धर्मशाला Published by: Krishan Singh Updated Thu, 30 Jan 2025 11:36 AM IST
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सार

 प्रदेश में नवंबर से अब तक नाममात्र की बारिश और बर्फबारी होने के कारण सूखे जैसे हालात हो गए हैं। इसके कारण सेब के बगीचे बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। 

due to Drought Canker has become a cancer for apple orchards , Woolly Aphid also attacks
सेब बगीचों के लिए कैंसर बनने लगा कैंकर - फोटो : अमर उजाला
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हिमाचल प्रदेश में नवंबर से अब तक नाममात्र की बारिश और बर्फबारी होने के कारण सूखे जैसे हालात हो गए हैं। इसके कारण सेब के बगीचे बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। प्रदेश में कुछ जगह गेहूं समेत अन्य फसलें पीली पड़ने लगी हैं। सूखे जैसे हालात के कारण बगीचों में सेब के पेड़ कैंकर रोग की चपेट में आ रहे हैं। यह कैंसर की तरह सेब के पेड़ों को नष्ट कर रहा है। इससे पेड़ों के तने सूखने लगे हैं। इसके अलावा वूली एफिड, रिंग वॉर्म, स्केल समेत कई तरह के कीटाें का भी बगीचों में असर देखा जाने लगा है। नमी नहीं होने से बागवान नए तौलिए नहीं कर पा रहे हैं। नया पौधारोपण भी अटक गया है।

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इन क्षेत्रों के सेब के पेड़ों को सबसे अधिक नुकसान
निचले व मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों के बगीचों में सेब के पेड़ों को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। एक तो नमी की कमी है, ऊपर से चटख धूप और गर्मी बढ़ने से पेड़ों के तनों की चमड़ी काली पड़कर कैंकर राेग की चपेट में आ रही है। पेड़ों में ऊनी आवरण बनाकर वूली एफिड सेब के पेड़ों पर हमला बोल रहा है। कई पेड़ों को रिंग वॉर्म बींधने लगे हैं। शिमला जिला के अलावा सेब उगाने वाले कुल्लू और मंडी जिलों के क्षेत्रों में भी ऐसे ही हालात हैं। उधर, सोलन, कांगड़ा और बिलासपुर जिले में कुछ स्थानों पर पेयजल योजनाओं में जलस्तर में पांच से 15 फीसदी की गिरावट आई है। ऐसे में पानी की राशनिंग करने की तैयारी की जा रही है।
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सेब के बगीचे कैंकर से खत्म हो गए, स्केल और वूली एफिड से भी पौधे मर रहे
जिला शिमला की तहसील कोटखाई के गांव बखोल के बागवान संजीव चौहान ने कहा कि सेब के बगीचे कैंकर से खत्म हो रहे हैं। इससे सेब के पेड़ों की ग्रोथ रुक गई है। स्केल से भी पौधे मर रहे हैं। स्केल की बीमारी तो फलों को भी नुकसान करती है। वूली एफिड भी सेब के बगीचों से हटने का नाम नहीं ले रहा है। यह भी पौधों को मार रहा है। बर्फबारी अच्छी होने पर ये कीट और रोग सर्दियों में नहीं पनपते थे।

पुराने पौधों पर संकट, नए लगाए नहीं जा रहे
कुल्लू जिला के ग्राम पंचायत कोटाधार पनारसा गांव के बागवान दलीप ठाकुर ने कहा कि जिस तरह से मौसम में बदलाव आया है, उससे कुल्लू जिला में सेब बागवानी पर संकट छा गया है। नए पौधे नहीं लगाए जा पा रहे हैं। कैंकर, स्केल, वूली एफिड जैसी बीमारियों की चपेट में तो सेब के बगीचे आए ही हैं। साथ ही साल दर साल पर्यावरण में आए बदलावों का सेब बागवानी पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इस बारे में बड़े अधिकारियों से लेकर सरकार का इतना बड़ा तंत्र भी कुछ नहीं सोच रहा है।

विभाग ने अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी
बागवानी विभाग के निदेशक विनय सिंह ने कहा कि दो-तीन स्पैल में अच्छी बारिश और बर्फबारी हुई तो उससे कुछ क्षेत्रों में पौधारोपण हो पाया है। अगर आगे बारिश और बर्फबारी ठीक से नहीं हुई तो उससे समस्या बढ़ सकती है। फील्ड अधिकारी आकलन कर रहे हैं। उनसे रिपोर्ट मांगी जा रही है।

सूखे से रामपुर और आनी में बढ़ी बागवानों की चिंता
रामपुर बुशहर। बीते लंबे समय से पर्याप्त बारिश न होने के कारण रामपुर और आनी उपमंडल में सूखे से बागवान परेशानियां झेल रहे हैं। क्षेत्र के बागवानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें छा गई हैं। बर्फबारी और बारिश न होने के कारण जहां आगामी समय से करोड़ों के सेब के कारोबार पर संकट खड़ा हो गया है, वहीं बागवानों के सेब के नए पौधे लगाने, खाद सहित अन्य कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। बीते कई वर्षों से बारिश और बर्फबारी का स्तर घटने के कारण सेब के पेड़ सूख रहे हैं। वहीं सेब का उत्पादन भी घट रहा है। बागवानी करना बागवानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। वहीं गुठलीदार फलों पर भी सूखे की मार पड़ रही है।

बारिश नहीं होने से गेहूं की फसल पीली पड़ने का खतरा
बरठीं (बिलासपुर)। जिले में जनवरी में मात्र सिर्फ एक दिन बारिश हुई, जबकि करीब 75 प्रतिशत कृषि भूमि बारिश पर निर्भर है। बारिश नहीं होने से किसानों की गेहूं की फसल पीली पड़ने का डर सता रहा है। जिले में जनवरी 2024 में 4.6 एमएम बारिश दर्ज की गई थी। इस साल जनवरी 6.8 एमएम बारिश दर्ज की गई है जो पिछले साल की जनवरी की अपेक्षा अधिक है। लेकिन गेहूं सहित अन्य फसलों के लिए पर्याप्त नहीं है। जनवरी में 16 तारीख को बारिश हुई थी। जिले में 25 हजार हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की बुवाई होती है, जिसमें से मात्र 6 हजार हेक्टेयर पर ही सिंचाई की सुविधा। बाकी भूमि बारिश पर निर्भर है। पिछले करीब एक सप्ताह से घना कोहरा और धुंध ने लोगों को परेशान कर रही है।

गेहूं, लहसुन की फसलों पर प्रभाव पड़ रहा, फसलें पीली पड़ने लगीं
नाहन। जिला सिरमौर में बारिश न होने के चलते उन क्षेत्रों जहां पर सिंचाई सुविधा नहीं है, वहां गेहूं, लहसुन आदि की फसलों पर प्रभाव पड़ रहा है। फसलें पीली पड़ने लगी हैं। किसान बारिश को लेकर आसमान में टकटकी लगाए हुए हैं। हालांकि फिलहाल जिला में बारिश न होने के चलते जल स्तर गिरने नहीं गिरा है। सभी पेयजल व सिंचाई योजनाएं नियमित रूप से चल रही हैं।
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