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यहां रावण की होती है आराधना, न तो रामलीला मंचन और न ही पुतला दहन की परंपरा

रणजीत शर्मा, अमर उजाला, भरमौर (चंबा) Updated Fri, 19 Oct 2018 12:27 PM IST
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In Bharmour Ravana effigy is not burnt Chamba Himachal Pradesh
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दशहरा पर्व पर सत्य की जीत के रूप में रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले जलते हैं, लेकिन उत्तर भारत के प्रसिद्ध मणिमहेश धाम के चौरासी परिसर में पुतला दहन नहीं होता। यहां रावण को महापंडित और शिव का परम भक्त मानकर पूजने की परंपरा है।

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कबायली क्षेत्र भरमौर में स्थित चौरासी परिसर में रामलीला मंचन की परंपरा भी नहीं है। पंडित लक्ष्मण दत्त शर्मा, हरिशरण शर्मा, पंडित मनोज शर्मा, पंडित देसराज शर्मा और सुरेश शर्मा ने बताया कि पांच दशक पूर्व से चौरासी में न तो रामलीला का मंचन होता है और न ही यहां रावण, मेघनाद और कुभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं।

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In Bharmour Ravana effigy is not burnt Chamba Himachal Pradesh

उन्होंने बताया कि शिव नगरी भरमौर में स्थित दशमुखी शिला को रावण की प्रतिमूर्ति के रूप में माना जाता है। उन्होंने बताया कि उनके बुजुर्ग भी रावण को भगवान शिव के प्रिय भक्त के रूप में ही मानते आए हैं। मान्यता है कि शिवभक्ति के लिए रावण का पवित्र कैलाश में प्रवास होता रहता था।

वर्तमान में चौरासी परिसर के भीतर अर्धगंगा के साथ एक कपिलेशर महादेव का लिंग है। उस लिंग के पास ही एक शिला के ऊपर दशमुखी शिला का आकृति अंकित है। जिसे रावण मानकर पूजने की परंपरा है।

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