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Karwa Chauth 2024: नारी मन के संकल्प का उत्सव है करवा चौथ, जानें इसका महत्व मुहूर्त और विधान

गुंजन वार्ष्णेय,ज्योतिषाचार्य Published by: श्वेता सिंह Updated Sat, 19 Oct 2024 01:12 PM IST
सार

करवा चौथ प्रेम का प्रतीक है, विश्वास और समर्पण की शक्ति का पर्व है। यह महज एक व्रत या परंपरा नहीं है, बल्कि नारी मन के संकल्प का उत्सव है। यह एक संकेत है कि प्रेम में विश्वास और समर्पण, दोनों जरूरी हैं।

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Karwa Chauth 2024 Date Time Significance puja muhurat and vidhi
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 20 अक्तूबर, रविवार को 10 बजकर 10 मिनट से प्रारंभ होगी। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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Karwa Chauth Puja Vidhi: यूं तो पृथ्वी पर मानव जीवन की अवधि सीमित है, परंतु मिट्टी का करवा एवं करवा चौथ का विधि-विधान, पति-पत्नी के पंचतत्व से निर्मित नश्वर शरीर को उनकी अजर-अमर आत्मा से जन्म-जन्मान्तरों तक जोड़े रखता है। इसलिए कहा जाता है कि पति-पत्नी का रिश्ता एक जन्म का न होकर सात जन्मों का है। पूर्व जन्म के कर्म अनुसार, विधाता द्वारा निश्चित होने पर दो प्राणी विवाह बंधन में बंधकर परस्पर समर्पित हो जाते हैं। पत्नी का भाग्य पति के भाग्य को प्रभावित करता है, इसलिए जब पत्नियां पूरे मनोयोग से करवा चौथ का व्रत विधि-विधानपूर्वक रखते हुए मन, कर्म और वचन से समर्पित हो करवा माता की पूजा कर चंद्र को अर्घ्य देती हैं तो न केवल पति की आयु वृद्धि होती है, बल्कि उसका भाग्य भी चमक उठता है।
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मिट्टी का करवा
आधुनिक युग में मिट्टी के करवे की जगह धातु से बने करवे ने ले ली है। पहले के समय में मिट्टी के करवे का उपयोग पंचतत्व को समन्वित करता था। करवा चौथ के दिन मिट्टी के करवे से पानी पिलाकर पति-पत्नी अपने रिश्ते में पंचतत्व और परमात्मा को साक्षी बनाते थे।
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आज भी पुरानी परंपरा अनुसार, किसी-किसी जगह मिट्टी के करवे से ही पानी पिलाने की परंपरा है, जो भूमि और जल तत्व का प्रतीक है। इस करवे को धूप और हवा में सुखाया जाता है, जो आकाश और वायु तत्व का प्रतीक है। करवे को अग्नि में तपाकर बनाने के कारण इसमें अग्नि तत्व भी समाहित होता है। इन्हीं पांच तत्वों का समन्वय जीवन में खुशियों के लिए आवश्यक है। सुहागिन स्त्रियों के मुख्य पर्व करवा चौथ का नामकरण करवा यानी मिट्टी के कलश से होने का एक कारण यह भी है कि पति-पत्नी का रिश्ता करवे की मिट्टी की तरह बहुत नाजुक होता है, जो किसी भी गलतफहमी के कारण टूट सकता है। करवा चौथ का विधि-विधान, व्रत-उपवास पति-पत्नी के नाजुक रिश्ते को लंबे समय तक जोड़े रखने की क्षमता रखता है। मिट्टी का करवा नाशवान होते हुए भी रिश्तों की गहराई और मूल्यों का प्रतीक है। मिट्टी की प्रकृति में लचीलापन और स्थिरता होती है, जो रिश्तों में भी होनी चाहिए।

शुभ मुहूर्त और विधान
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, 20 अक्तूबर दिन रविवार को पतिव्रता स्त्रियां अपने पति की मंगलकामना एवं आयु वृद्धि के लिए करवा चौथ का व्रत रखेंगी। स्त्रियां निराहार रहकर सायंकाल को श्रीगणेश पूजन, करवा माता पूजन, शिव-पार्वती पूजन एवं चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान कर पति का सम्मान करने के बाद ही स्वयं भोजन करती हैं। इस वर्ष कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 20 अक्तूबर, रविवार को 10 बजकर 10 मिनट से प्रारंभ होगी, जिसके चलते रविवार को करवा चौथ का व्रत विधि-विधान से सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा संपन्न किया जाएगा। चंद्रोदय रात्रि 7 बजकर 40 मिनट के बाद होगा। अलग-अलग स्थानों पर चंद्रोदय के समय में कुछ भिन्नता संभव है।

सतीत्व द्वारा पति की रक्षा
करवा चौथ व्रत की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। सभी कथाओं में स्त्री के सतीत्व द्वारा पति की रक्षा का संदर्भ आता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, देवता और दैत्यों के महासंग्राम में जब देवता लगातार परास्त हो रहे थे, तब ब्रह्मा जी की सलाह पर देव पत्नियों ने अपने पतियों की जीत के लिए कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को उपवास रखकर सच्चे मन से प्रार्थना की थी,
जिसके परिणामस्वरूप देवताओं ने विजय प्राप्त की। इसी प्रकार सावित्री-सत्यवान की कथा, करवा नामक पतिव्रता स्त्री की कथा, द्रौपदी की कथा, गणेश पूजा और वीरावती नामक स्त्री की कथाएं सर्वाधिक प्रचलित हैं। करवा चौथ व्रतोत्सव महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित परंपरा एवं विधि-विधान के अनुसार ही करती हैं।

जिनका पहला व्रत है
सौभाग्य, मन की शांति, धन-धान्य, पति की रक्षा एवं संकट निवारण के लिए चंद्रमा की पूजा का विधान है। करवा चौथ का संबध चंद्रमा से है। इस बार करवा चौथ के दिन चंद्रमा अपनी उच्च वृष राशि में रहेगा। इस बार जिन सुहागिनों का प्रथम करवा चौथ व्रत होगा, उनके लिए इस बार का व्रत विशेष फलदायी है, क्योंकि वे सर्वप्रथम उच्च के चंद्रमा का दर्शन करेंगी। चंद्रमा का उच्च वृष राशि में होना व्रत खोलने के समय वर्ष भर शुभता प्रदान करेगा।

चंद्र दर्शन बेहद जरूरी
करवा चौथ के दिन चंद्रमा के दर्शन करना अतिआवश्यक होता है। इस दिन सभी व्रती महिलाओं को चंद्रमा के निकलने का बेसब्री से इंतजार रहता है, क्योंकि महिलाएं चंद्र दर्शन, अर्घ्य, पूजन के बाद ही व्रत खोलती हैं। चंद्रमा के पूजन से दीर्घायु और पति-पत्नी के बीच प्रेम में वृद्धि होती है। चंद्रमा मन के विचारों को नियंत्रित करता है, इसलिए चंद्रमा का पूजन स्त्रियों के मन की चंचलता को दूर करता है। चंद्रमा और मन की संकल्प शक्ति का सीधा संबंध है, इसलिए स्त्रियां करवा चौथ के दिन अपने मन की संकल्प शक्ति को बढ़ाने के लिए पूरे मनोयोग से इस व्रत को नियमपूर्वक धारण करती हैं। चंद्रमा की पूजा मन के अंधकार रूपी विष को दूर करती है, इसलिए करवा चौथ का निर्जला व्रत मन के विकारों को दूर करने का महापर्व है।



डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। 
 
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