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Rama Ekadashi 2025: चातुर्मास की आखिरी एकादशी, जानिए महत्व, पूजाविधि और पौराणिक कथा

धर्म डेस्क, अमर उजाला Published by: विनोद शुक्ला Updated Mon, 13 Oct 2025 04:07 PM IST
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सार

Rama Ekadashi 2025: कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। रमा का अर्थ लक्ष्मी से है। इसलिए इस दिन लक्ष्मी जी के साथ-साथ विष्णु जी के केशव स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती हैं। यह चातुर्मास की आखिरी एकादशी भी हैं।

Rama Ekadashi 2025 Date Puja Vidhi Vishnu Lakshmi Worship For Get Wealth
रमा एकादशी पर ऐसे करें भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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Rama Ekadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। रमा का अर्थ लक्ष्मी से है। इसलिए इस दिन लक्ष्मी जी के साथ-साथ विष्णु जी के केशव स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती हैं। यह चातुर्मास की आखिरी एकादशी भी हैं। पंचांग के अनुसार, रमा एकादशी तिथि का प्रारंभ 16 अक्टूबर दिन शुक्रवार को सुबह 10 बजकर 35 मिनट से हो रहा है और इस तिथि का समापन 17 अक्टूबर दिन शनिवार को सुबह 11 बजकर 12 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर रमा एकादशी 17 अक्टूबर, शुक्रवार को है।  

 
रमा एकादशी व्रत का महत्व
शास्त्रों के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्रीकृष्ण सभी पापों से मानव को मुक्त करने वाली पावन रमा एकादशी के महात्म्य के बारे में बताते हैं। जो मनुष्य साल भर आने वाली एकादशी तिथि के व्रत धारण नहीं कर पाता है वो महज इस एकादशी का व्रत रखने से ही जीवन की दुर्बलता और पापों से मुक्ति पाकर सुखमय जीवन जीने लगता हैं। पद्म पुराण में उल्लेख है कि जो फल कामधेनु और चिन्तामणि से प्राप्त होता है उसके समतुल्य फल रमा एकादशी के व्रत रखने से प्राप्त हो जाता हैं। सभी पापों का नाश करने वाली और कर्मों का फल देने वाली रमा एकादशी का व्रत रखने से धन धान्य की कमी भी दूर हो जाती हैं। रमा एकादशी पर पूजा के लिए संध्या काल दीपदान करने से देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं एवं इससे सुख-समृद्धि, धन में वृद्धि होती है और समस्त बिगड़े काम बन जाते हैं।
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रमा एकादशी पूजाविधि
इस दिन सुबह उठकर पवित्र नदियों में या घर पर ही सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि कार्य करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक कर पीला चन्दन,अक्षत,मोली,फल,फूल,मेवा,तुलसी दल आदि अर्पित करें एवं लक्ष्मी-नारायण की धूप व दीप से आरती उतारनी चाहिए। इसके बाद एकादशी की कथा सुननी चाहिए,एवं 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जितना संभव हो जप करें।

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रमा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में मुचकुंद नाम का दानी और धर्मात्मा राजा राज्य करता था,वह भगवान विष्णु का परम भक्त था, इसलिए वह और उसकी समस्त प्रजा एकादशी व्रत करती थी।उसकी कन्या  चन्द्रभागा विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ जो राजा मुचकुंद के साथ ही रहता था।एकादशी के दिन सभी के साथ-साथ शोभन ने भी व्रत किया, परन्तु उससे भूख सहन नहीं हुई और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया।चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ।

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एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचेचंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ। एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे। उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया। ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ। तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई।  

चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी। वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची। चंद्रभागा मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची। अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया। तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।


 
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