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Rama Ekadashi Vrat Katha: जब चंद्रभागा ने शोभन को दिलाया स्वर्ग, जानिए रमा एकादशी व्रत की यह दिव्य कथा

धर्म डेस्क, अमर उजाला Published by: श्वेता सिंह Updated Fri, 17 Oct 2025 07:17 AM IST
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सार

Rama Ekadashi Raja Muchkand Ki Katha: रमा एकादशी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है, जो मोक्ष और भगवान विष्णु की कृपा का मार्ग है। श्रद्धा से किया गया यह व्रत सभी कष्टों से मुक्ति दिलाकर बैकुंठ धाम तक पहुंचाने वाला माना जाता है।

Rama Ekadashi 2025 Vrat Katha in Hindi Why King Muchukund Story Matters for This Auspicious Day
Rama Ekadashi Vrat Katha In Hindi - फोटो : amar ujala
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विस्तार
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Rama Ekadashi 2025 Vrat Katha In Hindi: हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार यह पावन तिथि शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025 को पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रमा एकादशी का व्रत न केवल सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि भक्त को मोक्ष का मार्ग भी प्रदान करता है। कहा जाता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने वाले साधक को विष्णुलोक यानी बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा के साथ रमा एकादशी व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए, जिससे व्रत पूर्ण माना जाता है और संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है। आइए, जानते हैं इस व्रत की पौराणिक कथा और इसका आध्यात्मिक महत्व।

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रमा एकादशी व्रत कथा 
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे प्रभु, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है? इस दिन व्रत करने से क्या फल प्राप्त होते हैं?”

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर! इस एकादशी को ‘रमा एकादशी’ कहा जाता है। इसका व्रत करने से न केवल इस जन्म के पाप मिटते हैं, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस व्रत की एक पवित्र कथा है जो बहुत प्रेरणादायक है।”

बहुत समय पहले की बात है, एक सत्यवादी और विष्णु भक्त राजा हुआ करते थे, जिनका नाम मुचुकुंद था। उनकी एक बेटी थी जिसका नाम चंद्रभागा था। चंद्रभागा का विवाह एक दूसरे राज्य के राजकुमार शोभन से हुआ था।

राजा मुचुकुंद के राज्य में एकादशी का बहुत सख्त नियम था — हर कोई इस दिन निर्जला व्रत करता था (बिना जल और अन्न के)। कोई भी भोजन नहीं करता था, न ही किसी घर में उस दिन खाना बनता था।

राजा की यह आज्ञा सभी के लिए समान थी, लेकिन चंद्रभागा के पति शोभन का शरीर बहुत कमजोर था। अगर वह भूखा-प्यासा रहा तो उसकी जान जा सकती थी। फिर भी, शोभन ने नियम और भक्ति दोनों का पालन करने का निश्चय किया और एकादशी व्रत का संकल्प ले लिया।

चंद्रभागा को चिंता थी कि उनके पति बिना कुछ खाए कैसे व्रत पूरा करेंगे, लेकिन उन्होंने भी भगवान पर भरोसा रखा। व्रत करते हुए जब द्वादशी (अगले दिन) आई, तो पारण से पहले ही भूख-प्यास से शोभन की मृत्यु हो गई। चंद्रभागा बहुत दुखी हो गई, लेकिन भगवान की लीला अलग ही थी।

चूंकि शोभन ने सच्ची श्रद्धा से रमा एकादशी का व्रत किया था, इसलिए भगवान विष्णु की कृपा से उसे अगले जन्म में मंदराचल पर्वत पर एक राज्य प्राप्त हुआ और वह वहाँ का राजा बना।

कुछ समय बाद राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पहुंचे और वहाँ उन्होंने अपने पूर्व दामाद शोभन को राजा के रूप में देखा। उन्होंने यह बात चंद्रभागा को बताई। जब चंद्रभागा को यह पता चला तो वह अत्यंत प्रसन्न हुई और उसने भी श्रद्धापूर्वक रमा एकादशी व्रत किया।

व्रत का फल उसे भी मिला और अंत में वह अपने पति शोभन के साथ रहने के लिए स्वर्ग चली गई।
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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