Vat Savitri Vrat Niyam: अगर पहली बार रख रहे हैं वट सावित्री व्रत, तो जान लें इसके नियम
Vat Savitri Vrat Rules: यदि आप पहली बार वट सावित्री व्रत रख रही हैं, तो इस व्रत के दौरान कुछ खास नियमों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इन नियमों को जानकर आप व्रत को पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक कर सकती हैं, जिससे आपके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास हो।


विस्तार
Mistakes Avoid During Vat Vrat: हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए श्रद्धा और आस्था के साथ करती हैं। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है, और इसे बड़े श्रद्धा भाव से किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, वट सावित्री व्रत करने वाली महिलाएं अखंड सुहाग का वरदान प्राप्त करती हैं।
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यदि आप पहली बार वट सावित्री व्रत रख रही हैं, तो इस व्रत के दौरान कुछ खास नियमों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इन नियमों को जानकर आप व्रत को पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक कर सकती हैं, जिससे आपके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास हो। आइए जानते हैं वह महत्वपूर्ण नियम कौन से हैं, जिन्हें वट सावित्री व्रत करते समय ध्यान में रखना चाहिए।
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- वट सावित्री व्रत करने से पहले, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप सुबह उठकर शुद्ध होकर स्नान करें। इसके बाद, लाल रंग की साड़ी पहनें और श्रृंगार करें।
- शुभ मुहूर्त में वट वृक्ष के पास जाएं और वहां पहले सफाई करें। इसके बाद, वट वृक्ष की जड़ों में गंगाजल छिड़कें, जो व्रत की पवित्रता और सफाई का प्रतीक होता है।
- वट सावित्री व्रत में दो बांस की टोकरी लेनी चाहिए। एक टोकरी में ब्रह्मा जी की मूर्ति रखें और दूसरी टोकरी में सावित्री और सत्यवान की तस्वीर या चित्र रखें। ब्रह्मा जी की मूर्ति का मतलब सृजन और जीवन की शुरुआत से है, जबकि सावित्री और सत्यवान की पूजा से जीवन और सौभाग्य की दीर्घता की कामना होती है।
- पूजा के दौरान वट वृक्ष की जड़ों में जल और कच्चा दूध अर्पित करें। इसके अलावा, चावल के आटे से पीठा लगाएं। यह सब पूजा की सामग्री सकारात्मक ऊर्जा के रूप में वट वृक्ष में समाहित होती है।
- इसके साथ ही रोली, सिंदूर, अक्षत, पान, सुपारी, फूल, फल, बताशे आदि सामग्री भी व्रत में चढ़ानी चाहिए, जो घर में सुख-शांति और समृद्धि लाती हैं।
- वट वृक्ष के चारों ओर 7 बार परिक्रमा करें। परिक्रमा करना मानसिक शांति और समर्पण को दर्शाता है। इसके बाद, वट वृक्ष में कच्चा सूत या कलावा लपेटें। यह आपके व्रत की पवित्रता और सौभाग्य को दर्शाता है।
- पूजा के दौरान या पूजा के बाद, वट सावित्री की कथा पढ़ें। इस कथा में सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से जीवनदान दिलवाया था। यह कथा पतिव्रता धर्म और निष्ठा का प्रतीक है, जो इस व्रत के माध्यम से महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती है।
- पूजा के बाद, व्रत करने वाली महिलाएं सुहागिनों को श्रृंगार सामग्री, फल, और अनाज का दान करती हैं। यह दान पुण्य का काम करता है और व्रत का उद्देश्य पूरा करने में मदद करता है। दान करने से व्रत का महत्व और बढ़ जाता है, और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- वट सावित्री व्रत का पारण 11 भीगे हुए चनों का सेवन करके करना चाहिए। यह पारण व्रत का समापन होता है और यह आपके व्रत की सफलता को सुनिश्चित करता है। यह आपके पूरे दिन के उपवास और पूजा के परिणामस्वरूप शरीर को ऊर्जा देता है और व्रत के समापन की खुशी को भी दर्शाता है।

वट पूजा का महत्व
वट या बरगद का पेड़ अमरता का प्रतीक माना जाता है। यह एक बहुत पुराना और विशाल वृक्ष होता है, जो दशकों तक जीवित रहता है। इसे व्रत के दौरान पूजा जाता है क्योंकि यह पति की लंबी उम्र और जीवन में स्थिरता की कामना का प्रतीक है। वट वृक्ष की जड़ें, तना और शाखाएं विभिन्न देवताओं का निवास मानी जाती हैं, जो व्रती के जीवन में आशीर्वाद और समृद्धि लाते हैं। इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती है, क्योंकि यह पेड़ वर्षों तक अडिग और स्थिर रहता है, जो पति की लंबी उम्र की कामना से जुड़ा होता है। वट वृक्ष में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का वास माना जाता है, जिससे इस व्रत की शक्ति और प्रभाव बढ़ जाता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करती हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।