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Samvad 2023: पैरा तीरंदाज शीतल-राकेश बोले; किसी में कोई कमी नहीं होती, बस मेहनत करने की जरूरत होती है

स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, जम्मू Published by: शक्तिराज सिंह Updated Thu, 30 Nov 2023 01:04 PM IST
सार

पैरा तीरंदाज शीतल देवी देश के सबसे बेहतरीन पैरा तीरंदाजों में से एक हैं। हाल ही में पैरा एशियाई खेलों में शीतल ने दो स्वर्ण सहित तीन पदक जीते थे। वहीं, राकेश देश के लिए स्वर्ण पदक की हैट्रिक लगा चुके हैं।

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Amar Ujala Samvad 2023: Para Archer Sheetal devi and Rakesh Kumar in Amar Ujala Smavad
पैरा तीरंदाज राकेश कुमार और शीतल देवी - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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जम्मू-कश्मीर में अमर उजाला संवाद 2023 जारी है। कार्यक्रम में उद्योग, खेल, आध्यात्मिक, शिक्षा और मनोरंजन से जुड़ीं हस्तियां जुड़ेंगी और जम्मू-कश्मीर के विकास की संभावनाओं पर मंथन करेंगी। भारत के पैरा तीरंदाज शीतल देवी और राकेश कुमरा भी कार्यक्रम में पहुंचे और खेल से जुड़ी यादों को साझा किया। शीतल के दोनों हाथ नहीं हैं, जबकि राकेश को हादसे में अपने पैर गंवाने पड़े थे। हालांकि, इन दोनों का मानना है कि किसी भी इंसान में कोई कमी नहीं होती है, बस मेहनत करने की जरूरत होती है और आप सब कुछ हासिल कर सकते हैं। 
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सवालः आपके साथी बोलते हैं कि आप रैंकिंग समझती नहीं हैं, क्या कहती हैं इस पर?
जवाबः मुझे एहसास नहीं है कि मैं नंबर एक हूं और मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। (जनता से शोर के साथ शीतल का स्वागत किया)

सवालः आपने ये सपना कैसे देखा, कैसे ये कर पाई?
जवाबः शुरुआत में मैं निशाना नहीं लगा पाती थी, जबकि दूसरे लोग ऐसा करते थे। उस समय मुझे बहुत दुख होता था। हालांकि, मेरे कोच ने और अभिलाषा जी ने मेरा हौसला बढ़ाया और मैं यह कर पाई।

शीतल ने आगे बताया कि वह सिर्फ पैर से ही पेड़ पर चढ़ जाती हैं। उन्होंने कहा "मैंने जो मशीन लगाया था अपने पैरों में उसे लगाकर लगता था कि मैं कुछ कर पाऊंगी। जब मैंने उसे लगाया तो मुझे भारी लगने लगे वो। फिर मैंने खोलकर रख दिए। मैं शुरू से ही पैर से ही काम करती थी। पढ़ती लिखती खेलती यहां तक की पैर की मदद से पैर भी चढ़ जाती थी।"

पैरा तीरंदाज शीतल देवी देश के सबसे बेहतरीन पैरा तीरंदाजों में से एक हैं। हाल ही में शीतल ने दो स्वर्ण सहित तीन पदक जीते थे। बिना बाजुओं की तीरंदाज शीतल देवी को साल 2023 में एशिया की सर्वश्रेष्ठ युवा एथलीट चुना गया। शीतल ने कहा कि उन्हें पेड़ पर चढ़ने में डर नहीं लगता।

शीतल बचपन में लकड़ी से धनुष बनाती थीं और अपने भाई-बहनों के साथ खेलती थीं। हालांकि, वह काफी हल्का होता था और उसे पैर से उठाने में परेशानी नहीं होती थी। अब उन्हें पैर से काफी वजनी धनुष उठाना पड़ता है। अब उन्हें इसकी आदत हो गई है और वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमाल कर रही हैं।

शीतल ने आगे कहा कि पहले मेरा निशाना नहीं लगता था तो बहुत बुरा लगता था। ऐसे में कोच ने कहा कि अगर हिम्मत हार गए तो नहीं कर पाओगे। ऐसे में मैने ठान लिया कि मुझे यह करना है। मैंने कोच की बात मानी और मेरे तीर निशाने पर लगने लगे। यहां से उनका हौसला बढ़ा। इसके बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर सामान्य तीरंदाजों के साथ प्रतियोगिता में रजत पदक जीतने पर सफल रहीं। यहां से उनका हौसला बढ़ा और इससे उन्हें और भी ज्यादा मेहनत करने की प्रेरणा मिली।

शीतल ने बताया कि शुरुआत में उनका निशाना अच्छा नहीं था। ऐसे में कोच ने बहुत सपोर्ट किया। उन्होंने कहा कि करना है कि करना है। इसी वजह से वह ऐसा कर पाईं। उन्होंने कहा कि उनकी जिंदगी में जो भी लोग आए, सभी बहुत अच्छे थे। उन्हीं की वजह से वह अब स्टार बन पाई हैं।

अपने माता-पिता को लेकर शीतल ने कहा कि उनके माता-पिता ने कभी भी ऐसा नहीं सोचा कि शीतल कुछ नहीं कर पाएगी। अगर दूसरे दिव्यांग लड़के भी कोशिश करेंगे तो एक न एक दिन सफल होंगे। उनके माता-पिता अगर समर्थन करेंगे तो वह सब कुछ हासिल करने में सफल होंगे।

राकेश कुमार ने अपनी तीरंदाजी को लेकर कहा कि जब आप स्वर्ण पदक जीतते हैं और तिरंगा लेकर आप वहां पहुंचते हैं। ऐसे में राष्ट्रगान बजता है तो यह सबसे ज्यादा गर्व की बात होती है। श्री माता देवी वैष्णो श्राइन बोर्ड पहला ऐसा ट्रस्ट है, जिसने खेलों को इतना बढ़ावा दिया है। इस ट्रस्ट के खिलाड़ी 200 से ज्यादा पदक जीत चुके हैं। हमारे कोच न को छुट्टी लेते हैं और न ही लेने देते हैं। साल में 365 दिन अभ्यास करने का नतीजा है कि हम लगातार अच्छा कर रहे हैं।

राकेश कुमार ने कहा कि 2017 में उनका एक्सिडेंट हुआ था। उससे पहले तक वह प्लंबर थे। यहां उनकी मुलाकात कोच से हुई और यहां से उनकी कहानी शुरू हुई। एक साल बाद उन्होंने देश के लिए पहला स्वर्ण जीता। बचपन में क्रिकेट खेलने वाले राकेश ने कहा कि जात से लुहार हूं और अपने पहले पैरा नेशनल में वह 17वें स्थान पर थे। यहां से उन्हें पता चला कि उनका स्तर कहां है और उन्हें कहां तक जाना है। उन्होंने 33 साल की उम्र में तीरंदाज बनने का सपना देखा और 38 साल की उम्र में 14 पदक जीत चुके हैं।

उन्होंने आगे कहा कि शीतल के अनुसार कमी किसी में नहीं होती। बस हमें अपने मन का ठान लेने की जरूरत होती है। पैरा एथलेटिक्स में 27 इवेंट होते हैं। तीरंदाजी उनमें से एक है। आप चाहें तो बाकी 26 इवेंट भी चुन सकते हैं। आपको हमेशा अपने कोच की बात माननी होती है। अगर आप कोच की बात नहीं मानते हैं तो आपका पतन तय है। 

विश्व रैंकिंग में तीसरे स्थान पर मौजूद राकेश ने कहा कि पिछले दो साल में हमारे तीरंदाजों का स्तर ऊपर हुआ है। हमारे नेता और अधिकारी सभी खिलाड़ियों को काफी प्रोत्साहित करते हैं। खेलो इंडिया के आने से जमीनी स्तर पर खिलाड़ियों को मदद मिल रही है और खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक रहे हैं।

चयन प्रकिया को लेकर राकेश ने कहा कि जम्मू कश्मीर में प्रतिभा की कमी नहीं हैं। उसको सामने लाने और निखारने के लिए सरकार को काम करना चाहिए। ऐसा हुआ तो हमारा प्रदर्शन और आगे बढ़ेगा।

फिटनेस को लेकर राकेश ने कहा कि वह ज्यादा एक्सरसाइज नहीं कर सकते, लेकिन वह रोज सुबह पांच बजे हर हाल में उठ जाते हैं। इसके बाद वह 1-2 कोलोमीटर व्हील चेयर चलाते हैं। योगा कर लेते हैं और खान-पान का ध्यान रखना है। वहीं, शीतल ने कहा कि मुझे कोच ने सिखाया है कि हमेशा अनुशासन में रहें। सुबह हम मेडिटेसन करते हैं, स्ट्रेचिंग करते हैं और शाम को दौड़ते हैं। हमारे कोच कहते हैं कि अपने खेल पर जितना ज्यादा ध्यान दोगे, उतना सफल रहोगे।

राकेश ने पैरा खिलाड़ियों की चुनौतियों को लेकर कहा कि शुरुआत में लगता था कि हमारे सामने मुश्किलें हैं। हालांकि, बाद में हमने यह मान लिया कि यही हमारी जिंदगी है। अगर आपने यह मान लिया कि कुछ भी मुश्किल नहीं है तो आप कुछ भी कर सकते हैं, कोई चुनौती नहीं होती है।

राकेश ने खुद को लेकर कहा कि वह लंबे समय तक खेलना चाहते हैं। वह खुद को स्टार नहीं मानते हैं। वहीं, शीतल ने कहा कि उन्हें शोहरत से मतलब नहीं है। वह खेलना पसंद करती हैं। राकेश ने कहा कि उनका सपना पैरालंपिक मेडल जीतना है। 

शीतल ने कहा कि उन्हें आईसक्रीम बहुत पसंद है। मेरे कोच ने मुझे सबसे ज्यादा प्रेरित किया। दोनों खिलाड़ियों ने कहा कि उनका सपना अभी शुरू हुआ है और आगे इसे और आगे ले जाना है। अंत में शीतल ने कहा कि किसी में कोई कमी नहीं होती बस मेहनत करने की जरूरत होती है।

जन्म से नहीं हैं दोनों हाथ
वर्ल्ड आर्चरी (तीरंदाजी की सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय संस्था) के अनुसार बिना बाजुओं के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी करने वाली शीतल दुनिया की पहली महिला तीरंदाज हैं। शीतल पहली बार सुर्खियों में तब आईं जब उन्होंने इस वर्ष विश्व पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप में पदक जीता, लेकिन दुनिया की नजरों में वह हांगझोऊ पैरा एशियाई खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतकर छाईं। उनका स्वर्ण पदक पर निशाना साधते हुए वीडियो जमकर वायरल हुआ। जन्म से हाथ नहीं होने के बावजूद शीतल पैर, कंधे और मुंह के सहारे धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर निशाना लगाती हैं।
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