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AI Data Centre: पूरी दुनिया में बिके जितने लीटर बोतल बंद पानी, उससे ज्यादा गटक गए AI डेटा सेंटर, पढ़ें रिपोर्ट
टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Wed, 24 Dec 2025 03:08 PM IST
सार
AI Water Consumption: एआई तकनीक जितनी तेजी से बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से इसका पर्यावरण पर असर भी सामने आ रहा है। एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि AI डेटा सेंटर्स अब पूरी दुनिया में इस्तेमाल होने वाले बोतलबंद पानी से भी ज्यादा पानी की खपत कर रहे हैं।
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एआई गटक रहा करोड़ों लीटर पानी
- फोटो : AI
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विस्तार
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को लेकर अब तक चर्चा इसके फायदे और भविष्य को लेकर होती रही है। एआई भले ही ऑफिस के काम से लेकर नौकरी पाने तक में आपकी मदद कर रहा हो, लेकिन इससे होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को अनदेखा करने के गंभीर नुकसान होंगे। हाल ही में प्रकाशित एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, AI इंडस्ट्री की पानी की खपत अब दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले बोतलबंद पानी से भी ज्यादा हो चुकी है।
डेटा सेंटर गटक रहे अथाह पानी
डच शोधकर्ता एलेक्स डी व्रीज-गाओ के नेतृत्व में की गई इस स्टडी में बताया गया है कि बड़े लैंग्वेज मॉडल और जनरेटिव AI टूल्स को चलाने वाले विशाल डेटा सेंटर्स सर्वरों को ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं। रिसर्च के अनुसार, AI सेक्टर हर साल लगभग 450 अरब लीटर से भी ज्यादा पानी गटक रहा है, जो कि वैश्विक स्तर पर बोतलबंद पानी की कुल खपत से अधिक है। इसकी सबसे बड़ी वजह हाई-परफॉर्मेंस चिप्स हैं, जैसे Nvidia की चिप्स, जो AI मॉडल की ट्रेनिंग और इस्तेमाल के दौरान बहुत ज्यादा गर्मी पैदा करती हैं।
यह भी पढ़ें: एआई के इस्तेमाल में भारत ने गाड़ दिए झंडे, ‘AI एडवांटेज स्कोर' में मिली नंबर-1 की रैंकिंग
अधिक गर्म होकर चिप्स खराब न हों इसलिए गर्मी से बचाने के लिए डेटा सेंटर्स में वॉटर कूलिंग सिस्टम लगाए जाते हैं, जिनमें पानी के वाष्पीकरण के जरिए सिस्टम को ठंडा किया जाता है। कई मामलों में यह पानी स्थानीय सरकारी वाटर सप्लाई या पहले से दबाव झेल रहे भूजल स्रोतों से लिया जाता है।
AI से हर चैट बढ़ाती है पानी की खपत
स्टडी में टेक कंपनियों की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए गए हैं। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और मेटा जैसी कंपनियां भले ही 2030 तक वॉटर पॉजिटिव बनने का दावा कर रही हों, लेकिन AI के बढ़ते इस्तेमाल के साथ उनकी वास्तविक पानी की खपत तेजी से बढ़ी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक साधारण चैटबॉट से बातचीत करने पर भी डेटा सेंटर करीब 500 मिलीलीटर (आधा लीटर) पानी की खपत हो सकती है। एक अन्य रिसर्च में दावा किया गया कि सिर्फ अमेरिका में 2023 के दौरान एआई डेटा सेंटरों ने करीब 66 अरब लीटर पानी खर्च किया।
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डेटा सेंटर गटक रहे अथाह पानी
डच शोधकर्ता एलेक्स डी व्रीज-गाओ के नेतृत्व में की गई इस स्टडी में बताया गया है कि बड़े लैंग्वेज मॉडल और जनरेटिव AI टूल्स को चलाने वाले विशाल डेटा सेंटर्स सर्वरों को ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं। रिसर्च के अनुसार, AI सेक्टर हर साल लगभग 450 अरब लीटर से भी ज्यादा पानी गटक रहा है, जो कि वैश्विक स्तर पर बोतलबंद पानी की कुल खपत से अधिक है। इसकी सबसे बड़ी वजह हाई-परफॉर्मेंस चिप्स हैं, जैसे Nvidia की चिप्स, जो AI मॉडल की ट्रेनिंग और इस्तेमाल के दौरान बहुत ज्यादा गर्मी पैदा करती हैं।
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अधिक गर्म होकर चिप्स खराब न हों इसलिए गर्मी से बचाने के लिए डेटा सेंटर्स में वॉटर कूलिंग सिस्टम लगाए जाते हैं, जिनमें पानी के वाष्पीकरण के जरिए सिस्टम को ठंडा किया जाता है। कई मामलों में यह पानी स्थानीय सरकारी वाटर सप्लाई या पहले से दबाव झेल रहे भूजल स्रोतों से लिया जाता है।
AI से हर चैट बढ़ाती है पानी की खपत
स्टडी में टेक कंपनियों की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए गए हैं। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और मेटा जैसी कंपनियां भले ही 2030 तक वॉटर पॉजिटिव बनने का दावा कर रही हों, लेकिन AI के बढ़ते इस्तेमाल के साथ उनकी वास्तविक पानी की खपत तेजी से बढ़ी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक साधारण चैटबॉट से बातचीत करने पर भी डेटा सेंटर करीब 500 मिलीलीटर (आधा लीटर) पानी की खपत हो सकती है। एक अन्य रिसर्च में दावा किया गया कि सिर्फ अमेरिका में 2023 के दौरान एआई डेटा सेंटरों ने करीब 66 अरब लीटर पानी खर्च किया।
डेटा सेंटर (सांकेतिक)
- फोटो : सोशल मीडिया
डेटा सेंटर से बढ़ रहा स्थानीय जल संकट
यह संकट सिर्फ तकनीक तक सीमित नहीं है। कई डेटा सेंटर्स ऐसे इलाकों में बनाए गए हैं जहां पहले से ही पानी की कमी है। इससे स्थानीय लोगों और कृषि क्षेत्र के साथ टकराव की स्थिति बन रही है। शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर हार्डवेयर की दक्षता नहीं बढ़ाई गई और ऐसे कूलिंग सिस्टम नहीं अपनाए गए जो पानी को दोबारा इस्तेमाल कर सकें, तो AI का वाटर फुटप्रिंट आने वाले समय में और खतरनाक हो सकता है।
यह भी पढ़ें: मोनोपॉली नहीं 'डुओपॉली' है चुनौती: मोबाइल रिचार्ज से लेकर ऑनलाइन फूड-टैक्सी तक में नहीं हैं दो से ज्यादा ऑप्शन
AI में बढ़ते निवेश के चलते अब बड़े-बड़े डेटा सेंटर एशिया, यूरोप और अमेरिका जैसे इलाकों में बनाए जा रहे हैं। ये वही क्षेत्र हैं, जहां पहले से ही सूखा, पानी की कमी और जमीन के नीचे के जल स्तर में गिरावट की समस्या मौजूद है।
आखिर एआई को इतनी प्यास क्यों लगती है?
एआई को चलाने के लिए विशाल डेटा सेंटर्स की जरूरत होती है। इन सेंटर्स में शक्तिशाली चिप्स लगे होते हैं, जो डेटा प्रोसेसिंग के दौरान इतनी गर्मी पैदा करते हैं कि उन्हें ठंडा रखना एक बड़ी चुनौती बन जाता है। सर्वर को जलने से बचाने के लिए पानी पर आधारित कूलिंग सिस्टम का इस्तेमाल होता है। यह पानी वाष्पित होकर सिस्टम को ठंडा रखता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि जैसे-जैसे डेटा सेंटर्स की संख्या बढ़ेगी, दुनियाभर में जल संसाधनों पर भी दबाव बढ़ेगा और इससे स्थानीय स्तर पर जल संकट गहराता जाएगा।
यह संकट सिर्फ तकनीक तक सीमित नहीं है। कई डेटा सेंटर्स ऐसे इलाकों में बनाए गए हैं जहां पहले से ही पानी की कमी है। इससे स्थानीय लोगों और कृषि क्षेत्र के साथ टकराव की स्थिति बन रही है। शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर हार्डवेयर की दक्षता नहीं बढ़ाई गई और ऐसे कूलिंग सिस्टम नहीं अपनाए गए जो पानी को दोबारा इस्तेमाल कर सकें, तो AI का वाटर फुटप्रिंट आने वाले समय में और खतरनाक हो सकता है।
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AI में बढ़ते निवेश के चलते अब बड़े-बड़े डेटा सेंटर एशिया, यूरोप और अमेरिका जैसे इलाकों में बनाए जा रहे हैं। ये वही क्षेत्र हैं, जहां पहले से ही सूखा, पानी की कमी और जमीन के नीचे के जल स्तर में गिरावट की समस्या मौजूद है।
आखिर एआई को इतनी प्यास क्यों लगती है?
एआई को चलाने के लिए विशाल डेटा सेंटर्स की जरूरत होती है। इन सेंटर्स में शक्तिशाली चिप्स लगे होते हैं, जो डेटा प्रोसेसिंग के दौरान इतनी गर्मी पैदा करते हैं कि उन्हें ठंडा रखना एक बड़ी चुनौती बन जाता है। सर्वर को जलने से बचाने के लिए पानी पर आधारित कूलिंग सिस्टम का इस्तेमाल होता है। यह पानी वाष्पित होकर सिस्टम को ठंडा रखता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि जैसे-जैसे डेटा सेंटर्स की संख्या बढ़ेगी, दुनियाभर में जल संसाधनों पर भी दबाव बढ़ेगा और इससे स्थानीय स्तर पर जल संकट गहराता जाएगा।