Sam Altman On AI: क्या इंसानों को खत्म कर देगा एआई? ChatGPT को बनाने वाले सैम अल्टमैन ने कही यह बड़ी बात
सैम अल्टमैन भारत दौरे पर हैं। भारत में अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने एआई से जुड़ी चुनौतियां और भविष्य में इसके क्या परिणाम हो सकते हैं। इसको लेकर कई बड़ी बातें कही हैं।


विस्तार
इन दिनों ओपनएआई के सीईओ सैम अल्टमैन भारत में हैं और एआई से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात कर रहे हैं। चैटजीपीटी की सफलता के बाद दुनिया भर में सैम अल्टमैन का नाम काफी तेजी से लोकप्रिय हुआ है। साल 2015 में सैम अल्टमैन और एलन मस्क ने मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर रिसर्च करने वाली कंपनी ओपन एआई की शुरुआत की थी। हाल ही में कंपनी द्वारा विकसित किया गया लैंग्वेज मॉडल टूल चैटजीपीटी को लेकर दुनिया भर में काफी चर्चाएं हो रही हैं। हालांकि, ओपनएआई का मकसद आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस को विकसित करना है, जिस पर पिछले लंबे समय से कंपनी काम कर रही है। वहीं बीते कुछ सालों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास ने एक नई रफ्तार पकड़ी है। इसके पीछे की बड़ी वजह ट्रांसफॉर्मर तकनीक का इजाद होना है।
क्या है ट्रांसफॉर्मर तकनीक कैसे हुई इसकी खोज
घटना साल 2017 की है, गूगल ब्रेन की टीम ट्रांसलेशन की एक समस्या को लेकर काम कर रही थी। "श्याम के पास चॉकलेट रखा है। इसे खा लो।" इस वाक्य को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करने के लिए कहा जाए, तो गूगल आसानी से ट्रांसलेट कर लेता था। वहीं दूसरी तरफ "चॉकलेट के पास श्याम रखा है। उसे खा लो।" यह वाक्य गलत था। इसे एक इंसान आसानी से समझ सकता था कि श्याम को नहीं यहां चॉकलेट को खाने की बात कही जा रही है। वहीं कंप्यूटर को कैसे इस बारे में समझाया जाए? इस समस्या को लेकर गूगल ब्रेन की टीम लंबे समय से परेशान थी। इसी बीच टीम को एक खास तरह की युक्ति सूझती है। उन्होंने सोचा क्यों ने कंप्यूटर को किसी चीज का मतलब समझाने की बजाए उसको अनुमान (Guessing) लगाना सिखाया जाए?
इसे इस तरह समझिए। जन्म लेने के बाद हम जिस भाषा को बोलना सीखते हैं। वहां हमें उस भाषा को बोलने के लिए किसी व्याकरण को सीखने की जरूरत नहीं होती है। बार-बार उस भाषा को सुनकर, पढ़कर, देखकर हमारे दिमाग में एक पैटर्न बन जाता है, जिसकी मदद से हमें यह पता चल जाता है कि किस शब्द के बाद कौन सा शब्द बोलना सही रहेगा। ऐसे में हम बिना व्याकरण सीखे आसानी से अपने आप को अभिव्यक्त कर लेते हैं।
ट्रांसलेशन की उस समस्या से निपटने के लिए गूगल ने भी कुछ ऐसा ही तरीका निकाला। उन्होंने सोचा क्यों न कंप्यूटर्स को किसी वर्ड की मीनिंग समझाने की बजाए। उसके अंदर एक समझ पैदा की जाए कि एक शब्द के बाद अगला शब्द कौन सा आएगा? इस आइडिया की मदद से गूगल एक बहुत बड़ी खोज करता है। इस खास इजाद को गूगल ने ट्रांसफॉर्मर (Trasnformer) का नाम दिया। इस एक तकनीक ने एआई की दुनिया ही बदल दी। इससे पहले हम एआई को चीजों का मतलब सीखाते आ रहे थे। वहीं ट्रांसफॉर्मर तकनीक इजाद होने के बाद हमने एआई को संभावना तलाश (Guessing) करना सिखा दिया।
अगर हम अपने पुराने उदाहरण के पास वापस जाएं, तो अब कंप्यूटर्स को यह समझने की बिल्कुल जरूरत नहीं थी कि श्याम को खाना है यह नहीं खाना। अगर उस कंप्यूटर को वाक्य मिल रहा है कि श्याम के पास चॉकलेट है। ऐसे में वह इस वाक्य "श्याम के पास चॉकलेट है"को पढ़ेगा। उसके बाद इन पांच शब्दों के बाद आगे कौन से शब्द आने की सबसे ज्यादा संभावना है? उसे लिख देगा। इसी तकनीक को जनरेटिव प्रीट्रेन्ड ट्रांसफॉर्मर का नाम दिया गया।
इसके बाद गूगल ने खुद से इजाद की गई। इस ट्रांसफॉर्मर तकनीक को साल 2017 में ओपन सोर्स कर दिया। इस एक चीज ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में क्रांति ला दी। आज के समय चैटजीपीटी जैसे लैंग्वेज मॉडल टूल से लेकर डीपफेक वीडियो और तस्वीरों को बनाने में बनाने में इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। GPT, BERT, DALL-E जैसे एआई टूल्स जो इन दिनों चर्चित हैं। उनके पीछे यही तकनीक काम कर रही है।

एक तरफ जहां इस तरह की तकनीक के आने के बाद लोगों की प्रोडक्टिविटी बढ़ रही है। वहीं कई सवाल भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर खड़े हो रहे हैं। इसी बीच सैम अल्टमैन भारत दौरे पर हैं। इस दौरान वे एआई से जुड़ी चुनौतियां और भविष्य में इसके क्या परिणाम हो सकते हैं। इसको लेकर मीडिया के साथ बातचीत में कई बड़ी बातें कह रहे हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने के बाद झूठी तस्वीरों और डीपफेक वीडियोज का चलन काफी बढ़ा है। इसके कई गंभीर नतीजे समाज में देखने को मिल रहे हैं। हाल ही में एआई द्वारा ट्रंप के गिरफ्तार होने की तस्वीर को बनाया गया था। यह तस्वीर इंटरनेट पर काफी तेजी से वायरल हुई थी। यह तस्वीर देखने में बिल्कुल वास्तविक लग रही थी। ऐसे में सवाल उठा है कि एआई आने के बाद क्या झूठ और क्या सच है? इसकी पहचान हम कैसे करें और इस समस्या से कैसे निपटें?
सैम अल्टमैन के मुताबिक वाटरमार्किंग और क्रिप्टोग्राफी सिग्नेचर की मदद से इस समस्या से निपटा जा सकता है। इसके अलावा हम वेब ब्राउजर या मोबाइल एप्लीकेशन में कुछ ऐसी खास तरह की तकनीक का निर्माण कर सकते हैं, जो मोबाइल और कंप्यूटर में दिखने वाली असली-नकली तस्वीर और वीडियो की पहचान कर सकने में सक्षम हों।