कानून की बात और अधिकार के सवाल: जब जिंजर बियर की बोतल में मिला मरा घोंघा, देना पड़ा था हर्जाना
अक्सर हम सुनते हैं कि किसी पेय पदार्थ की बोतल में मक्खी मिली। कई बार दूसरे कीड़े या छिपकली भी मिलने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। ऐसे में हम क्या करते हैं?

विस्तार
कानून को अक्सर नीरस मान लिया जाता है, लेकिन हकीकत में यह बेहद रोचक विषय है। इसका सीधा जुड़ाव हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से है। कई ऐसे मुकदमे हैं जिन्होंने समाज पर बहुत व्यापक असर डाला है। हम ऐसे ही कुछ मुकदमों की दास्तां लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हैं। इससे न सिर्फ आपकी जानकारी में इजाफा होगा बल्कि कई बार ये आपके लिए उपयोगी भी साबित हो सकते हैं। इसकी पहली कड़ी में पेश है स्कॉटलैंड की विधवा डोनोघ की कहानी जिसके फैसले ने लापरवाही के कानून अर्थात् (law of negligence) की नई परिभाषा गढ़ डाली।

अक्सर हम सुनते हैं कि किसी पेय पदार्थ की बोतल में मक्खी मिली। कई बार दूसरे कीड़े या छिपकली भी मिलने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। ऐसे में हम क्या करते हैं? जहां से सामान खरीदते हैं उससे बहस होती है। कई बार यह विवाद बड़ी लड़ाई की वजह भी बन जाता है। एक वक्त ऐसा भी था जब खाद्य या पेय पदार्थों में कीड़े-मकोड़े पड़ जाने पर लोगों को सब्र करना पड़ता था। किसी तरह की कानूनी मदद नहीं मिल पाती थी, लेकिन डोनोघ के मामले ने पूरी तस्वीर बदल दी।
बात 26 अगस्त 1928 की
बात 26 अगस्त 1928 की है। डोनोघ को जिंजर बियर बहुत पसंद थी। उनके एक दोस्त ने उन्हें वेलमीडो नामक कैफे से जिंजर बियर की एक बोतल खरीदकर दी। बोतल गहरे रंग की थी। ऊपर से देखकर कोई नहीं पता लगा सकता था कि अंदर क्या है। डोनोघ ने तकरीबन आधी बोतल जिंजर बियर खत्म कर दी।
बाकी बची बियर उन्होंने एक ग्लास में उड़ेली तो उनके होश उड़ गए। जिंजर बियर में एक मरा घोंघा मिला। डोनोघ को बड़ी घिन लगी। आखिर आधी बोतल तो उन्होंने गटक ही ली थी। उन्हें गहरा धक्का लगा। मानसिक हालत के साथ ही उनकी शारीरिक दशा भी बिगड़ गई। उन्हें गैस्ट्रो इन टाइटिस की बीमारी भी हो गई।
मुकदमा करने का किया फैसला
डोनोघ को नहीं सूझा कि वह क्या करें। सोच-विचार के बाद उन्होंने जिंजर बियर के निर्माता पर मुकदमा करने का फैसला किया। हालांकि, बोतल पर किसी तरह की कोई वारंटी नहीं थी। निर्माता से उनका कोई लेना-देना भी नहीं था। उस वक्त तक मुकदमा दर्ज करने के लिए दो पक्षों के बीच किसी करार का होना जरूरी माना जाता था। डोनोघ और निर्माता के बीच किसी तरह का कोई करार भी नहीं था। इंग्लैंड या स्काटलैंड में उपभोक्ता संरक्षण जैसा कोई कानून भी नहीं बना था।

डोनोघ का मामला इंग्लैंड की सर्वोच्च अदालत में गया। इंग्लैंड की संसद के उच्च सदन को हाउस ऑफ लार्ड्स कहते हैं, जिसे मोटे तौर पर आप वहां की राज्य सभा मान सकते हैं। हाउस ऑफ लार्ड्स इंग्लैंड के सर्वोच्च न्यायालय का भी काम करता है। जब कि हमारे देश में राज्यसभा शुद्ध रूप से विधायिका का हिस्सा है। लोकसभा के साथ मिलकर यह भी कानून बनाने का काम करती है। वहां लार्ड एटकिन की अगुवाई वाली ज्यूरी ने 3-2 के बहुमत से इस केस का फैसला सुनाया था।
'पड़ोसी 'का सिद्धांत, रखना होगा ध्यान
डोनोघ के मामले में लार्ड एटकिन ने पहली बार कानून में 'पड़ोसी' के सिद्धांत की बात कही थी। उनका कहना था कि अपने आसपास के लोगों के प्रति आप का कर्तव्य है कि आपके किसी काम या लापरवाही से उन्हें किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए। इस तरह से मामले में पड़ोसी वे लोग माने जाएंगे जिन पर आपके काम या आपकी लापरवाही का असर पड़ता है।
इस मामले में स्थानीय निर्माता जिंजर बियर की कंपनी पड़ोसी की श्रेणी में आएगी। डोनोघ के प्रति उसका कर्तव्य था कि उसके किसी काम या लापरवाही से उनको किसी तरह का नुकसान न हो। बोतल में मिले मरे घोंघे से साबित होता है कि निर्माता ने अपने कर्तव्य का पालन न करते हुए मामले में लापरवाही बरती थी। लिहाजा निर्माता कंपनी को पीड़िता डोनोघ को हर्जाना देना ही होगा।
ऐसे में आप यह भी जान लें कि ऐसे मामले लॉ ऑफ टार्ट्स (हिंदी में अपकृत्य विधि) के अधीन आते हैं। इनमें कोई लिखित कानून नहीं है। पुराने मामलों में दिए गए फैसलों के आधार पर नए मामले निपटाए जाते हैं। भारत में लॉ ऑफ टार्ट्स का ज्यादातर हिस्सा इंग्लैंड के कॉमन लॉ के अनुरूप ही है। यहां की अदालतें इंग्लैंड की अदालतों द्वारा सुनाए फैसले के अनुसार ही अपने फैसले देती हैं।
अगली कड़ी में एक और रोचक मुकदमे की जानकारी के साथ हम फिर हाजिर होंगे। तब तक के लिए बॉय-बॉय...