'कांप रही थी रूह': नेपाल यात्रा पर गए वृंदावन के तीन दंपती दंगों में फंसे, छिपते हुए पैदल ही आ गए बिहार
आगजनी, प्रदर्शन और सड़कों पर उपद्रव देखकर वे फिर से होटल लौट गए। लेकिन होटल भी सुरक्षित नहीं लग रहा था। आखिरकार गांवों के रास्ते वे करीब 15 किलोमीटर पैदल चलते हुए मुख्य सड़क तक पहुंचे जहां हालात और भी खराब थे।

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यूपी के वृंदावन के तीन दंपती नेपाल यात्रा पर गए थे जहां उनके तीर्थाटन की सुखद शुरुआत अंत में एक भयावह अनुभव में बदल गई। नेपाल में हुए उपद्रव और आगजनी के दौरान वे इतने बुरी तरह फंस गए कि जीवन रक्षा तक मुश्किल लगने लगी। कई घंटों की भागदौड़ और छिपते-छिपाते वे किसी तरह नेपाल से निकलकर बिहार पहुंच सके।

रंगजी मंदिर क्षेत्र निवासी अजय अग्रवाल, गोपीश्वर मंदिर के पास रहने वाले विश्वनाथ गुप्ता और अनाज मंडी के धीरज अग्रवाल, अपनी पत्नियों के साथ दो सितंबर को दिल्ली से फ्लाइट के जरिए नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंचे थे। शुरुआत में सब कुछ सामान्य था और तीन दिनों तक उन्होंने वहां के धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया।
तीर्थयात्रा के दौरान वे काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर और पोखरा स्थित मुक्तिनाथ मंदिर के दर्शन कर चुके थे। सात सितंबर को जनकपुर की ओर प्रस्थान की योजना थी लेकिन उसी दिन पोखरा में उपद्रव और आगजनी की घटनाएं सामने आने लगीं। स्थिति को भांपते हुए उन्होंने यात्रा रद्द कर दी और रास्ते में ही चितवन नेशनल पार्क के पास एक रिजॉर्ट में शरण ली।
अजय अग्रवाल ने बताया कि अगले दिन सुबह जब वे होटल से निकलने लगे तो सड़कों पर भीषण हिंसा हो रही थी। आगजनी, प्रदर्शन और सड़कों पर उपद्रव देखकर वे फिर से होटल लौट गए। लेकिन होटल भी सुरक्षित नहीं लग रहा था। आखिरकार गांवों के रास्ते वे करीब 15 किलोमीटर पैदल चलते हुए मुख्य सड़क तक पहुंचे जहां हालात और भी खराब थे।
घंटों छिपकर खड़े रहे, कांप रही थी रूह
उन्होंने बताया कि कई घंटों तक पुलिस और सेना के अधिकारियों से संपर्क साधने की कोशिश की गई लेकिन कोई मदद नहीं मिली। वे करीब सात घंटे तक छिपकर खड़े रहे और शाम साढ़े सात बजे जब माहौल थोड़ा शांत हुआ तब वे रक्सौल बॉर्डर पार कर बिहार पहुंचे। वहां से दरभंगा के रास्ते दस सितंबर को वृंदावन लौट सके। हालात देखकर उनके रूह तक कांप गई।