{"_id":"5736d0ec4f1c1b496991a169","slug":"forest-fire-it-may-acid-rain-in-uttarakhand","type":"story","status":"publish","title_hn":"जंगल की आग के बाद अब उत्तराखंड में होगी 'एसिड रेन'","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
जंगल की आग के बाद अब उत्तराखंड में होगी 'एसिड रेन'
रजा शास्त्री/अमर उजाला, देहरादून
Updated Sat, 14 May 2016 12:47 PM IST
विज्ञापन
जंगल की आग
विज्ञापन
उत्तराखंड के मध्य हिमालयी क्षेत्र में आग की घटनाओं के बाद ‘एसिड रेन’ से जड़ी-बूटियों के नष्ट होने की चिंता जलवायु परिवर्तन विज्ञानियों को सताने लगी है। हिमालयी क्षेत्र के वायुमंडल में समाए धुएं के तत्व पानी की बूंदों के साथ पत्तों पर गिरेंगे, जिससे जड़ी-बूटियों के नष्ट होने का खतरा है।
Trending Videos
जलवायु परिवर्तन विज्ञानियों ने इसका आकलन शुरू कर दिया है। भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) की टीम स्थिति की समीक्षा करने आग प्रभावित वनों को देखने के लिए गई है।
विज्ञापन
विज्ञापन
हवा में धुएं के कण
उत्तराखंड में अब तक 3975.25 हेक्टेयर जंगल आग की गिरफ्त में आए हैं। वन विभाग इसे कुल वन क्षेत्र का एक फीसदी से कम बता रहा है, लेकिन इस आग के धुएं से जलवायु परिवर्तन विज्ञानियों को बड़ा नुकसान नजर आ रहा है। उनका मानना है कि धुएं के साथ धूल कण भी होते हैं।
इसके साथ कार्बोनिक एसिड और खतरनाक गैसें होती हैं। आग और धुएं से निकली कार्बन डाई आक्साइड तो पेड़ खपा सकते हैं। सबसे अधिक नुकसान कार्बोनिक एसिड और धूल कणों से होगा।
यह होगा बारिश का असर
आग के बाद जब बारिश होगी तो कार्बोनिक एसिड मुलायम टिश्यू वाले पत्तों को जला देगा। साथ ही धूल कण पत्तों के सूक्ष्म छिद्रों (स्टूमेटा) को बंद कर देगा, जिससे पौधों की भोजन बनाने की प्रक्रिया (फोटो सिंथेसिस) प्रभावित होगी। एसिड रेन में प्रभावित होने वाली वनस्पतियों में सबसे अधिक जड़ी-बूटियां हैं। इनमें वलीरियाना (सुमाया), ससुरिया (कूथ) आदि जड़ी-बूटियों के ग्रुप भी शामिल हैं। इन्हें क्षेत्रीय लोग संजीवनी बूटियां कहते हैं।
आग के बाद एसिड रेन से जड़ी-बूटियों और मुलायम टिश्यू वाली वनस्पतियों को अधिक खतरा है। जब बूंदों के साथ कार्बोनिक एसिड पत्तियों पर गिरेगा तो ये जल जाएंगी। इसके साथ ही स्टूमेटा के बंद होने से भी पौधों की सेहत खराब होगी।
-डॉ. हुकुम सिंह, विभागाध्यक्ष जलवायु परिवर्तन विभाग, वन अनुसंधान संस्थान

कमेंट
कमेंट X