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Big revelation by fellow doctors of Al-Falah University regarding Dr. Omar
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डॉ. उमर को लेकर अल-फलाह यूनिवर्सिटी के साथी डॉक्टरों का बड़ा खुलासा
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Wed, 19 Nov 2025 09:32 AM IST
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दिल्ली के लाल किले के पास हुए बम धमाके की जांच के दौरान सामने आया व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल देश की सुरक्षा एजेंसियों को लगातार चौंका रहा है। इस मॉड्यूल से जुड़े नामों में सबसे अधिक चर्चा में है अल-फलाह यूनिवर्सिटी का असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उमर, जिसे दिल्ली ब्लास्ट केस में आरोपी बनाया गया है। लेकिन सवाल यह है कि अगर यूनिवर्सिटी का इस मॉड्यूल से कोई संबंध नहीं था, तो डॉ. उमर को यहां इतनी विशेष छूट क्यों दी जा रही थी?
अमर उजाला की जांच में यह सामने आया है कि यूनिवर्सिटी के भीतर डॉ. उमर की भूमिका और उसकी कार्यशैली शुरू से ही संदिग्ध थी। यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे और यहां इंटर्नशिप कर रहे दो डॉक्टरों ने अमर उजाला से जो बातें साझा कीं, उसने कई बड़े सवालों को जन्म दे दिया है।
दोनों डॉक्टरों ने बताया कि डॉ. उमर कभी भी नियमित लेक्चर नहीं लेता था। वो पूरे सप्ताह में सिर्फ एक या दो क्लास लेता, और उन क्लासों की अवधि भी सिर्फ 15–20 मिनट की होती थी। इसके बाद वह सीधे अपने कमरे में लौट जाता था।
डॉक्टरों के अनुसार, “अन्य लेक्चरार पूरी क्लास लेते थे, लेकिन उमर लगातार कम समय देकर निकल जाता। उसकी इस आदत पर किसी ने कभी आपत्ति भी नहीं जताई।”
यह बात यहां की अकादमिक संस्कृति पर भी सवाल खड़े करती है कि आखिर एक लेक्चरर को इतने लंबे समय तक इतनी रियायत क्यों दी गई?
कहानी यहीं खत्म नहीं होती। दोनों डॉक्टरों ने बताया कि डॉ. उमर की ड्यूटी हमेशा इवनिंग (शाम 5 से रात 12 बजे) या नाइट (रात 12 से सुबह 8 बजे) में ही लगाई जाती थी।
इसे कभी भी मॉर्निंग शिफ्ट नहीं दी गई, जबकि सभी डॉक्टरों की शिफ्ट समय-समय पर बदलती रहती थीं। यूनिवर्सिटी और अस्पताल प्रशासन ने उसे लगातार ऐसी शिफ्ट क्यों दी, जिनमें निगरानी और गतिविधियों पर कम नजर रहती है ये एक बड़ा सवाल है।
डॉक्टरों ने बताया कि डॉ. उमर अपने ड्यूटी टाइम में भी अक्सर अस्पताल में मौजूद नहीं होता था। जब कोई मरीज भर्ती होता, तो नर्सिंग स्टाफ और इंटर्न उसे फोन करते, तब जाकर वो अस्पताल पहुंचता था। और वहां रुकने का तरीका कुछ ऐसा था- कुछ मिनट मरीज को देखना, दो–चार निर्देश देना, और फिर सीधे कमरे में लौट जाना।
डॉक्टरों का कहना है कि “वो अस्पताल में सिर्फ कॉल पर आता था, वो भी मजबूरी में। ऐसा कोई अन्य डॉक्टर नहीं करता था।” यह व्यवहार अस्पताल की पारदर्शिता और प्रशासनिक ढांचे की कमियों की ओर भी इशारा करता है।
सबसे चौंकाने वाली जानकारी यह रही कि 2023 में लगभग छह महीने तक डॉ. उमर अस्पताल से गायब रहा। न कोई जानकारी, न कोई छुट्टी आवेदन कुछ भी नहीं। छह महीने बाद अचानक वह वापस लौट आया और बिना किसी पूछताछ के उसने ड्यूटी जॉइन कर ली।
डॉक्टरों के अनुसार, “हम जूनियर थे, इसलिए पूछ नहीं सकते थे। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि सीनियर डॉक्टरों को भी नहीं पता था कि वो छह महीने कहां था।”
यह बात साफ करती है कि या तो प्रशासनिक निगरानी बेहद कमजोर थी, या फिर किसी स्तर पर उसे संरक्षण दिया जा रहा था। तथ्यों से साफ है कि डॉ. उमर को यूनिवर्सिटी में असामान्य, बेवजह की छूट मिली हुई थी। कम क्लास लेना, ड्यूटी पर गैर-मौजूदगी, नाइट शिफ्ट का विशेष पैटर्न, और आधे साल तक लापता रहने पर भी कोई कार्रवाई न होना ये सभी पहलू यह संकेत देते हैं कि अंदर कुछ ऐसा था जिसे छुपाया गया, या नजरअंदाज किया गया।
अब जब दिल्ली धमाके के बाद उमर पर गंभीर आरोप हैं, तो यूनिवर्सिटी प्रशासन की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। विधि-प्रवर्तन एजेंसियां अब इस बात की जांच कर रही हैं कि क्या ये सब महज लापरवाही थी, या फिर किसी बड़े मॉड्यूल को बचाने के लिए यह ढाल तैयार की गई थी। बम धमाके की जांच आगे बढ़ने के साथ, इन छूटों का रहस्य भी जल्द सामने आने की उम्मीद की जा रही है।
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