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Supreme Court warns Election Commission on Bihar SIR, final arguments on October 7
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बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट की चुनाव आयोग को चेतावनी, 7 अक्तूबर को अंतिम दलीलें
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Mon, 15 Sep 2025 05:38 PM IST
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बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया की वैधता को लेकर चल रही बहस अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह साफ कर दिया कि इस मामले में अंतिम दलीलें 7 अक्तूबर को सुनी जाएंगी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह मानकर चल रही है कि भारत निर्वाचन आयोग, एक संवैधानिक संस्था होने के नाते, कानून और अनिवार्य नियमों का पालन कर रहा है। लेकिन यदि प्रक्रिया में किसी भी स्तर पर अवैधता पाई जाती है, तो पूरी एसआईआर प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण जैसी संवेदनशील प्रक्रिया में चुनाव आयोग की भूमिका बेहद अहम है। अदालत ने माना कि आयोग एक संवैधानिक निकाय है और इसीलिए उस पर यह भरोसा किया जा सकता है कि वह कानूनी प्रावधानों के अनुरूप काम कर रहा होगा। हालांकि, न्यायालय ने साथ ही चेतावनी भी दी कि यदि जांच में किसी भी चरण पर अवैधता सामने आई, तो केवल बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में इस प्रक्रिया की वैधता प्रभावित हो सकती है।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट बिहार एसआईआर प्रक्रिया पर अलग से राय नहीं दे सकता। इस मामले में आने वाला फैसला केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे भारत में लागू होगा। अदालत का कहना था कि मतदाता सूची पुनरीक्षण जैसी प्रक्रिया का असर देशव्यापी होता है, इसलिए इस पर दिया गया निर्णय भी व्यापक प्रभाव डालेगा।
सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ताओं को भी बड़ी राहत दी। अदालत ने अनुमति दी कि वे न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में हो रही एसआईआर प्रक्रिया की वैधता पर भी बहस कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि 7 अक्तूबर को होने वाली बहस केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसमें अखिल भारतीय दृष्टिकोण भी शामिल होगा।
न्यायालय ने हालांकि यह भी साफ किया कि वह भारत निर्वाचन आयोग को देशभर में मतदाता सूची पुनरीक्षण करने से नहीं रोक सकती। पीठ ने कहा कि आयोग का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वह समय-समय पर मतदाता सूची का पुनरीक्षण करे। इसलिए जब तक अंतिम फैसला नहीं आता, आयोग अपने काम को जारी रख सकता है।
इस मामले में एक और अहम मोड़ उस समय आया जब शीर्ष अदालत ने एक अलग याचिका पर नोटिस जारी किया। यह याचिका 8 सितंबर को दिए गए आदेश को वापस लेने की मांग कर रही थी, जिसमें आधार कार्ड को मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए 12वें दस्तावेज के रूप में मान्यता दी गई थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन यदि मतदाता आधार प्रस्तुत करता है तो निर्वाचन आयोग उसकी वास्तविकता की जांच कर सकता है। अब अदालत ने इस मुद्दे पर भी निर्वाचन आयोग और अन्य पक्षों से जवाब मांगा है।
बिहार में चल रही एसआईआर प्रक्रिया पहले से ही राजनीतिक बहस का केंद्र बनी हुई है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के जरिए मतदाता सूची में छेड़छाड़ की जा सकती है, जबकि सत्ताधारी पक्ष इसे लोकतांत्रिक मजबूती की दिशा में एक नियमित अभ्यास बता रहा है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को अखिल भारतीय स्तर पर देखने का संकेत दिया है, तो राजनीतिक हलचल और तेज हो गई है।
अब सारी निगाहें 7 अक्तूबर पर टिकी हैं, जब सुप्रीम कोर्ट अंतिम दलीलें सुनेगा। यह सुनवाई न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर असर डालने वाली है। यदि अदालत ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को वैध ठहराया, तो एसआईआर की प्रक्रिया देशभर में जारी रहेगी। लेकिन यदि अवैधता साबित हुई, तो यह पूरी प्रक्रिया ही रद्द हो सकती है। ऐसे में इस फैसले का असर आगामी विधानसभा चुनावों से लेकर 2029 के लोकसभा चुनाव तक पर पड़ सकता है।
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