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Canada Election: कनाडा में कैसे हो रहे चुनाव; कब, क्यों और कौन मुकाबले में, भारत पर क्या असर?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Mon, 28 Apr 2025 02:57 PM IST
सार
कनाडा के चुनाव इस बार अलग क्यों हैं? अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से कनाडा में सियासी समीकरण कैसे बदले हैं? कनाडा में चुनाव का तरीका क्या है? प्रधानमंत्री का चुनाव कैसे होगा? मुकाबला कब और किस-किस चेहरे के बीच में है? आइये जानते हैं...
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Canada Elections 2025 Liberal Party vs Conservatives Mark Carney Pierre Poilievre NDP Jagmeet Singh explained
कनाडा के चुनाव में तीन प्रतिद्वंद्वी। - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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कनाडा में 28 अप्रैल यानी आज आम चुनाव के लिए मतदान का दिन है। कनाडा के समयानुसार सुबह 7 बजे से वोटिंग शुरू हो गई, जो कि शाम के 7 बजे तक जारी रहेगी। यानी भारतीय समयानुसार सोमवार शाम 4.30 बजे से मंगलवार सुबह 4.30 बजे तक वोटिंग जारी रहेगी। इसके बाद मतगणना का दौर शुरू हो जाएगा। 


ये तो हो गई कनाडा में नई सरकार के लिए होने वाले चुनाव के समय की बात। हालांकि, ऐसे कई और मुद्दे हैं, जिन्हें जानने के बाद ही कनाडा में इस बार होने वाले चुनावों को ठीक ढंग से समझा जा सकता है। मसलन, कनाडा के चुनाव इस बार अलग क्यों हैं? अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से कनाडा में सियासी समीकरण कैसे बदले हैं? कनाडा में चुनाव का तरीका क्या है? प्रधानमंत्री का चुनाव कैसे होगा? मुकाबला किस-किस चेहरे के बीच में है? आइये जानते हैं...


Canada Election: कनाडा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बने ट्रंप, राष्ट्रवाद बनाम बदलाव की लड़ाई

कनाडा में क्यों अलग हैं इस बार के चुनाव?
  • कनाडा में 2015 में हुए आम चुनाव में जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी ने जबरदस्त जीत दर्ज की थी। इसके बाद से वे 10 साल लगातार प्रधानमंत्री रहे। हालांकि, इस साल की शुरुआत में अलग-अलग मुद्दों पर घिरने और लगातार गिरती लोकप्रियता की वजह से ट्रूडो ने प्रधानमंत्री पद और लिबरल पार्टी की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया। 
  • यानी कनाडा में पिछले तीन चुनाव में लगातार सत्तासीन पार्टी का चेहरा रहे ट्रूडो इस बार चुनाव से दूर हैं। लिबरल पार्टी ने ट्रूडो के बाद कनाडा और ब्रिटेन के केंद्रीय बैंक के गवर्नर रह चुके मार्क कार्नी को अपना नेता चुना और अब प्रधानमंत्री के नाते वे ही लिबरल पार्टी का चेहरा है। 
  • दूसरी तरफ कनाडा में विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं पियरे पॉइलिवर, जिनकी गिनती दक्षिणपंथी नेताओं में होती है। ट्रूडो के शासन के दौरान पियरे की लोकप्रियता जबरदस्त तौर पर बढ़ी और उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना सबसे ज्यादा थी। हालांकि, इसके बाद पूरे परिदृश्य में ट्रंप की एंट्री हुई।

  • ट्रंप के राष्ट्रपति बनने और टैरिफ युद्ध शुरू होने की आशंका के बीच कनाडा की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडराने लगे। इस बीच जस्टिन ट्रूडो सरकार में उप प्रधानमंत्री ने ठोस आर्थिक नीति न होने की वजह से मंत्री पद छोड़ दिया। कुछ दिन बाद खुद ट्रूडो ने भी पीएम पद से इस्तीफा दे दिया। 
  • लिबरल पार्टी ने इसके बाद मार्क कार्नी को कनाडा के प्रधानमंत्री पद का जिम्मा सौंपा। कार्नी अर्थशास्त्री होने के साथ ही 2008 की वैश्विक मंदी के दौरान कनाडा को मुश्किल से उभारने में सफल रहे थे। इतना ही नहीं उन्होंने कोरोनावायरस महामारी के दौर में ब्रिटेन के केंद्रीय बैंक में गवर्नर रहते हुए कई कड़े और जरूरी फैसले लिए।
  • एक अर्थशास्त्री के कनाडा का प्रधानमंत्री बनने के बाद जनता का भी मूड तेजी से बदला। इसके ऊपर कार्नी ने ट्रंप की तरफ से कनाडा की स्वायत्तता पर दिए जा रहे बयानों को आड़े हाथों लिया और पलटवार शुरू कर दिए। इसके बाद कनाडा में एक बार फिर लिबरल पार्टी की लोकप्रियता बढ़ने लगी। दूसरी तरफ कंजर्वेटिव पार्टी, जो कि ट्रंप के जैसी ही नीतियों के लिए जानी जाती है कि लोकप्रियता घटने लगी। 

कनाडा में चुनाव कब तय हुए?
कनाडा में आम चुनाव हर पांच साल की अवधि में होते हैं। इस लिहाज से कनाडा में इस बार अक्तूबर से पहले चुनाव होने थे। हालांकि, इस बार चुनाव का एलान मार्च में ही हुआ था, जब लिबरल पार्टी को संसद सत्र के दौरान कंजर्वेटिव पार्टी का सामना करना था। इससे ठीक पहले मार्क कार्नी ने 28 अप्रैल को चुनाव कराने का एलान कर दिया। 

कनाडा में अभी क्या है सरकार की सीटों के आंकड़े?
कनाडा में मुख्यतः दो पार्टियों का शासन रहा है- लिबरल और कंजर्वेटिव। 2015 में जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी ने कंजर्वेटिव पार्टी से सत्ता छीन ली थी। तब लिबरल पार्टी को बहुमत मिला था। हालांकि, 2019 के बाद से ही ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई और उसे गठबंधन के जरिए सरकार चलानी पड़ी। 

कनाडा में हाउस ऑफ कॉमन्स को भंग करने से पहले इसमें लिबरल पार्टी के पास सबसे ज्यादा 152 सीटें थीं। वहीं, कंजर्वेटिव पार्टी के पास 120, ब्लॉक क्यूबेकॉइस के पास 33 और जगमीत सिंह न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के पास 24 सीट थीं। इसके अलावा ग्रीन पार्टी के पास भी दो सीट थीं। 

कनाडा में आम चुनाव कल: ट्रंप की धमकियों के बीच रोचक हुआ चुनाव, मार्क कार्नी प्रतिद्वंद्वी पियरे से आगे

कनाडा में प्रधानमंत्री पद के लिए कौन-कौन से नेता मुकाबले में?

1. मार्क कार्नी



मार्क कार्नी को अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन पर उनकी विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। ऐसे समय, जब डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा को घेरना शुरू कर दिया है, तब कार्नी ने अमेरिकी राष्ट्रपति पर तंज कसने से गुरेज नहीं किया। वह कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य घोषित करने के ट्रंप के बयानों के भी विरोध में रहे हैं। 

2. पियरे पॉइलिवर
2023 के मध्य से ही कनाडा की राजनीति में कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पॉइलिवर का नाम चर्चा में आने लगा। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो की खराब नीतियों और घटती लोकप्रियता के चलते कंजर्वेटिव पार्टी जबरदस्त रूप से मजबूत होने लगी। इस बीच सदन में अपने सीधे और तंजपूर्ण जवाबों से पियरे पॉइलिवर को काफी लोकप्रियता मिली। 

45 वर्षीय पियरे पॉलिवियर ने हाल ही में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की। इसमें उन्होंने साफ किया कि उनकी पार्टी ट्रंप के कदमों के खिलाफ सम्मानजनक और ठोस कदम उठाएगी, जो कि कनाडा की स्वायत्तता के पक्ष में होगी। पियरे ने कई बार ट्रूडो की तरफ से जीवाश्म ईंधन पर लगाए जाने वाले अतिरिक्त कर, जीवनयापन के लिए बढ़ते खर्च और घर खरीदने में लोगों की अक्षमता का मुद्दा उठाया है। 

हालांकि, कनाडा में कई लोग पियरे पॉइलिवर की तुलना डोनाल्ड ट्रंप से करते हैं। खुद ट्रंप ने कुछ मौकों पर पियरे के रुख की आलोचना की है। हालांकि, ट्रंप के करीबी एलन मस्क कंजर्वेटिव पार्टी के नेता की तारीफ कर चुके हैं। वहीं, पियरे कई मौकों पर कह चुके हैं कि वह कनाडा फर्स्ट के पक्ष में हैं। 

3. जगमीत सिंह



जगमीत सिंह के नेतृत्व में कनाडा में एनडीपी ने जबरदस्त समर्थन हासिल किया। लिबरल और कंजर्वेटिव्स के मुकाबले में उनकी पार्टी ने काफी सीटें जुटाईं। हालांकि, हालिया सर्वे में एनडीपी को नुकसान हुआ है। मार्च के मध्य में हुए एक सर्वे में सामने आया कि सिर्फ नौ फीसदी कनाडाई ही अगले चुनाव में जगमीत सिंह की पार्टी के लिए वोट करना चाहते हैं। 

इस चुनाव में क्या मुद्दे हैं?
  • कनाडा में आम चुनाव में अमेरिका पहले ही बड़ा मुद्दा बन चुका है। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियों से कनाडा में महंगाई और अन्य खर्चों के बढ़ने की आशंका है। ऐसे में अधिकतर पार्टियां ट्रंप के इन फैसलों से निपटने की योजना तैयार कर रही हैं। 
  • इसके अलावा ट्रंप की तरफ से बार-बार कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य घोषित करने की बात कही जा रही है। ऐसे में कनाडा के सामने स्वायत्तता की रक्षा भी एक बड़ा मुद्दा बन चुका है।
  • कनाडा के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विदेश नीति का कनाडाई नागरिकों के लिए ज्यादा महत्व नहीं रहता। हालांकि, ट्रंप के आने के बाद से ही कनाडा की जनता में अमेरिका को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। साथ ही अमेरिका के विकल्प के तौर पर अलग-अलग देशों से संबंध बढ़ाने पर भी चर्चाएं जारी हैं। 
  • इन मुद्दों के अलावा कनाडा का सबसे बड़ा घरेलू मुद्दा घर और स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च बना है। बीते कुछ वर्षों में इसके बढ़ने से ट्रूडो जबरदस्त तौर पर लोकप्रियता खो चुके थे। वहीं, जीवाश्म ईंधन पर टैक्स से बढ़ती महंगाई भी इस चुनाव में एक मुद्दा बनकर उभरा है।  

भारत को लेकर क्या है इन तीनों नेताओं का रुख?

1. मार्क कार्नी
मार्क कार्नी ऐसे समय में कनाडा के प्रधानमंत्री बने, जब जस्टिन ट्रूडो ने अपने बयानों से भारत के साथ रिश्तों को खराब करने में अहम भूमिका निभाई है। खासकर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बिना सबूतों के आरोप लगाने के बाद दोनों ट्रूडो ने दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों को सबसे निचले स्तर पर ला दिया है। 

अमेरिका और कनाडा के बीच बिगड़ते संबंधों के मद्देनजर मार्क कार्नी के पास भारत से रिश्तों को बेहतर करने का जबरदस्त दबाव होगा। दरअसल, भारत का बाजार काफी बड़ा है और ऐसे में नई सरकार को अमेरिका पर आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए भारत समेत कुछ और देशों से संबंध बेहतर करने होंगे। कार्नी ने इस ओर सकारात्मकता भी दिखाई है। 

2. पियरे पॉइलिवर
पियरे पॉइलिवर की भारत को लेकर नीति संतुलित रही है, जिसमें वे भारत और कनाडा के मजबूत संबंधों की वकालत करते हैं, लेकिन साथ ही ट्रूडो सरकार की विदेश नीति की आलोचना भी करते हैं। अक्तूबर 2023 में, पोइलिवर ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत नीति की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी सरकार के फैसलों के कारण कनाडा-भारत संबंधों में खटास आई है।

इतना ही नहीं पॉइलिवर कनाडा में बढ़ती हिंदू विरोधी घटनाओं का भी विरोध कर चुके हैं। बीते साल जब एक गुरुद्वारे के बाहर खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय वाणिज्य दूतावास से जुड़ी एक टीम पर हमला कर दिया था, तो पॉइलिवर ने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए सरकारी सहायता बढ़ाने की बात की थी। हालांकि, पिछले साल ही दिवाली से जुड़े एक प्रस्तावित समारोह का आयोजन न करने के बाद उनकी काफी निंदा हुई थी। 

3. जगमीत सिंह
इन दोनों के अलावा जगमीत सिंह कई मौकों पर भारत सरकार को आड़े हाथों ले चुके हैं। उन्होंने कई मौकों पर भारत सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन में शामिल रहने का आरोप लगाया है। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली में 2020-21 के दौरान हुए किसान आंदोलन को लेकर समर्थन भी जताया था। 

दूसरी तरफ भारत सरकार ने जगमीत सिंह को भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए घेरा है। 2013 में जगमीत को एक मौके पर वीजा देने से भी इनकार किया जा चुका है। 

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