{"_id":"67e1506b25253f46fd0859b2","slug":"canada-pm-mark-carney-calls-snap-elections-liberal-party-vs-conservatives-pierre-poilievre-ndp-jagmeet-singh-2025-03-24","type":"feature-story","status":"publish","title_hn":"कनाडा में अगले महीने चुनाव: क्यों समय से पहले होंगे मतदान, मुकाबले में खड़े नेताओं का भारत पर क्या रुख? जानें","category":{"title":"World","title_hn":"दुनिया","slug":"world"}}
कनाडा में अगले महीने चुनाव: क्यों समय से पहले होंगे मतदान, मुकाबले में खड़े नेताओं का भारत पर क्या रुख? जानें
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Mon, 24 Mar 2025 06:16 PM IST
निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
सार
विज्ञापन
Please wait...
कनाडा के चुनाव में तीन प्रतिद्वंद्वी।
- फोटो :
अमर उजाला
विस्तार
कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने 14 मार्च को देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। जस्टिन ट्रूडो की घटती लोकप्रियता और उनकी नीतियों के विरोध के बीच कार्नी ने कनाडा की जनता से वादा किया था कि वह लिबरल पार्टी को फिर से मुकाबले में लाएंगे और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से लगाए जा रहे भारी-भरकम टैरिफ से निपटने के लिए योजना भी तैयार करेंगे। हालांकि, महज 10 दिन बाद ही उन्होंने कनाडा में समयपूर्व चुनाव कराने का एलान कर दिया। इसी के साथ कनाडा में 28 मार्च को नई सरकार के लिए मतदान होना है।ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर लिबरल पार्टी के नवनिर्वाचित नेता और कनाडा के नए पीएम ने इतनी जल्दी चुनाव की तारीखों का एलान क्यों कर दिया? कनाडा में यह चुनाव कैसे होंगे? इसके अलावा कनाडा के चुनाव में इस बार कार्नी के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां होंगी? कनाडा में इस बार पार्टियों के सामने क्या-क्या मुद्दे होंगे? आइये जानते हैं...
कनाडा में क्यों हुआ समयपूर्व चुनाव का एलान?
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही उसके पड़ोसी कनाडा में सियासी उथल-पुथल मची है। दरअसल, ट्रंप ने कई ऐसे एलान किए हैं, जिसके चलते कनाडा की अर्थव्यवस्था मुश्किल में पड़ती दिखाई दे रही है। आलम यह है कि ट्रंप के टैरिफ लगाने के फैसले पर दिसंबर में ही सरकार के बीच दरार खुल कर सामने आ गई। कनाडा सरकार में उप प्रधानमंत्री ने वित्त नीति पर मतभेद के चलते दिसंबर में ही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने भी 6 जनवरी को प्रधानमंत्री पद छोड़ने का एलान किया।
इसके बाद सत्ता में आए मार्क कार्नी, जिन्होंने ट्रंप की नीतियों के जवाब में कनाडा को मजबूत करने की बात कही। कनाडा में चुनाव इस साल अक्तूबर के करीब होने थे और माना जा रहा था कि कार्नी अगले छह महीनों में लिबरल पार्टी की घटती लोकप्रियता की दिशा मोड़ देंगे। हालांकि, 24 मार्च (सोमवार) से शुरू होने वाले संसद सत्र से पहले ही कार्नी ने 23 मार्च (रविवार) को एलान किया कि कनाडा में 28 अप्रैल को चुनाव होंगे।
Canada: कनाडा में चुनाव की तारीख के एलान के बाद समीकरण कैसे; क्या ट्रेड वॉर और ट्रंप की धमकियों का पड़ेगा असर?
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही उसके पड़ोसी कनाडा में सियासी उथल-पुथल मची है। दरअसल, ट्रंप ने कई ऐसे एलान किए हैं, जिसके चलते कनाडा की अर्थव्यवस्था मुश्किल में पड़ती दिखाई दे रही है। आलम यह है कि ट्रंप के टैरिफ लगाने के फैसले पर दिसंबर में ही सरकार के बीच दरार खुल कर सामने आ गई। कनाडा सरकार में उप प्रधानमंत्री ने वित्त नीति पर मतभेद के चलते दिसंबर में ही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने भी 6 जनवरी को प्रधानमंत्री पद छोड़ने का एलान किया।
इसके बाद सत्ता में आए मार्क कार्नी, जिन्होंने ट्रंप की नीतियों के जवाब में कनाडा को मजबूत करने की बात कही। कनाडा में चुनाव इस साल अक्तूबर के करीब होने थे और माना जा रहा था कि कार्नी अगले छह महीनों में लिबरल पार्टी की घटती लोकप्रियता की दिशा मोड़ देंगे। हालांकि, 24 मार्च (सोमवार) से शुरू होने वाले संसद सत्र से पहले ही कार्नी ने 23 मार्च (रविवार) को एलान किया कि कनाडा में 28 अप्रैल को चुनाव होंगे।
Canada: कनाडा में चुनाव की तारीख के एलान के बाद समीकरण कैसे; क्या ट्रेड वॉर और ट्रंप की धमकियों का पड़ेगा असर?
वजह-1
कनाडा की मीडिया के मुताबिक, कार्नी कनाडाई संसद में अपनी सरकार से होने वाले सवाल-जवाब और खुद के बिना चुने हुए प्रधानमंत्री पद लेने पर बहस को ज्यादा न बढ़ने देने का फैसला किया।
वजह-2
कनाडा में बीते वर्षों और इस साल जनवरी में किए गए सर्वे में ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी की सत्ता में वापसी मुश्किल दिख रही थी। हालांकि, ट्रूडो के इस्तीफे के एलान और ट्रंप के हमलावर तेवरों के चलते जनता की सहानुभूति लिबरल पार्टी के साथ जुड़ती चली गई।
मार्च आते-आते कई ओपिनियन पोल्स में मार्क कार्नी की वजह से लिबरल पार्टी की लोकप्रियता और उसके सत्ता में लौटने की भी प्रबल संभावना जताई गई। ऐसे में कार्नी ने अपने पक्ष में चल रही इस लहर का फायदा उठाने के लिए समयपूर्व चुनाव कराने का एलान कर दिया।
कनाडा की मीडिया के मुताबिक, कार्नी कनाडाई संसद में अपनी सरकार से होने वाले सवाल-जवाब और खुद के बिना चुने हुए प्रधानमंत्री पद लेने पर बहस को ज्यादा न बढ़ने देने का फैसला किया।
वजह-2
कनाडा में बीते वर्षों और इस साल जनवरी में किए गए सर्वे में ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी की सत्ता में वापसी मुश्किल दिख रही थी। हालांकि, ट्रूडो के इस्तीफे के एलान और ट्रंप के हमलावर तेवरों के चलते जनता की सहानुभूति लिबरल पार्टी के साथ जुड़ती चली गई।
मार्च आते-आते कई ओपिनियन पोल्स में मार्क कार्नी की वजह से लिबरल पार्टी की लोकप्रियता और उसके सत्ता में लौटने की भी प्रबल संभावना जताई गई। ऐसे में कार्नी ने अपने पक्ष में चल रही इस लहर का फायदा उठाने के लिए समयपूर्व चुनाव कराने का एलान कर दिया।
कनाडा में चुनाव कैसे होंगे?
- अगले महीने होने वाले चुनाव में कनाडा के नागरिक संसद के निचले सदन- हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्यों का चुनाव करेंगे। यह भारत में लोकसभा की तरह है, जिसके लिए हर पांच साल में चुनाव होते हैं।
- कनाडा में हाउस ऑफ कॉमन्स की 343 सीटों के लिए चुनाव होंगे। यह 2021 में 338 सीटों से पांच ज्यादा होंगी। दरअसल, कनाडा में बढ़ती आबादी के आधार पर सीटें भी बढ़ाई गईं।
- कनाडा के चुनाव भी भारत की तरह ही होते हैं। जो पार्टी पहले बहुमत यानी 172 सीटें हासिल कर लेती है, वह सरकार बनाती है। जिस उम्मीदवार को ज्यादा वोट मिलते हैं, उसे विजेता घोषित किया जाता है।
- अगर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तो सबसे ज्यादा सीट वाली पार्टी को सरकार गठन के लिए न्योता मिलता है। ऐसे में यह पार्टी गठबंधन बनाकर सदन में विश्वास मत हासिल कर सकती है।
ब्रिटिश राजघराने के प्रतिनिधि दिलवाते हैं शपथ
कनाडा में सरकार के गठन से लेकर शपथग्रहण तक का न्योता ब्रिटिश राजघराने के आधिकारिक प्रतिनिधि देते हैं। दरअसल, कनाडा राष्ट्रमंडल का हिस्सा है। ऐसे में किंग चार्ल्स-III इस वक्त देश के आधिकारिक प्रमुख हैं। हालांकि, कनाडा की राजनीति में उनकी कोई भूमिका नहीं है। गवर्नर जनरल ब्रिटिश राजपरिवार के प्रतिनिधि ही होते हैं। हालांकि, यह पद रस्म अदायगी भर के लिए है और कुछ संवैधानिक कार्यों के लिए भी जिम्मेदार है।
कनाडा में सरकार के गठन से लेकर शपथग्रहण तक का न्योता ब्रिटिश राजघराने के आधिकारिक प्रतिनिधि देते हैं। दरअसल, कनाडा राष्ट्रमंडल का हिस्सा है। ऐसे में किंग चार्ल्स-III इस वक्त देश के आधिकारिक प्रमुख हैं। हालांकि, कनाडा की राजनीति में उनकी कोई भूमिका नहीं है। गवर्नर जनरल ब्रिटिश राजपरिवार के प्रतिनिधि ही होते हैं। हालांकि, यह पद रस्म अदायगी भर के लिए है और कुछ संवैधानिक कार्यों के लिए भी जिम्मेदार है।
कनाडा में अभी क्या है सरकार की सीटों के आंकड़े?
कनाडा में मुख्यतः दो पार्टियों का शासन रहा है- लिबरल और कंजर्वेटिव। 2015 में जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी ने कंजर्वेटिव पार्टी से सत्ता छीन ली थी। तब लिबरल पार्टी को बहुमत मिला था। हालांकि, 2019 के बाद से ही ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई और उसे गठबंधन के जरिए सरकार चलानी पड़ी।
कनाडा में हाउस ऑफ कॉमन्स को भंग करने से पहले इसमें लिबरल पार्टी के पास सबसे ज्यादा 152 सीटें थीं। वहीं, कंजर्वेटिव पार्टी के पास 120, ब्लॉक क्यूबेकॉइस के पास 33 और जगमीत सिंह न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के पास 24 सीट थीं। इसके अलावा ग्रीन पार्टी के पास भी दो सीट थीं।
कनाडा में मुख्यतः दो पार्टियों का शासन रहा है- लिबरल और कंजर्वेटिव। 2015 में जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी ने कंजर्वेटिव पार्टी से सत्ता छीन ली थी। तब लिबरल पार्टी को बहुमत मिला था। हालांकि, 2019 के बाद से ही ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई और उसे गठबंधन के जरिए सरकार चलानी पड़ी।
कनाडा में हाउस ऑफ कॉमन्स को भंग करने से पहले इसमें लिबरल पार्टी के पास सबसे ज्यादा 152 सीटें थीं। वहीं, कंजर्वेटिव पार्टी के पास 120, ब्लॉक क्यूबेकॉइस के पास 33 और जगमीत सिंह न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के पास 24 सीट थीं। इसके अलावा ग्रीन पार्टी के पास भी दो सीट थीं।
1. मार्क कार्नी
मार्क कार्नी को अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन पर उनकी विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। ऐसे समय, जब डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा को घेरना शुरू कर दिया है, तब कार्नी ने अमेरिकी राष्ट्रपति पर तंज कसने से गुरेज नहीं किया। वह कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य घोषित करने के ट्रंप के बयानों के भी विरोध में रहे हैं।
मार्क कार्नी को अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन पर उनकी विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। ऐसे समय, जब डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा को घेरना शुरू कर दिया है, तब कार्नी ने अमेरिकी राष्ट्रपति पर तंज कसने से गुरेज नहीं किया। वह कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य घोषित करने के ट्रंप के बयानों के भी विरोध में रहे हैं।
2. पियरे पॉइलिवर
2023 के मध्य से ही कनाडा की राजनीति में कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पॉइलिवर का नाम चर्चा में आने लगा। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो की खराब नीतियों और घटती लोकप्रियता के चलते कंजर्वेटिव पार्टी जबरदस्त रूप से मजबूत होने लगी। इस बीच सदन में अपने सीधे और तंजपूर्ण जवाबों से पियरे पॉइलिवर को काफी लोकप्रियता मिली।
2023 के मध्य से ही कनाडा की राजनीति में कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पॉइलिवर का नाम चर्चा में आने लगा। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो की खराब नीतियों और घटती लोकप्रियता के चलते कंजर्वेटिव पार्टी जबरदस्त रूप से मजबूत होने लगी। इस बीच सदन में अपने सीधे और तंजपूर्ण जवाबों से पियरे पॉइलिवर को काफी लोकप्रियता मिली।
45 वर्षीय पियरे पॉलिवियर ने हाल ही में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की। इसमें उन्होंने साफ किया कि उनकी पार्टी ट्रंप के कदमों के खिलाफ सम्मानजनक और ठोस कदम उठाएगी, जो कि कनाडा की स्वायत्तता के पक्ष में होगी। पियरे ने कई बार ट्रूडो की तरफ से जीवाश्म ईंधन पर लगाए जाने वाले अतिरिक्त कर, जीवनयापन के लिए बढ़ते खर्च और घर खरीदने में लोगों की अक्षमता का मुद्दा उठाया है।
हालांकि, कनाडा में कई लोग पियरे पॉइलिवर की तुलना डोनाल्ड ट्रंप से करते हैं। खुद ट्रंप ने कुछ मौकों पर पियरे के रुख की आलोचना की है। हालांकि, ट्रंप के करीबी एलन मस्क कंजर्वेटिव पार्टी के नेता की तारीफ कर चुके हैं। वहीं, पियरे कई मौकों पर कह चुके हैं कि वह कनाडा फर्स्ट के पक्ष में हैं।
हालांकि, कनाडा में कई लोग पियरे पॉइलिवर की तुलना डोनाल्ड ट्रंप से करते हैं। खुद ट्रंप ने कुछ मौकों पर पियरे के रुख की आलोचना की है। हालांकि, ट्रंप के करीबी एलन मस्क कंजर्वेटिव पार्टी के नेता की तारीफ कर चुके हैं। वहीं, पियरे कई मौकों पर कह चुके हैं कि वह कनाडा फर्स्ट के पक्ष में हैं।
3. जगमीत सिंह
जगमीत सिंह के नेतृत्व में कनाडा में एनडीपी ने जबरदस्त समर्थन हासिल किया। लिबरल और कंजर्वेटिव्स के मुकाबले में उनकी पार्टी ने काफी सीटें जुटाईं। हालांकि, हालिया सर्वे में एनडीपी को नुकसान हुआ है। मार्च के मध्य में हुए एक सर्वे में सामने आया कि सिर्फ नौ फीसदी कनाडाई ही अगले चुनाव में जगमीत सिंह की पार्टी के लिए वोट करना चाहते हैं।
इस चुनाव में क्या मुद्दे हैं?
- कनाडा में आम चुनाव में अमेरिका पहले ही बड़ा मुद्दा बन चुका है। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियों से कनाडा में महंगाई और अन्य खर्चों के बढ़ने की आशंका है। ऐसे में अधिकतर पार्टियां ट्रंप के इन फैसलों से निपटने की योजना तैयार कर रही हैं।
- इसके अलावा ट्रंप की तरफ से बार-बार कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य घोषित करने की बात कही जा रही है। ऐसे में कनाडा के सामने स्वायत्तता की रक्षा भी एक बड़ा मुद्दा बन चुका है।
- कनाडा के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विदेश नीति का कनाडाई नागरिकों के लिए ज्यादा महत्व नहीं रहता। हालांकि, ट्रंप के आने के बाद से ही कनाडा की जनता में अमेरिका को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। साथ ही अमेरिका के विकल्प के तौर पर अलग-अलग देशों से संबंध बढ़ाने पर भी चर्चाएं जारी हैं।
- इन मुद्दों के अलावा कनाडा का सबसे बड़ा घरेलू मुद्दा घर और स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च बना है। बीते कुछ वर्षों में इसके बढ़ने से ट्रूडो जबरदस्त तौर पर लोकप्रियता खो चुके थे। वहीं, जीवाश्म ईंधन पर टैक्स से बढ़ती महंगाई भी इस चुनाव में एक मुद्दा बनकर उभरा है।
भारत को लेकर क्या है इन तीनों नेताओं का रुख?
मार्क कार्नीमार्क कार्नी ऐसे समय में कनाडा के प्रधानमंत्री बने, जब जस्टिन ट्रूडो ने अपने बयानों से भारत के साथ रिश्तों को खराब करने में अहम भूमिका निभाई है। खासकर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बिना सबूतों के आरोप लगाने के बाद दोनों ट्रूडो ने दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों को सबसे निचले स्तर पर ला दिया है।
अमेरिका और कनाडा के बीच बिगड़ते संबंधों के मद्देनजर मार्क कार्नी के पास भारत से रिश्तों को बेहतर करने का जबरदस्त दबाव होगा। दरअसल, भारत का बाजार काफी बड़ा है और ऐसे में नई सरकार को अमेरिका पर आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए भारत समेत कुछ और देशों से संबंध बेहतर करने होंगे। कार्नी ने इस ओर सकारात्मकता भी दिखाई है। हाल ही में अल्बर्टा के कैलगरी में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था।
2. पियरे पॉइलिवर
पियरे पॉइलिवर की भारत को लेकर नीति संतुलित रही है, जिसमें वे भारत और कनाडा के मजबूत संबंधों की वकालत करते हैं, लेकिन साथ ही ट्रूडो सरकार की विदेश नीति की आलोचना भी करते हैं। अक्तूबर 2023 में, पोइलिवर ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत नीति की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी सरकार के फैसलों के कारण कनाडा-भारत संबंधों में खटास आई है।
इतना ही नहीं पॉइलिवर कनाडा में बढ़ती हिंदू विरोधी घटनाओं का भी विरोध कर चुके हैं। बीते साल जब एक गुरुद्वारे के बाहर खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय वाणिज्य दूतावास से जुड़ी एक टीम पर हमला कर दिया था, तो पॉइलिवर ने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए सरकारी सहायता बढ़ाने की बात की थी। हालांकि, पिछले साल ही दिवाली से जुड़े एक प्रस्तावित समारोह का आयोजन न करने के बाद उनकी काफी निंदा हुई थी।
पियरे पॉइलिवर की भारत को लेकर नीति संतुलित रही है, जिसमें वे भारत और कनाडा के मजबूत संबंधों की वकालत करते हैं, लेकिन साथ ही ट्रूडो सरकार की विदेश नीति की आलोचना भी करते हैं। अक्तूबर 2023 में, पोइलिवर ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत नीति की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी सरकार के फैसलों के कारण कनाडा-भारत संबंधों में खटास आई है।
इतना ही नहीं पॉइलिवर कनाडा में बढ़ती हिंदू विरोधी घटनाओं का भी विरोध कर चुके हैं। बीते साल जब एक गुरुद्वारे के बाहर खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय वाणिज्य दूतावास से जुड़ी एक टीम पर हमला कर दिया था, तो पॉइलिवर ने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए सरकारी सहायता बढ़ाने की बात की थी। हालांकि, पिछले साल ही दिवाली से जुड़े एक प्रस्तावित समारोह का आयोजन न करने के बाद उनकी काफी निंदा हुई थी।
3. जगमीत सिंह
इन दोनों के अलावा जगमीत सिंह कई मौकों पर भारत सरकार को आड़े हाथों ले चुके हैं। उन्होंने कई मौकों पर भारत सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन में शामिल रहने का आरोप लगाया है। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली में 2020-21 के दौरान हुए किसान आंदोलन को लेकर समर्थन भी जताया था।
दूसरी तरफ भारत सरकार ने जगमीत सिंह को भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए घेरा है। 2013 में जगमीत को एक मौके पर वीजा देने से भी इनकार किया जा चुका है।
इन दोनों के अलावा जगमीत सिंह कई मौकों पर भारत सरकार को आड़े हाथों ले चुके हैं। उन्होंने कई मौकों पर भारत सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन में शामिल रहने का आरोप लगाया है। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली में 2020-21 के दौरान हुए किसान आंदोलन को लेकर समर्थन भी जताया था।
दूसरी तरफ भारत सरकार ने जगमीत सिंह को भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए घेरा है। 2013 में जगमीत को एक मौके पर वीजा देने से भी इनकार किया जा चुका है।