साझा सैनिक अभ्यास: अफगानिस्तान पर झलकी रूस और चीन की साझा चिंता
विशेषज्ञों ने कहा है कि ये साझा अभ्यास ठीक उस समय हुआ है, जब तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करने की मुहिम तेज की हुई है। उसका लगभग आधे देश पर कब्जा हो चुका है। मास्को और बीजिंग में इस बात को लेकर ज्यादा चिंता है कि अफगानिस्तान में होने वाली हिंसा उनके इलाकों तक पहुंच सकती है...
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चीन और रूस के इस हफ्ते हुए साझा सैनिक अभ्यास से इन दोनों देशों की साझा चिंताएं जाहिर हुई हैं। ये राय इस क्षेत्र के रणनीतिक विशेषज्ञों ने जताई है। उनके मुताबिक अफगानिस्तान में बन रही स्थिति से दोनों देश खासे चिंतित हैं। इसलिए इस सैनिक अभ्यास में उनके ध्यान के केंद्र में अफगानिस्तान से पेश आने वाली संभावित चुनौतियां ही रहीं। चीन के निंगशिया स्वायत्त क्षेत्र में दोनों देशों के दस हजार से ज्यादा सैनिकों ने साझा अभ्यास में भाग लिया। उनकी थल और वायु सेना ने वहां साझा कार्रवाइयों का अभ्यास किया। उसके बाद रूस के रक्षा मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा- साझा अभ्यास ने आतंकवाद से लड़ने और इस क्षेत्र में मिल कर शांति और स्थिरता की रक्षा करने की रूस और चीन की क्षमता और संकल्प को जाहिर किया है।
विशेषज्ञों ने कहा है कि ये साझा अभ्यास ठीक उस समय हुआ है, जब तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करने की मुहिम तेज की हुई है। उसका लगभग आधे देश पर कब्जा हो चुका है। बताया जाता है कि इस घटनाक्रम से रूस और चीन दोनों चिंतित हैं। मास्को और बीजिंग में इस बात को लेकर ज्यादा चिंता है कि अफगानिस्तान में होने वाली हिंसा उनके इलाकों तक पहुंच सकती है। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि हाल में रूस ने अफगानिस्तान से लगी ताजिकिस्तान की सीमा के पास ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के सैनिकों के साथ भी साझा अभ्यास किया। इसके पीछे भी मकसद अफगानिस्तान में उभर रही स्थिति के लिए खुद को तैयार रखना था।
अफगानिस्तान के हिंसा में फंसने का असर मध्य एशियाई देशों पर पड़ सकता है। पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि मध्य एशिया में चीन और रूस दोनों के बड़े आर्थिक स्वार्थ हैं। रूस ने काफी मेहनत करके मध्य एशियाई देशों को अपने व्यापार संगठन- यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन में शामिल किया है। जबकि चीन ने अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट के तहत मध्य एशियाई देशों में बड़ा निवेश कर रखा है। इसलिए दोनों चाहते हैं कि अफगानिस्तान में स्थिति हाथ से निकले। उससे मध्य एशिया में अस्थिरता का खतरा पैदा होगा।
मास्को स्थित रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेज से जुड़े इंस्टीट्यूट ऑफ फार ईस्टर्न स्टडीज में सीनियर रिसर्च फेलॉ वासिली कशिन ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘रूस और चीन दोनों अफगानिस्तान के संकट को अपने ढंग से प्रभावित करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने तमाम आपसी मतभेदों को ताक पर रख दिया है।’ उन्होंने कहा- रूस और चीन दोनों के क्षेत्रीय स्थिरता में साझा हित हैं। दोनों में से कोई नहीं चाहता कि मध्य एशिया में अस्थिरता हो या अमेरिका वहां अपने सैनिक अड्डे बनाए।
विश्लेषकों का कहना है कि रूस और चीन के ये मकसद तभी पूरे हो सकते हैं जब अफगानिस्तान और उसके पास-पड़ोस में स्थिरता रहे। ताजा सैनिक अभ्यास से उन्होंने यह संकेत दिया है कि इस मामले में वे आपसी मेलजोल से ही कोई कदम उठाएंगे। उनकी राय है कि स्थिति बहुत संकटपूर्ण है, जिसे दोनों देश मिल कर ही प्रभावित कर सकते हैं।
रूस की प्रभावशाली रक्षा पत्रिका आर्सनल ऑफ द फादरलैंड के संपादक विक्टर मुराखोव्स्की ने निक्कई एशिया से कहा कि साझा सैनिक अभ्यास ने रूस और चीन की सेनाओं को साथ मिल कर कार्रवाई करने का अनुभव प्रदान किया है। अगर अफगानिस्तान में हालत बिगड़े तो ये अनुभव फायदेमंद साबित होगा।