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चीन की उन्नत समाजवादी देश परियोजना: उपनिवेशवाद तथा कब्जे के नए तरीके जिनसे दुनिया है हैरान

न्यूज डेस्क, नई दिल्ली Published by: अनिल पांडेय Updated Fri, 18 Jun 2021 06:19 PM IST
सार

20 साल में 200 गुना पेटेंट बढ़े
  • 276 पेटेंट फाइल किए गए थे चीन की ओर से 1999 में।
  • 58,990 पेटेंट फाइल किए गए चीन की ओर से 2019 में।
  • 3,369 पेटेंट अब तक मिल चुके हैं चीन की संचार कंपनी हुवाई टेक्नोलॉजिस को।

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China challenging America in Covid Vaccine dimplomacy economy space and Belt and Road initiative
अंतरिक्ष तथा वैक्सीन में चीन के बढ़ते कदम - फोटो : iStock
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विस्तार
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इस समय चीन न केवल भारत, बल्कि अमेरिका सहित दुनिया के कई अन्य देशों के लिए भी अलग-अलग वजहों से परेशानी का कारण बना हुआ है। एक साल पहले गलवां घाटी में भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद केंद्र सरकार ने टिकटॉक समेत ढेरों चाइनीज एप्स पर देश में पाबंदी लगा दी थी। इन एप्स से भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को खतरा बताया गया था। हालांकि विशेषज्ञ एप्स पर लगे प्रतिबंध को चीन के प्रति आशंकाओं का एक बहुत ही छोटा-सा हिस्सा मानते हैं। उस समय युद्ध जैसे हालात बनते बनते रह गए थे।

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दूसरी ओर यह देश भारत के पड़ोसी देशों में अपनी पकड़ लगातार बढ़ाता जा रहा है। पाकिस्तान को उसने पहले ही अपने कर्ज के जाल में फंसा रखा है। श्रीलंका में भी उसकी पैठ गहराती जा रही है। नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार में भी उसका दखल बढ़ रहा है।
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दुनिया इस समय कोरोना महामारी से जूझने में जुटी हुई है और चीन विस्तारवाद की राह पर अपनी गति बढ़ा रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देशों में कोविड से बचाव के टीकों को अधिक से अधिक लोगों को लगाने की जद्दोजहद चल रही है। वहीं विकासशील देशों में टीकों का टोटा चल रहा है और चीन इसका फायदा उठाने में जुटा हुआ है। भारत अभी भी अपनी पहली स्वदेशी कोविड वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मान्यता दिलाने की प्रक्रिया में है और चीन की दो वैक्सीन को यह अनुमति दी जा चुकी है।

इतना ही नहीं चीन दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता और उत्पादक देश अमेरिका को पीछे छोड़ने से कुछ ही कदम पीछे रह गया है। उसने अब तक औसतन प्रत्येक 100 में से 50 नागरिकों को कोविड का टीका लगा दिया है। इतना ही नहीं चीन दुनिया के 60 देशों को मुफ्त या सस्ती वैक्सीन भी उपलब्ध करा चुका है।

कोरोना से बढ़ रही मौतों से चिंतित अमेरिका ने दुनिया के जरूरतमंद देशों को वैक्सीन देने का काम कुछ समय के लिए रोक दिया था। भारत में भी कोरोना की दूसरी लहर ही वजह से यह काम रोक दिया गया था। उसी समय चीन ने दुनिया के अलग अलग भौगोलिक स्थिति वाले देशों को अपनी वैक्सीन दी। चीन में इस समय 49 वैक्सीन पर शोध किया जा रहा है और छह को वह अपने नागरिकों को लगा रहा है। चीन ने पिछले साल 2020 में ही छह कोविड वैक्सीन को देश के भीतर उपयोग की अनुमि दे दी थी और अब तक इनका प्रयोग किया जा रहा है।

वैक्सीन उपनिवेशवाद
अमेरिका में इस समय 66 वैक्सीन पर शोध और उत्पादन का कार्य किया जा रहा है। चीन इस मामले में दूसरे नंबर पर पहुंच चुका है और तीसरे नंबर पर यूरोप के देश हैं। 2021 की शुरुआत के बाद चीन ने वैक्सीन राष्ट्रवाद का फायदा उठाया और मेक्सिको, पेरू, चिली, अर्जेंटीना, रूस, पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे एक दर्जन से ज्यादा देशों में अपनी वैक्सीन का ट्रायल किया।

वहीं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने देश को 'एडवांस्ड सोशलिस्ट कंट्री' बनाने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। इससे अमेरिका और अन्य विकसित देश परेशान हैं। 'एडवांस्ड सोशलिस्ट कंट्री' प्रोजेक्ट के तहत चीन खुद को 2049 तक दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक ताकत के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहता है। यदि वह इसे प्राप्त कर लेता है तो अमेरिका दूसरे पायदान पर पहुंच जाएगा। वहीं तकनीकी मोर्चे पर आगे दिखाई दे रहे कई यूरोपीय देशों की हैसियत भी कम हो जाएगी।

चीन की डरावनी योजनाएं
चीन की कई ऐसी भावी योजनाएं हैं, जो इस समय दुनिया को आश्चर्यचकित करने के साथ-साथ डरा भी रही हैं। निवेश और कर्ज के भी जाल में वह कई देशों को फांस चुका है। हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश भी उसके इस जाल में फंसता जा रहा है। चीन वहां 2030 तक 100 स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड) स्थापित करने की घोषणा कर चुका है। इसमें अरबों डॉलर का निवेश करने के लिए कई चीनी कंपनियां भी तैयार हैं।

बीआरआई योजना
इसी तरह चीन की बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) योजना है जिसके तहत 2049 तक दुनिया के करीब 70 देशों में बुनियादी संरचनाओं का निर्माण कर उन्हें एकसाथ लाया जा रहा है, लेकिन इसका असली मकसद व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करना व भारत और अमेरिका को घेरना है। इन तमाम योजनाओं में एक और महत्वाकांक्षी योजना है - 'मेड इन चाइना 2025' जिसे चीन ने साल 2015 में लॉन्च किया था। फिर अंतरिक्ष का क्षेत्र भी है जहां चीन अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज कर दुनिया पर नजर रखने की महत्वाकांक्षा पाले हुए है। हाल ही में उसने अपने तीन अंतरिक्षयात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में भेजा है। ये तीनों चीन के निर्माणाधीन अंतरिक्ष स्टेशन में तीन महीने तक रहेंगे।

अंतरिक्ष में चुनौती
अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के लिए चीन ने 2021 से 2022 के बीच 11 बार अंतरिक्ष यानों को भेजने की योजना बनाई है जिनमें तीन अभियान पूरे हो चुके हैं। वह तियांजू-2 कार्गो शिप को पहले ही अंतरिक्ष में भेज चुका है। चीनी एजेंसी के अनुसार 11 में से तीन बार उसके यानों से स्टेशन के मॉड्यूल, चार बार कार्गो स्पेसशिप और चार बार अंतरिक्ष यात्री स्टेशन के लिए रवाना होंगे। वह साल 2022 तक 10 ऐसे ही और मॉड्यूल लॉन्च करना चाहता है जो पृथ्वी का चक्कर लगाएंगे।

आशंकित अमेरिका
अमेरिका कई बार आशंका जता चुका है कि चीन भविष्य में अपनी अंतरिक्ष परियोजनाओं का इस्तेमाल अमेरिका और उसके मित्र देशों की जासूसी करने में कर सकता है। यही वजह है कि वो खुद को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से अलग कर चुका है और अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन पूरा करने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है।

जासूसी का खतरा?
अब तक अंतरिक्ष में अमेरिका का वर्चस्व था। वह स्पेस सुप्रीमेसी का फायदा भी उठा रहा था। लेकिन अब चीन पर अंतरिक्ष से जासूसी करने के आरोप लगने लगे हैं। ताइवान पहले ही अपने सरकारी कर्मचारियों को उन स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने से मना कर चुका है जिसमें नेविगेशन के लिए चीनी सॉफ्टवेयर बाइदू इंस्टॉल हैं। उसे शक है कि इस नेटवर्क का इस्तेमाल कर जरूरी सूचनाएं चीन की सेना व सरकार तक पहुंचाई जा सकती हैं।

आशंका की वजह क्या है?
दरअसल, चीन की अंतरिक्ष एजेंसी 'चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन' सेना का अंग है। इसलिए वह अपने हर प्रोजेक्ट के लिए सेना के प्रति उत्तरदायी है। हालांकि अंतरिक्ष अनुसंधान में चीन अब भी अमेरिका से काफी पीछे है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उसकी प्रगति चौंकाने वाली है। चीन ने पिछले साल बाइदू नेटवर्क अभियान के तहत पांच टन वजनी उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित किया था। बाइदू नेटवर्क अमेरिका के विश्वव्यापी 'ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम' (जीपीएस) के विकल्प के रूप में बनाया गया है। चीन ने अपने इस पूरे प्रोजेक्ट पर करीब 10 अरब डॉलर खर्च किए हैं।

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