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कौन हैं द्रुज?: जिन्हें बचाने के लिए सीरिया पर बम बरसा रहा इस्राइल, जानें उनका इतिहास और यहूदी देश से रिश्ता
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Thu, 17 Jul 2025 04:43 PM IST
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सार
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द्रुज मुस्लिमों के बचाव में उतरा इस्राइल।
- फोटो :
अमर उजाला
विस्तार
इस्राइल और हमास के बीच संघर्ष शुरू हुए दो साल होने वाले हैं। यहूदी आबादी वाले इस देश ने अब सीरिया की राजधानी दमिश्क समेत उसके तीन प्रांतों को निशाना बनाया है। बताया गया है कि 13 जुलाई को सीरिया के सुवैदा में हुई एक घटना के बाद इस्राइल सीधे तौर पर सीरिया में जारी संघर्ष में कूद गया और वहां की नई कट्टरपंथी सरकार के खिलाफ हवाई हमलों को अंजाम दे रहा है।पहले से ही चार देशों से संघर्ष में घिरे इस्राइल ने सीरिया पर हमले क्यों तेज कर दिए हैं? यह द्रुज मुस्लिम कौन हैं, जिन्हें बचाने के लिए इस्राइल ने सीरिया की नई सरकार को निशाना बनाया है? द्रुजों को लेकर ताजा घटना क्या हुई है? इस पूरे घटनाक्रम में आगे क्या हो सकता है? आइये जानते हैं...
पहले जानें- कौन हैं द्रुज, क्या है इस समुदाय का इतिहास?
द्रुज अरबी बोलने वाले मुस्लिमों का समुदाय है, जो कि मुख्यतः सीरिया में बसा है। इस समुदाय के लोग लेबनान, जॉर्डन और इस्राइल में भी मौजूद हैं। द्रुजों का मूल इस्लाम के इस्माइली शिया संप्रदाय से है, हालांकि 11वीं सदी में इस समुदाय ने कुछ और धर्मों की प्रथाओं को भी अपनाया। इनमें हिंदू धर्म से जुड़ी कुछ परंपराओं को अपनाना भी शामिल रहा। इस समुदाय के लोग 'पुनर्जन्म' और 'आत्मा के एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने' की अवधारणा में यकीन करते हैं। साथ ही इस्लाम के अलावा, ईसाई धर्म और यहूदी धर्म के प्रमुख पारंपरिक शख्सियतों को भी मानते हैं।
इस्लामिक दुनिया में द्रुज अल्पसंख्यक हैं और इसी की वजह से यह समुदाय बाकी मुस्लिम समूहों से अलग रहता है। इस समुदाय में धर्मांतरण को मान्यता नहीं दी जाती। यानी धर्म बदलकर कोई व्यक्ति द्रुज नहीं बन सकता। साथ ही इस समुदाय के लोग संप्रदाय के बाहर विवाह को भी मान्यता नहीं देते।
द्रुज अरबी बोलने वाले मुस्लिमों का समुदाय है, जो कि मुख्यतः सीरिया में बसा है। इस समुदाय के लोग लेबनान, जॉर्डन और इस्राइल में भी मौजूद हैं। द्रुजों का मूल इस्लाम के इस्माइली शिया संप्रदाय से है, हालांकि 11वीं सदी में इस समुदाय ने कुछ और धर्मों की प्रथाओं को भी अपनाया। इनमें हिंदू धर्म से जुड़ी कुछ परंपराओं को अपनाना भी शामिल रहा। इस समुदाय के लोग 'पुनर्जन्म' और 'आत्मा के एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने' की अवधारणा में यकीन करते हैं। साथ ही इस्लाम के अलावा, ईसाई धर्म और यहूदी धर्म के प्रमुख पारंपरिक शख्सियतों को भी मानते हैं।
इस्लामिक दुनिया में द्रुज अल्पसंख्यक हैं और इसी की वजह से यह समुदाय बाकी मुस्लिम समूहों से अलग रहता है। इस समुदाय में धर्मांतरण को मान्यता नहीं दी जाती। यानी धर्म बदलकर कोई व्यक्ति द्रुज नहीं बन सकता। साथ ही इस समुदाय के लोग संप्रदाय के बाहर विवाह को भी मान्यता नहीं देते।
सुन्नी बहुल सीरिया में कैसे हैं इस समुदाय के हालात?
आधुनिक सीरिया और लेबनान की स्थापना में द्रुज समुदाय का बड़ा हाथ माना जाता है। लेबनान में द्रुज समुदाय प्रोग्रेसिव सोशलिस्ट पार्टी के जरिए राजनीतिक गलियारों में प्रभावी है। वहीं, सीरिया में यह समुदाय अरब समाजवादी बाथ पार्टी का समर्थक रहा है। 1963 में द्रुज सैन्य अफसरों ने सीरिया में तख्तापलट की कोशिशों में भी सहायता की थी, जिसके बाद बाथ पार्टी सीरिया में पहली बार सत्ता में आई थी। यह वही पार्टी है जिसके जरिए सीरिया में अलवी शिया समुदाय से आने वाले हाफिज अल-असद सत्ता में आए थे। बाद में उनके बेटे बशर अल-असद ने भी सीरिया की लंबे समय तक सत्ता संभाली। इन दोनों के शासन में द्रुज समुदाय की स्थिति बेहतर रही।
आधुनिक सीरिया और लेबनान की स्थापना में द्रुज समुदाय का बड़ा हाथ माना जाता है। लेबनान में द्रुज समुदाय प्रोग्रेसिव सोशलिस्ट पार्टी के जरिए राजनीतिक गलियारों में प्रभावी है। वहीं, सीरिया में यह समुदाय अरब समाजवादी बाथ पार्टी का समर्थक रहा है। 1963 में द्रुज सैन्य अफसरों ने सीरिया में तख्तापलट की कोशिशों में भी सहायता की थी, जिसके बाद बाथ पार्टी सीरिया में पहली बार सत्ता में आई थी। यह वही पार्टी है जिसके जरिए सीरिया में अलवी शिया समुदाय से आने वाले हाफिज अल-असद सत्ता में आए थे। बाद में उनके बेटे बशर अल-असद ने भी सीरिया की लंबे समय तक सत्ता संभाली। इन दोनों के शासन में द्रुज समुदाय की स्थिति बेहतर रही।
बीते साल बशर अल-असद के सत्ता से हटने और सुन्नी कट्टरपंथी संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के प्रमुख अहमद अल-शरा के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही द्रुज मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का खतरा जताया जाने लगा था। द्रुजों ने इस खतरे से निपटने के लिए दक्षिणी सीरिया के क्षेत्र में सुरक्षा घेरा बना लिया था, ताकि कट्टरपंथी लड़ाके किसी तरह की हिंसा को बढ़ावा न दें पाएं। द्रुजों ने सुवैदा में सीरियाई लड़ाकों की मौजूदगी का भी विरोध किया और अपनी ही छोटी सी सेना के जरिए क्षेत्र की सुरक्षा पर जोर दिया।
इसके बावजूद सुन्नी लड़ाकों ने कुछ जगहों पर द्रुज लोगों पर हमले बोले और हिंसा को अंजाम दिया। अल-शरा सरकार की तरफ से इन घटनाओं पर रोक लगाने की अपील की गई। इसके बावजूद लड़ाकों ने द्रुजों को मौत के घाट उतारना जारी रखा है। ब्रिटेन आधारित सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक, कट्टरपंथी लड़ाके चुन-चुनकर द्रुजों को निशाने पर ले रहे हैं।
इसके बावजूद सुन्नी लड़ाकों ने कुछ जगहों पर द्रुज लोगों पर हमले बोले और हिंसा को अंजाम दिया। अल-शरा सरकार की तरफ से इन घटनाओं पर रोक लगाने की अपील की गई। इसके बावजूद लड़ाकों ने द्रुजों को मौत के घाट उतारना जारी रखा है। ब्रिटेन आधारित सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक, कट्टरपंथी लड़ाके चुन-चुनकर द्रुजों को निशाने पर ले रहे हैं।
अब जानें- पूरे विवाद में इस्राइल की एंट्री क्यों?
द्रुज मुख्यतः दक्षिणी सीरिया और गोलन की पहाड़ियों में बसे हैं। गोलन की पहाड़ियां (गोलन हाइट्स) वही क्षेत्र है, जहां 1967 में इस्राइल और अरब देशों की जंग के बाद इस्राइल ने कब्जा कर लिया था और फिर इसे अपना हिस्सा बताना शुरू कर दिया। ऐसे में द्रुजों की एक बड़ी आबादी सीरिया से सीधे इस्राइल का हिस्सा बन गई। मौजूदा समय में करीब 20 हजार द्रुज वहां इस्राइल के बनाए घरों में रहते हैं और इस्राइल के प्रति वफादार माने जाते हैं। करीब 1,50,000 द्रुज इस्राइल की नागरिकता भी ले चुके हैं और वे खुद को इस्राइली ही बताते हैं।
यह द्रुज न सिर्फ इस्राइल की सेना में सेवाएं देते हैं, बल्कि इस्राइली यहूदियों से खून का रिश्ता भी मानते हैं। द्रुजों का एक बड़ा समूह इस्राइल के लिए अरब देशों और फलस्तीन के लड़ाकों के खिलाफ अभियान में शामिल रहा है। इसके चलते इस्राइल की सरकार अलग-अलग देशों में उसकी सुरक्षा की गारंटी लेती है।
द्रुज मुख्यतः दक्षिणी सीरिया और गोलन की पहाड़ियों में बसे हैं। गोलन की पहाड़ियां (गोलन हाइट्स) वही क्षेत्र है, जहां 1967 में इस्राइल और अरब देशों की जंग के बाद इस्राइल ने कब्जा कर लिया था और फिर इसे अपना हिस्सा बताना शुरू कर दिया। ऐसे में द्रुजों की एक बड़ी आबादी सीरिया से सीधे इस्राइल का हिस्सा बन गई। मौजूदा समय में करीब 20 हजार द्रुज वहां इस्राइल के बनाए घरों में रहते हैं और इस्राइल के प्रति वफादार माने जाते हैं। करीब 1,50,000 द्रुज इस्राइल की नागरिकता भी ले चुके हैं और वे खुद को इस्राइली ही बताते हैं।
यह द्रुज न सिर्फ इस्राइल की सेना में सेवाएं देते हैं, बल्कि इस्राइली यहूदियों से खून का रिश्ता भी मानते हैं। द्रुजों का एक बड़ा समूह इस्राइल के लिए अरब देशों और फलस्तीन के लड़ाकों के खिलाफ अभियान में शामिल रहा है। इसके चलते इस्राइल की सरकार अलग-अलग देशों में उसकी सुरक्षा की गारंटी लेती है।
मौजूदा विवाद में इस्राइल क्यों भड़का?
सीरिया के दक्षिण में स्थित जॉर्डन की सीमा से लगे सुवैदा में जब द्रुज समुदाय के लोग सुरक्षित क्षेत्र बनाने की कवायद में जुटे थे, तब यहां रहने वाले स्थानीय बेदुइन कबायलियों ने द्रुजों पर हमला बोल दिया और उनका अपहरण कर लिया। इसके बाद हिंसा और भड़क उठी और सीरियाई सरकार के लड़ाके भी द्रुजों की हत्या में शामिल हो गए। इस घटनाक्रम को देखते हुए इस्राइल ने 15 जुलाई को पहली बार सीरिया के सुवैदा में हमले बोले और कट्टरपंथी लड़ाकों को भागने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद इस्राइल ने 16 जुलाई को हमलों को और तेज किया और सीरिया की राजधानी दमिश्क में सैन्य मुख्यालय और सीरिया रक्षा मंत्रालय पर बम बरसा दिए।
इतना ही नहीं इस्राइल ने मध्य दमिश्क में भी एयरस्ट्राइक को अंजाम दिया। उसके यह हमले सीधे राष्ट्रपति भवन के पास हुए, जिसे सीरिया की कट्टरपंथी सुन्नी सरकार के प्रमुख और राष्ट्रपति अहमद अल-शरा पर सीधे हमले की चेतावनी से जोड़कर देखा जा रहा है। इस्राइल के विदेश मंत्री इस्राइल काट्ज ने 16 जुलाई के हमलों के बाद लिखा- दमिश्क के लिए हमारी चेतावनियों का अंत होता है। अब सिर्फ दर्दनाक हमले होंगे।
सीरिया के दक्षिण में स्थित जॉर्डन की सीमा से लगे सुवैदा में जब द्रुज समुदाय के लोग सुरक्षित क्षेत्र बनाने की कवायद में जुटे थे, तब यहां रहने वाले स्थानीय बेदुइन कबायलियों ने द्रुजों पर हमला बोल दिया और उनका अपहरण कर लिया। इसके बाद हिंसा और भड़क उठी और सीरियाई सरकार के लड़ाके भी द्रुजों की हत्या में शामिल हो गए। इस घटनाक्रम को देखते हुए इस्राइल ने 15 जुलाई को पहली बार सीरिया के सुवैदा में हमले बोले और कट्टरपंथी लड़ाकों को भागने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद इस्राइल ने 16 जुलाई को हमलों को और तेज किया और सीरिया की राजधानी दमिश्क में सैन्य मुख्यालय और सीरिया रक्षा मंत्रालय पर बम बरसा दिए।
इतना ही नहीं इस्राइल ने मध्य दमिश्क में भी एयरस्ट्राइक को अंजाम दिया। उसके यह हमले सीधे राष्ट्रपति भवन के पास हुए, जिसे सीरिया की कट्टरपंथी सुन्नी सरकार के प्रमुख और राष्ट्रपति अहमद अल-शरा पर सीधे हमले की चेतावनी से जोड़कर देखा जा रहा है। इस्राइल के विदेश मंत्री इस्राइल काट्ज ने 16 जुलाई के हमलों के बाद लिखा- दमिश्क के लिए हमारी चेतावनियों का अंत होता है। अब सिर्फ दर्दनाक हमले होंगे।
माना जा रहा है कि इस्राइल अपने इस अभियान के जरिए न सिर्फ द्रुजों को बचाने का प्रयास कर रहा है, बल्कि सीरिया की कट्टरपंथी सुन्नी सरकार के प्रभाव के दायरे को सीमित करने की कोशिश भी कर रहा है। इस्राइल लंबे समय से गोलन की पहाड़ियों और सीरिया के क्षेत्र के बीच एक बफर जोन बनाने का प्रस्ताव देता आया है, ताकि वह यहां रहने वाले द्रुजों को सुरक्षित कर सके और अपनी सीमाओं पर भी पहरे को सख्त कर दे।
किस ओर जा सकते हैं सीरिया में इस्राइल के हमले?
द्रुज समुदाय को लेकर शुरू हुए संघर्ष के बाद सीरिया में अब एक बार फिर तनाव की स्थिति पैदा होने की आशंका जताई जा रही है। राष्ट्रपति अहमद अल-शरा की सरकार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है, जो कि पूरे देश में अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए जोर लगा रही है। इस्राइली हमलों के बाद पहले से ही हथियारों और तकनीक के मामले में पिछड़े सीरिया को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
दूसरी तरफ इस्राइल जो अब तक फलस्तीन, लेबनान, ईरान और यमन में जबरदस्त हमलों से वहां की सरकारों और संगठनों की नींव को हिला चुका है, उसने अब अपने लिए एक नया संघर्ष का फ्रंट खोल लिया है। हालांकि, बाकी देशों के मुकाबले सीरिया में इस्राइल का लक्ष्य साफ है- द्रुजों की रक्षा और सीरिया से लगती सीमा पर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना। इन लक्ष्यों के हासिल होने की स्थिति में ही इस्राइल संघर्ष को रोकने पर विचार कर सकता है।
द्रुज समुदाय को लेकर शुरू हुए संघर्ष के बाद सीरिया में अब एक बार फिर तनाव की स्थिति पैदा होने की आशंका जताई जा रही है। राष्ट्रपति अहमद अल-शरा की सरकार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है, जो कि पूरे देश में अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए जोर लगा रही है। इस्राइली हमलों के बाद पहले से ही हथियारों और तकनीक के मामले में पिछड़े सीरिया को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
दूसरी तरफ इस्राइल जो अब तक फलस्तीन, लेबनान, ईरान और यमन में जबरदस्त हमलों से वहां की सरकारों और संगठनों की नींव को हिला चुका है, उसने अब अपने लिए एक नया संघर्ष का फ्रंट खोल लिया है। हालांकि, बाकी देशों के मुकाबले सीरिया में इस्राइल का लक्ष्य साफ है- द्रुजों की रक्षा और सीरिया से लगती सीमा पर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना। इन लक्ष्यों के हासिल होने की स्थिति में ही इस्राइल संघर्ष को रोकने पर विचार कर सकता है।