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क्या है 'फाइव आइज': जिससे कनाडा को बाहर करने की तैयारी में क्यों ट्रंप प्रशासन; भारत के किस मामले में आया नाम?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Thu, 27 Feb 2025 03:02 PM IST
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सार
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फाइव आइज गठबंधन में शामिल देशों के मौजूदा राष्ट्राध्यक्ष।
- फोटो :
अमर उजाला
विस्तार
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार बनने के बाद से ही कुछ देशों में हलचल मची है। इनमें सबसे अहम नाम अमेरिका के मित्र और सहयोगी देशों के हैं। हालांकि, जिस एक देश को ट्रंप ने सबसे ज्यादा निशाना बनाया है, वह अमेरिका के उत्तर में उसका सबसे करीबी पड़ोसी देश- कनाडा। चाहे आयात शुल्क लगाने से जुड़ी धमकियां हों या कनाडा से लगी सीमाओं पर अतिरिक्त सख्ती बरतने की चेतावनी या फिर कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने से जुड़ा तंज। ट्रंप हर एक मौके पर कनाडा पर हावी होने की कोशिश में रहे हैं।हालांकि, जिस ताजा मामले पर अमेरिका की तरफ से कनाडा के लिए सख्त रुख अख्तियार करने का इशारा किया गया है, वह उसकी सुरक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। मामला है कनाडा को एक ऐसे फाइव आइज अलायंस से बाहर करने की चर्चा का। अगर कनाडा आगामी समय में इस गठबंधन से बाहर होता है, तो इसके कई दूरगामी असर हो सकते हैं। खासकर कनाडा की खुफिया और निगरानी क्षमताओं पर नकारात्मक असर पड़ना तय है।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर यह फाइव आइज अलायंस क्या है? इसकी शुरुआत कैसे हुई? अमेरिका में कनाडा को इस गठबंधन से निकालने की चर्चा क्यों शुरू हुई और यह कहां तक पहुंची है? फाइल आइज अलायंस काम कैसे करता है और कनाडा की खुफिया क्षमताओं में इसकी क्या भूमिका है? कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में इस गठबंधन से कनाडा को किस तरह की मदद मिली थी? आइये जानते हैं...
कैसे-क्यों अस्तित्व में आया फाइव आइज अलायंस?
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और उसका साथ देने वाले देशों से निपटने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने एक खुफिया नेटवर्क स्थापित किया। अटलांटिक महासागर से बंटे इन दोनों देशों ने अलग-अलग तकनीकों से हजारों किलोमीटर दूर खुफिया जानकारी साझा करना शुरू किया था। इसका फायदा यह हुआ कि विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और जापान की युद्ध नीति से जुड़े कई खुफिया कोड का पता लगा लिया गया। इस तरह अमेरिका और ब्रिटेन ने आगे भी खुफिया जानकारी साझा करना जारी रखा।
दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद जब सोवियत संघ मजबूती से उभरा, तब अमेरिका और ब्रिटेन के इस गठबंधन ने खुफिया जानकारी साझा करना जारी रखा। 1946 में दोनों देशों ने अपने इस समझौते को आधिकारिक मान्यता दे दी। तब इसे ब्रिटिश-यूएस कम्युनिकेशन इंटेलिजेंस एग्रीमेंट (BRUSA) नाम दिया गया। इस पर दोनों देशों की सरकारों-सेनाओं और नौसेनाओं के खुफिया संचार विभाग की तरफ से हस्ताक्षर किया गया था।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और उसका साथ देने वाले देशों से निपटने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने एक खुफिया नेटवर्क स्थापित किया। अटलांटिक महासागर से बंटे इन दोनों देशों ने अलग-अलग तकनीकों से हजारों किलोमीटर दूर खुफिया जानकारी साझा करना शुरू किया था। इसका फायदा यह हुआ कि विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और जापान की युद्ध नीति से जुड़े कई खुफिया कोड का पता लगा लिया गया। इस तरह अमेरिका और ब्रिटेन ने आगे भी खुफिया जानकारी साझा करना जारी रखा।
दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद जब सोवियत संघ मजबूती से उभरा, तब अमेरिका और ब्रिटेन के इस गठबंधन ने खुफिया जानकारी साझा करना जारी रखा। 1946 में दोनों देशों ने अपने इस समझौते को आधिकारिक मान्यता दे दी। तब इसे ब्रिटिश-यूएस कम्युनिकेशन इंटेलिजेंस एग्रीमेंट (BRUSA) नाम दिया गया। इस पर दोनों देशों की सरकारों-सेनाओं और नौसेनाओं के खुफिया संचार विभाग की तरफ से हस्ताक्षर किया गया था।
बाद में एक-एक कर के कुछ और देशों को भी इस समझौते का हिस्सा बनाया गया। 1948 में कनाडा इस समझौते से जुड़ने वाला पहला देश था। वहीं, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड इस समझौते से 1956 में जुड़े। एक समझौते से पांच देशों के जुड़ने के बाद इसे फाइव आइज नाम दे दिया गया। यह गठबंधन अमेरिका-सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध के समय काफी काम आया और अलग-अलग महासागरों में मौजूद देशों ने रूस की गतिविधियों की निगरानी कर अमेरिका को जबरदस्त फायदा पहुंचाया।
फाइव आइज अलायंस काम कैसे करता है?
फाइव आइज के पांच सदस्य देश अपनी घरेलू और विदेशी खुफिया एजेंसियों के जरिए अलग-अलग मुद्दों पर जानकारी साझा करते हैं। कनाडा के एक खुफिया विभाग के अफसर ने 2020 में सैन्य मामलों से जुड़ी पत्रिका मे बताया कि...
फाइव आइज के पांच सदस्य देश अपनी घरेलू और विदेशी खुफिया एजेंसियों के जरिए अलग-अलग मुद्दों पर जानकारी साझा करते हैं। कनाडा के एक खुफिया विभाग के अफसर ने 2020 में सैन्य मामलों से जुड़ी पत्रिका मे बताया कि...
हालांकि, बदलते समय के साथ फाइव आइज की खुफिया गतिविधियों में भी बदलाव देखा गया है। खासकर सोवियत संघ में टूट के बाद इस गठबंधन आतंकवाद-कट्टरपंथी गतिविधियों और चीन के बढ़ते प्रभाव पर भी नजर रखना शुरू कर दिया। फाइव आइज में न्यूजीलैंड को छोड़कर बाकी सभी देशों ने चीन के शिनजियांग में ईगुर मुस्लिमों के हालात को लेकर चिंता जताई है। इसके अलावा हॉन्गकॉन्ग और ताइवान में लोकतंत्र को तबाह करने की नीति को लेकर कड़ी निगरानी रखी है।
फाइव आइज से जुड़े देशों के बीच सहयोग तय करने के लिए इस गठबंधन ने एक परिषद- 'फाइव आइज इंटेलिजेंस ओवरसाइट एंड रिव्यू काउंसिल' भी स्थापित किया है। सितंबर 2016 में FIORC की स्थापना गैर-राजनीतिक निगरानी, समीक्षा और सुरक्षा संस्थान के तौर पर की गई थी। इसमें शामिल देश आपसी हितों वाले मुद्दों पर खुफिया जानकारी साझा करते हैं और एक-दूसरे से अहम मामलों पर संपर्क में रहते हैं।
कब-कब विवादों में रहा फाइव आइज गठबंधन?
फाइव आइज गठबंधन की गतिविधियां लंबे समय तक पर्दे के पीछे ही रहीं। ऐसे में इसके काम करने के तरीके, सुरक्षा और निजता को लेकर कोई खास जानकारी सामने नहीं आ पाई। 2013 में यह गठबंधन पहली बार विवादों में तब घिरा, जब अमेरिका की एक सुरक्षा एजेंसी- नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी के कॉन्ट्रैक्टर एडवर्ड स्नोडेन ने कई गुप्त जानकारियां दुनिया के सामने रख दीं।
स्नोडेन की तरफ से मुहैया कराए गए दस्तावेजों में फाइव आइज में शामिल देशों के एक-दूसरे के नागरिकों पर बड़े स्तर पर चलाए जा रहे निगरानी कार्यक्रमों की भी जानकारी दी गई थी। स्नोडेन ने इस गठबंधन को अंतरराष्ट्रीय खुफिया संगठन करार दिया था, जो कि अपने ही देश के कानून के प्रति जवाबदेही नहीं रखता।
ब्रिटेन-आधारित चैरिटी प्राइवेसी इंटरनेशनल का दावा है कि फाइव आइज के मूल समझौते में निगरानी गतिविधियों के आउटसोर्सिंग की बात भी है। इसके चलते एजेंसियां बेरोकटोक असीमित खुफिया जानकारी तक पहुंच बना सकती हैं। इन देशों में घरेलू स्तर पर भी ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत खुफिया जानकारी साझा करने की कोई शर्त हो।
फाइव आइज गठबंधन की गतिविधियां लंबे समय तक पर्दे के पीछे ही रहीं। ऐसे में इसके काम करने के तरीके, सुरक्षा और निजता को लेकर कोई खास जानकारी सामने नहीं आ पाई। 2013 में यह गठबंधन पहली बार विवादों में तब घिरा, जब अमेरिका की एक सुरक्षा एजेंसी- नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी के कॉन्ट्रैक्टर एडवर्ड स्नोडेन ने कई गुप्त जानकारियां दुनिया के सामने रख दीं।
स्नोडेन की तरफ से मुहैया कराए गए दस्तावेजों में फाइव आइज में शामिल देशों के एक-दूसरे के नागरिकों पर बड़े स्तर पर चलाए जा रहे निगरानी कार्यक्रमों की भी जानकारी दी गई थी। स्नोडेन ने इस गठबंधन को अंतरराष्ट्रीय खुफिया संगठन करार दिया था, जो कि अपने ही देश के कानून के प्रति जवाबदेही नहीं रखता।
ब्रिटेन-आधारित चैरिटी प्राइवेसी इंटरनेशनल का दावा है कि फाइव आइज के मूल समझौते में निगरानी गतिविधियों के आउटसोर्सिंग की बात भी है। इसके चलते एजेंसियां बेरोकटोक असीमित खुफिया जानकारी तक पहुंच बना सकती हैं। इन देशों में घरेलू स्तर पर भी ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत खुफिया जानकारी साझा करने की कोई शर्त हो।
कनाडा के लिए कितना अहम है फाइव आइज?
अमेरिका की तरफ से कनाडा को फाइव आइज गठबंधन से निकालने की बात करना देश की मौजूदा जस्टिन ट्रूडो सरकार से लेकर आने वाली सरकारों के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। दरअसल, कनाडा अपनी सुरक्षा को मजबूत करने और खतरों से निपटने के लिए काफी हद तक फाइव आइज पर निर्भर है। इसमें शामिल देश भले ही गठबंधन के तहत युद्ध या कूटनीति के क्षेत्र में मदद न करें, लेकिन यह देश एक-दूसरे को ऐसी अहम जानकारियां मुहैया कराते रहे हैं, जिनसे बड़े खतरों को टालने में मदद मिली है।
कनाडा ने फाइव आइज इंटेलिजेंस के जरिए आतंकी हमलों, साइबर सुरक्षा, रूस के चुनावी दखल से निपटने और अफगानिस्तान समेत कई देशों में अभियान से जुड़ी रणनीति बनाने में मदद की है।
अमेरिका की तरफ से कनाडा को फाइव आइज गठबंधन से निकालने की बात करना देश की मौजूदा जस्टिन ट्रूडो सरकार से लेकर आने वाली सरकारों के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। दरअसल, कनाडा अपनी सुरक्षा को मजबूत करने और खतरों से निपटने के लिए काफी हद तक फाइव आइज पर निर्भर है। इसमें शामिल देश भले ही गठबंधन के तहत युद्ध या कूटनीति के क्षेत्र में मदद न करें, लेकिन यह देश एक-दूसरे को ऐसी अहम जानकारियां मुहैया कराते रहे हैं, जिनसे बड़े खतरों को टालने में मदद मिली है।
कनाडा ने फाइव आइज इंटेलिजेंस के जरिए आतंकी हमलों, साइबर सुरक्षा, रूस के चुनावी दखल से निपटने और अफगानिस्तान समेत कई देशों में अभियान से जुड़ी रणनीति बनाने में मदद की है।
फाइव आइज ने कब-कब की कनाडा की मदद?
1. आतंकी हमले रोकने में
(i) 2006 में टोरंटो पर आतंकी हमले की साजिश
- फाइव आइज गठबंधन की तरफ से खुफिया जानकारी की बदौलत कनाडा ने 2006 में एक बड़े आतंकी हमले की साजिश को नाकाम किया था। इस के तहत 18 लोग टोरंटो में स्टॉक एक्सचेंज पर बम धमाके, संसद पर हमले और प्रधानमंत्री को जान से मारने की साजिश रच रहे थे।
- अमेरिका और ब्रिटेन ने खुफिया जानकारी और निगरानी तंत्र की बदौलत ऐसे लोगों की पहचान की जो कट्टरपंथ से जुड़े थे और संदिग्ध संचार के तरीकों का इस्तेमाल कर रहे थे।
(ii) टोरंटो-न्यूयॉर्क यात्री ट्रेन पर हमले की साजिश
- फाइव आइज ने 2013 में कनाडा के टोरंटो से अमेरिका के न्यूयॉर्क तक जाने वाली यात्री ट्रेन में बमबारी की साजिश से जुड़ी जानकारी मुहैया कराई थी। इसके आधार पर कनाडा की पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया था।
(iii) आईएसआईएस के बढ़ते प्रभाव को रोकने में
फाइव आइज की खुफिया जानकारी की बदौलत कनाडा को कई ऐसे नागरिकों को ट्रैक करने में मदद मिली, जो कि आईएसआईएस में शामिल होने के लिए देश छोड़कर भागने की कोशिश में थे। इससे कनाडा में घरेलू स्तर पर आतंकवाद को फैलने से रोका गया।
1. आतंकी हमले रोकने में
(i) 2006 में टोरंटो पर आतंकी हमले की साजिश
- फाइव आइज गठबंधन की तरफ से खुफिया जानकारी की बदौलत कनाडा ने 2006 में एक बड़े आतंकी हमले की साजिश को नाकाम किया था। इस के तहत 18 लोग टोरंटो में स्टॉक एक्सचेंज पर बम धमाके, संसद पर हमले और प्रधानमंत्री को जान से मारने की साजिश रच रहे थे।
- अमेरिका और ब्रिटेन ने खुफिया जानकारी और निगरानी तंत्र की बदौलत ऐसे लोगों की पहचान की जो कट्टरपंथ से जुड़े थे और संदिग्ध संचार के तरीकों का इस्तेमाल कर रहे थे।
(ii) टोरंटो-न्यूयॉर्क यात्री ट्रेन पर हमले की साजिश
- फाइव आइज ने 2013 में कनाडा के टोरंटो से अमेरिका के न्यूयॉर्क तक जाने वाली यात्री ट्रेन में बमबारी की साजिश से जुड़ी जानकारी मुहैया कराई थी। इसके आधार पर कनाडा की पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया था।
(iii) आईएसआईएस के बढ़ते प्रभाव को रोकने में
फाइव आइज की खुफिया जानकारी की बदौलत कनाडा को कई ऐसे नागरिकों को ट्रैक करने में मदद मिली, जो कि आईएसआईएस में शामिल होने के लिए देश छोड़कर भागने की कोशिश में थे। इससे कनाडा में घरेलू स्तर पर आतंकवाद को फैलने से रोका गया।
इतना ही नहीं युद्ध और संघर्ष क्षेत्रों में कनाडा के अभियानों में भी फाइव आइज की खुफिया जानकारियां काफी मददगार साबित हुई हैं। उदाहरण के तौर पर 2001 से 2014 तक कनाडा की सेना अफगानिस्तान में अल-कायदा और तालिबान को रोकने की जंग का हिस्सा बनी। इस दौरान फाइव आइज गठबंधन की तरफ से मिली जानकारी के आधार पर दुश्मनों की गतिविधियों का पता लगाया गया। इन्हीं जानकारियों के जरिए आतंकियों के हमलों की पूर्व जानकारी भी जुटाई जाती रही।
निज्जर की हत्या मामले की जांच में क्यों आया था फाइव आइज का नाम?
खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया स्थित एक गुरुद्वारे के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख था और भारत में एक घोषित आतंकवादी था। इस मामले में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारतीय खुफिया एजेंसियों पर निज्जर की हत्या को अंजाम देने के आरोप लगाए थे। हालांकि, इसे लेकर ट्रूडो कोई सबूत नहीं दे पाए।
भारत ने बिना ठोस सबूतों के इस तरह के आरोपों को लेकर कनाडा को कड़ी फटकार लगाई थी। हालांकि, इसके बावजूद ट्रूडो ने कनाडाई एजेंसियों और पुलिस की जांच का हवाला देते हुए भारत पर आरोप लगाने जारी रखे। इन सब के बीच यह खबरें आईं कि कनाडा ने कुछ भारतीय अधिकारियों की बातचीत को इंटरसेप्ट किया है और उसी के आधार पर उसने भारत पर आरोप लगाए हैं। इन रिपोर्ट्स में ये भी बताया गया है कि इस जासूसी के काम में फाइव आइज गठबंधन में शामिल एक देश ने कनाडा को कुछ इनपुट मुहैया कराए हैं।
इस खबर के सामने आने के बाद फाइव आइज इंटेलिजेंस की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे थे। दरअसल, विएना कन्वेंशन के तहत दूसरे देश के राजनयिकों की निजता का हनन या उनकी बातचीत को रिकॉर्ड करना गैरकानूनी है। ऐसे में कनाडा को फाइव आइज के किसी साथी के जरिए खुफिया जानकारी मिलना शक के घेरे में आ गया। कनाडा के दावों की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठ गए। माना जाता है कि मामले में फाइव आइज का नाम बाहर आने के बाद से इस गठबंधन ने खुलकर कनाडा को कोई जानकारी नहीं मुहैया कराई है।
खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया स्थित एक गुरुद्वारे के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख था और भारत में एक घोषित आतंकवादी था। इस मामले में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारतीय खुफिया एजेंसियों पर निज्जर की हत्या को अंजाम देने के आरोप लगाए थे। हालांकि, इसे लेकर ट्रूडो कोई सबूत नहीं दे पाए।
भारत ने बिना ठोस सबूतों के इस तरह के आरोपों को लेकर कनाडा को कड़ी फटकार लगाई थी। हालांकि, इसके बावजूद ट्रूडो ने कनाडाई एजेंसियों और पुलिस की जांच का हवाला देते हुए भारत पर आरोप लगाने जारी रखे। इन सब के बीच यह खबरें आईं कि कनाडा ने कुछ भारतीय अधिकारियों की बातचीत को इंटरसेप्ट किया है और उसी के आधार पर उसने भारत पर आरोप लगाए हैं। इन रिपोर्ट्स में ये भी बताया गया है कि इस जासूसी के काम में फाइव आइज गठबंधन में शामिल एक देश ने कनाडा को कुछ इनपुट मुहैया कराए हैं।
इस खबर के सामने आने के बाद फाइव आइज इंटेलिजेंस की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे थे। दरअसल, विएना कन्वेंशन के तहत दूसरे देश के राजनयिकों की निजता का हनन या उनकी बातचीत को रिकॉर्ड करना गैरकानूनी है। ऐसे में कनाडा को फाइव आइज के किसी साथी के जरिए खुफिया जानकारी मिलना शक के घेरे में आ गया। कनाडा के दावों की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठ गए। माना जाता है कि मामले में फाइव आइज का नाम बाहर आने के बाद से इस गठबंधन ने खुलकर कनाडा को कोई जानकारी नहीं मुहैया कराई है।
कनाडा के आरोपों की जांच में फाइव आइज ने क्यों नहीं दिया साथ?
सेंटर फॉर इंटरनेशनल गवर्नेंस इनोवेशन से जुड़े सीनियर फेलो वार्क के मुताबिक, फाइव आइज के साथी कनाडाई अधिकारियों से और अधिक जानकारी चाहते हैं कि कनाडाई वास्तव में क्या जानते हैं और उनकी जांच कैसे चल रही है। उनका कहना है कि सभी भागीदारों को भारत पर लगे आरोपों के बारे में जानकारी दी गई थी, लेकिन वे मजबूत बयान देने की प्रतीक्षा में हैं। जानकारों का मानना है कि जब तक कनाडाई अपनी बात आगे नहीं बढ़ा देते, तब तक वे स्वयं जांच करें और अधिक विवरण लेकर आएं। इसके बाद ही फाइव आइज अपने स्तर पर कुछ करेगा।
सेंटर फॉर इंटरनेशनल गवर्नेंस इनोवेशन से जुड़े सीनियर फेलो वार्क के मुताबिक, फाइव आइज के साथी कनाडाई अधिकारियों से और अधिक जानकारी चाहते हैं कि कनाडाई वास्तव में क्या जानते हैं और उनकी जांच कैसे चल रही है। उनका कहना है कि सभी भागीदारों को भारत पर लगे आरोपों के बारे में जानकारी दी गई थी, लेकिन वे मजबूत बयान देने की प्रतीक्षा में हैं। जानकारों का मानना है कि जब तक कनाडाई अपनी बात आगे नहीं बढ़ा देते, तब तक वे स्वयं जांच करें और अधिक विवरण लेकर आएं। इसके बाद ही फाइव आइज अपने स्तर पर कुछ करेगा।