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Glacier Mass Loss: तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर, वैज्ञानिक बोले- वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित रखना जरूरी

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडू Published by: बशु जैन Updated Fri, 30 May 2025 09:22 AM IST
सार

साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक ग्लेशियर वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रति पहले के अनुमान से भी अधिक संवेदनशील हैं। अगर वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, तो ग्लेशियर द्रव्यमान का केवल 24 प्रतिशत ही बचेगा। ऐसे में तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करके ग्लेशियर को संरक्षित किया जा सकता है।

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Glaciers Melting Rapidly Due to Climate Change, Scientists Warn of Global Warming news in Hindi
ग्लेशियर (सांकेतिक) - फोटो : एएनआई
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विस्तार
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जलवायु परिवर्तन के बीच ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ग्लेशियर का द्रव्यमान लगातार कम हो रहा है। तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर देश तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखते हैं तो ग्लेशियर को बचाया जा सकता है। 
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साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक ग्लेशियर वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रति पहले के अनुमान से भी अधिक संवेदनशील हैं। अगर वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, तो ग्लेशियर द्रव्यमान का केवल 24 प्रतिशत ही बचेगा। ऐसे में तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करके 54 प्रतिशत ग्लेशियर को संरक्षित किया जा सकता है।
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इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) ने बताया कि अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के आसपास के बहुत बड़े ग्लेशियरों के कारण आंकडें विषम हैं। मानव समुदायों के लिए सबसे महत्वपूर्ण ग्लेशियर क्षेत्र और भी ज्यादा संवेदनशील हैं, जहां कई ग्लेशियर 2 डिग्री सेल्सियस पर ही लगभग सारी बर्फ खो चुके हैं।

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ग्लेशियर पानी का एक बारहमासी स्रोत हैं और बदलते जलवायु के प्रति बहुत संवेदनशील हैं। वैज्ञानिक द्रव्यमान संतुलन को सर्दियों में जमा बर्फ और गर्मियों में बर्फ और बर्फ के नुकसान के बीच के अंतर के रूप में जाना जाता है। द्रव्यमान संतुलन को जानना या गणना करना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह किसी भी ग्लेशियर के लिए कुल जल उपलब्धता बताता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर भारत और नेपाल सहित आठ देशों के 2 अरब लोगों को पोषण देने वाली नदी घाटियों को पानी देते हैं। यहां 2020 के बर्फ के स्तर का केवल 25 प्रतिशत ही बचा है। दूसरी ओर 1.5 डिग्री सेल्सियस के आसपास तापमान बनाए रखने से सभी क्षेत्रों में कुछ ग्लेशियर बर्फ संरक्षित रहती है। चार सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में 20-30 प्रतिशत बर्फ बची है और हिमालय तथा काकेशस में 40-45 प्रतिशत बर्फ बची है। रिपोर्ट में 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान लक्ष्य की बढ़ती आवश्यकता तथा इसे प्राप्त करने के लिए तीव्र डी-कार्बोनाइजेशन पर बल दिया गया है।

2015 के पेरिस समझौते के तहत 180 से अधिक देशों ने तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित रखने के लिए उत्सर्जन में कटौती करने और 2100 तक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर (1850-1900) से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की थी।

रिपोर्ट में यूरोपीय आल्प्स, पश्चिमी अमेरिका और कनाडा के रॉकीज़ और आइसलैंड के ग्लेशियरों का भी उल्लेख किया गया है। यहां दो डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि के कारण 2020 के बर्फ के स्तर का केवल 10-15 प्रतिशत ही बचा है। सबसे ज़्यादा नुकसान स्कैंडिनेविया को होगा, जहां दो डिग्री सेल्सियस तापमान पर कोई भी ग्लेशियर बर्फ नहीं बचेगा।

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21 वैज्ञानिकों की टीम ने किया काम
अध्ययन के अनुसार कि इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए 10 देशों के 21 वैज्ञानिकों की एक टीम ने दुनिया भर में 2,00,000 से अधिक ग्लेशियरों के संभावित बर्फ नुकसान की गणना करने के लिए आठ ग्लेशियर मॉडल का उपयोग किया। रिपोर्ट में बताया गया है कि इसमें सभी ग्लेशियर दशकों में तेजी से अपना द्रव्यमान खो देते हैं और फिर बिना किसी और गर्मी के भी सदियों तक धीमी गति से पिघलते रहते हैं। इसका मतलब है कि वे आज की गर्मी के प्रभाव को लंबे समय तक महसूस करेंगे और फिर जब वे अधिक ऊंचाई पर वापस जाएंगे तो एक नए संतुलन में आ जाएंगे।

ग्लेशियर की स्थिति बेहद खराब
इंसब्रुक विश्वविद्यालय की सह-प्रमुख लेखिका डॉ. लिलियन शूस्टर ने कहा कि ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के अच्छे संकेतक हैं, क्योंकि उनके पीछे हटने से हम अपनी आंखों से देख पाते हैं कि जलवायु किस प्रकार बदल रही है, लेकिन ग्लेशियरों की स्थिति वास्तव में आज पहाड़ों पर दिखाई देने वाली स्थिति से कहीं अधिक खराब है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) और यूके मौसम विज्ञान कार्यालय के पूर्वानुमान में कहा गया है,  यह और भी अधिक संभावित है कि विश्व एक बार फिर 10 वर्ष पहले निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय तापमान सीमा को पार कर जाएगा। हाल ही में नेपाल में आयोजित सागरमाथा संवाद में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा था कि पहाड़ भले ही बहुत दूर लगते हों। लेकिन उनकी सांसें आधी दुनिया को जीवित रखती हैं। आर्कटिक से लेकर एंडीज तक, आल्प्स से लेकर हिमालय तक ये पृथ्वी के जल-स्तंभ हैं और ये खतरे में हैं।

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