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ILO: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का दावा- गर्मी बढ़ा रही मजदूरों का तनाव, बीमारियों के हो रहे शिकार

यूएन हिंदी समाचार Published by: बशु जैन Updated Sat, 27 Jul 2024 11:33 AM IST
सार

अध्ययन में कहा गया कि गर्मी से होने वाला तनाव अदृश्य होता है और स्वास्थ्य पर चुपचाप असर डालता है। जिससे बहुत ही कम समय में बीमारी, लू लगने जैसे गंभीर परिणाम सामने आते हैं और कई मामलों में मौत भी हो सकती है। लंबे समय में इससे दिल, फ़ेफड़ों व किडनी की गंभीर बीमारी भी हो सकती है।

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ILO report Heat stress is hitting more workers than ever before
श्रमिक (प्रतीकात्मक तस्वीर) - फोटो : एएनआई
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विस्तार
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अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि दुनिया भर में गर्मी के तनाव से बेहाल हो रहे श्रमिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। नए आंकड़े बताते हैं कि जिन क्षेत्रों में पहले गर्मी नहीं पड़ती थी, अब वो तापमान बढ़ने के कारण बढ़ते जोखिम का सामना करेंगे। इससे पहले से ही गर्म स्थानों पर काम कर रहे लोगों को और भी खतरनाक हालात का सामना करना पड़ेगा।  

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अध्ययन में कहा गया कि गर्मी से होने वाला तनाव अदृश्य होता है और स्वास्थ्य पर चुपचाप असर डालता है। जिससे बहुत ही कम समय में बीमारी, लू लगने जैसे गंभीर परिणाम सामने आते हैं और कई मामलों में मौत भी हो सकती है। लंबे समय में इससे दिल, फ़ेफड़ों व किडनी की गंभीर बीमारी भी हो सकती है।
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रिपोर्ट में संकेत दिए गए हैं कि अफ्रीका, अरब देशों और एशिया-प्रशांत के श्रमिक गर्मी के अधिक संपर्क में आते हैं। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक परिवर्तनशील कामकाजी स्थिति यूरोप और मध्य एशिया में देखने को मिल रही है। इस क्षेत्र में वर्ष 2000 से 2020 तक अत्यधिक गर्मी से सम्पर्क में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई। इससे प्रभावित श्रमिकों का अनुपात 17.3 फ़ीसदी के हिसाब से बढ़ा, जोकि वैश्विक वृद्धि के औसत से दोगुना था।  

अमेरिका और यूरोप व मध्य एशिया क्षेत्र गर्मी के तनाव की वजह से कार्यक्षेत्र में चोट लगने की घटनाओं में भी सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2020 में विश्व स्तर पर 4,200 कर्मियों को गर्म हवाओं के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। वहीं 23 करोड़ 10 लाख श्रमिक गर्म हवाओं से प्रभावित हुए। 

कार्रवाई की दरकार
ILO के महानिदेशक गिलबर्ट एफ़ हुंगबो का कहना है कि पूरा विश्व बढ़ते तापमान से जद्दोजहद कर रहा है। ऐसे में हमें पूरे वर्ष अपने श्रमिकों को गर्मी के तनाव से बचाने के प्रयास करने होंगे। अत्यधिक गर्मी से पूरे साल श्रमिकों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक़ जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है। वैसे-वैसे अत्यधिक गर्मी के प्रभाव से कार्यक्षेत्र में श्रमिकों को बीमारी व चोटों से बचाने के लिए सुरक्षा व स्वास्थ्य तरीक़ों में सुधार लाने से वैश्विक स्तर पर 361अरब डॉलर की बचत हो सकती है। 

वहीं ILO का अनुमान है कि निम्न व मध्य आय वाली अर्थव्यवस्थाएं खासतौर पर अधिक प्रभावित हुई हैं। गिलबर्ट एफ हुंगबो ने कहा कि यह मानव अधिकारों का एक मुद्दा है। श्रमिकों के अधिकारों का मुद्दा है व आर्थिक मुद्दा भी है। इसका सबसे अधिक ख़ामियाजा मध्य आय वाली अर्थव्यवस्थाएं भुगत रही हैं। हमें पूरे साल श्रमिकों के लिए गर्मी से निपटने की कार्रवाई की योजना व कानूनों की ज़रूरत है। साथ ही, विशेषज्ञों के बीच मज़बूत वैश्विक सहयोग ज़रूरी होगा। ताकि वे गर्मी से उपजे तनाव का आकलन करके, कार्यक्षेत्र में उचित उपाय लागू करने में मदद कर सकें।

पृथ्वी गर्म और खतरनाक होती जा रही
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि अगर कोई एक मुद्दा है जिस पर पूरा विश्व एकमत होगा, तो वो यह है कि हम सभी लोग, बढ़ती गर्मी का अनुभव कर रहे हैं। पृथ्वी सभी जगहों पर सर्वजन के लिए अत्यधिक गर्म और खतरनाक बनती जा रही है। हमें बढ़ते तापमान की चुनौती से निपटना होगा। साथ ही मानवाधिकारों के आधार पर श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई करनी होगी। ILO की रिपोर्ट में दुनियाभर के 21 देशों में वैधानिक उपायों की समीक्षा की गई है। इससे कार्यक्षेत्र में गर्मी से सुरक्षा के लिए एक उचित योजना बनाई जा सके। इसमें गर्मी से होने वाली बीमारियों से श्रमिकों को बचाने के लिए, सुरक्षा एवं स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली की मुख्य अवधारणाओं की भी जानकारी दी गई है।

यह रिपोर्ट अप्रैल में प्रकाशित एक पूर्व रिपोर्ट के निष्कर्षों पर आधारित है। इसमें बताया गया था कि अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने वाले अनुमानत: 2.4 अरब श्रमिकों पर जलवायु परिवर्तन के असर से गंभीर स्वास्थ्य खतरे पैदा हो रहे हैं। अप्रैल में जारी हुई इस रिपोर्ट में संकेत दिए गए थे कि केवल अत्यधिक गर्मी के कारण 2 करोड़ 28 लाख 50 हजार कार्यक्षेत्र चोटें व बीमारियां होती हैं। हर वर्ष 18 हज़ार 970 लोगों की जान चली जाती है। 

(नोट: यह लेख संयुक्त राष्ट्र हिंदी समाचार सेवा से लिया गया है।)

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