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ईरान ने इस्राइल पर लगाया शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहसेन फखरीजादेह की हत्या का आरोप, बाइडन की राह हुई मुश्किल

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन Published by: Harendra Chaudhary Updated Sat, 28 Nov 2020 05:56 PM IST
सार

2018 में विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि ईरान सरकार फखरीजादेह को छिपाए रखने और उनकी सुरक्षा के लिए असाधारण कदम उठा रखे हैं, क्योंकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए वे निर्णायक महत्व के व्यक्ति हैं...

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Iran accuses Israel of killing top nuclear scientist Mohsen Fakhrizadeh
Late Iranian physicist Mohsen Fakhrizadeh - फोटो : IRNA (File photo)
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विस्तार
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ईरान के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक की हत्या के पीछे अगर इस्राइल का हाथ साबित हो जाता है, तो यहां यही माना जाएगा कि इस कृत्य के जरिए इस्राइल के बेंजामिन नेतन्याहू सरकार ने सीधे तौर पर निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन को चुनौती दी है। परमाणु वैज्ञानिक मोहसेन फखरीजादेह की शुक्रवार को तेहरान में हत्या कर दी गई। इसके लिए गोलीबारी और विस्फोट का सहारा लिया गया। ईरान ने तुरंत आरोप लगाया कि इस हत्या के पीछे इस्राइल का हाथ है।

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जो बाइडन ने चुनाव अभियान के दौरान कहा था कि राष्ट्रपति बनने पर वे अमेरिका को ईरान के साथ बराक ओबामा के दौर में हुए परमाणु समझौते में फिर शामिल करेंगे। डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका को इस करार से हटा लिया था। 2015 में हुए इस समझौते पर ईरान के अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों और जर्मनी ने दस्तखत किए थे। अब यहां माना जा रहा है कि इस्राइल ने ईरानी वैज्ञानिक की हत्या उस इलाके में तनाव बढ़ाने के मकसद से की है, ताकि बाइडन प्रशासन के लिए परमाणु समझौते में अमेरिका को फिर से शामिल करना कठिन हो जाए।
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अमेरिकी सुरक्षा विशेषज्ञों की राय रही है कि ईरान समझौते से अमेरिका हटने के बाद ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकना और मुश्किल हो गया है। कुछ हफ्ते पहले ही अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने कहा था कि अब ईरान के पास उससे 12 गुना ज्यादा संवर्धित यूरेनियम है, जितनी सीमा 2015 के समझौते में तय की गई थी। इन विशेषज्ञों की राय है कि ट्रंप के रुख से ईरान को समझौते की वचनबद्धताओं से हटाने का मौका मिल गया।

द वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट से जुड़े ईरान के परमाणु कार्यक्रम के विशेषज्ञ साइमन हेंडरसन ने सीएनएन टीवी चैनल पर कहा- इसमें कोई शक नहीं है कि फखरीजादेह की हत्या इस्राइल ने कराई है। उसने अभी कुछ वैसा कर लेने का फैसला किया, जिसे बाइडन प्रशासन के सत्ता में आने के बाद करना आसान नहीं होता।

बराक ओबामा प्रशासन में उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके बेन रॉड्स ने एक ट्विट मे कहा कि इस्राइल ने ये भड़काऊ कार्रवाई अगले अमेरिकी प्रशासन और ईरान के बीच संभावित कूटनीति को बाधित करने के लिए की है। मगर फिलहाल तनाव को बढ़ने से रोकना इस समय की जरूरत है।

अमेरिकी मीडिया के मुताबिक ट्रंप प्रशासन से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि यह बहुत बड़ी घटना है और अमेरिका इसका सच जानने के लिए अपने सभी खुफिया स्रोतों का इस्तेमाल करेगा। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने शुक्रवार को इस बारे में कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं जताई। मगर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजराइली पत्रकार योसी मेलमन के एक ट्विट को रीट्विट किया, जिसमें कहा गया है कि फखरीजादेह की मृत्यु ईरान के लिए बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक और पेशेवर झटका है।

फखरीजादेह वर्षों से अमेरिकी निगरानी में थे। 2018 में विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि ईरान सरकार फखरीजादेह को छिपाए रखने और उनकी सुरक्षा के लिए असाधारण कदम उठा रखे हैं, क्योंकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए वे निर्णायक महत्व के व्यक्ति हैं।

कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन ने इस घटना के बारे में इसलिए कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की है, क्योंकि संभवतः वह अपने आखिरी दिनों में ईरान के साथ तीखी बयानबाजी में नहीं उलझना चाहता। सीसीएन के मुताबिक अमेरिकी अधिकारियों ने उससे कहा है कि अमेरिका हालत पर नजर बनाए हुए है, लेकिन अभी वह ईरान के साथ कोई टकराव नहीं चाहता।

अमेरिकी प्रशासन पहले से ही ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कुदस के फोर्स कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या की बरसी के मौके पर बदले की संभावित कार्रवाई को लेकर सतर्क रहा है। सुलेमानी की पिछले जनवरी में अमेरिका ने हत्या करा दी थी। बीते गुरुवार को विदेश मंत्री पोम्पियो ने फॉक्स टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि सुलेमानी की हत्या की बरसी पर अमेरिका को ईरान और दूसरे स्रोतों से खतरा है।

कुछ रोज पहले सीएनएन ने खबर दी थी कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में ईरान के खिलाफ सैनिक कार्रवाई का विचार सामने रखा था। लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें ऐसा ना करने की सलाह दी। बताया जाता है कि ट्रंप का भी मकसद बाइडन प्रशासन की राह में कांटे बिछाना था। अब संभवतया यही काम ट्रंप के मित्र नेतन्याहू की सरकार ने कर दिया है।

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