कई प्रधानमंत्रियों को बर्खास्त करने वाला पाक राष्ट्रपति जिसके पूर्वज ने हिंदुस्तान से की थी गद्दारी
इस्कंदर मिर्जा कौन था, कैसे वह पाकिस्तान का गवर्नर जनरल और राष्ट्रपति बना। क्यों उसने एक के बाद एक पांच प्रधानमंत्रियों से इस्तीफे लिए। ऐसा क्या हुआ कि उसके अपने पसंदीदा व्यक्ति ने ही उसे देश से निष्कासित कर दिया और मौत के बाद दफन के लिए कब्र तक नसीब नहीं होने दी। यह सब जानकारी आपको हमारी इस खबर में मिलेगी।

विस्तार
भारत और पाकिस्तान को आजाद होकर देश बने हुए 74 साल हो गए हैं। इन सात दशकों में हमारे पड़ोसी मुल्क ने 27 प्रधानमंत्री देखे हैं। पाकिस्तान में प्रधानमत्रियों, गवर्नर जनरल और राष्ट्रपति को वहां के सैनिक तानाशाहों द्वारा देश से निकाला या फिर पद से हटाया गया है। कुछ मामलों में वहां की सुप्रीम कोर्ट ने भी इन्हें अयोग्य घोषित किया है। ऐसे ही एक राष्ट्रपति थे इस्कंदर मिर्जा। बंटवारे के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने इस्कंदर मिर्जा को अपना रक्षा सचिव नियुक्त किया था। यहीं से पाकिस्तान में फौजी शासन की नींव पड़ी थी।

इस्कंदर और मीर जाफर का रिश्ता
इस्कंदर और मीर जाफर का रिश्ता समझने के लिए हमें इतिहास के पन्नों की कुछ धूल को झाड़ना होगा। ये बात है 18वीं शताब्दी की, जब बंगाल में नवाब सिराजुद्दौला का शासन था। अंग्रेज उन्हें हराने के लिए एड़ी-चोटी की जोर आजमाइश कर रहे थे। अंग्रेजी फौज का सेनापति रॉबर्ट क्लाइव जब यह समझ गया कि सिराजुद्दौला को हराना आसान नहीं है तो उसने धोखे का सहारा लिया। उसे पता चला कि नवाब का सेनापति मीर जाफर भ्रष्ट और लालची है।
मीर जाफर के रूप में क्लाइव को बंगाल फतह की जीत की चाबी मिल गई। जाफर अंग्रेजों से मिल गया और 23 जून, 1757 को प्लासी के युद्ध में नवाब को हार का मुंह देखना पड़ा। इस हार ने हिंदुस्तान में अंग्रेजों के पैर जमाने में मदद की और इतिहास के पन्नों में मीर जाफर का नाम बतौर गद्दार हमेशा के लिए दर्ज हो गया। इसी मीर जाफर का वंशज था इस्कंदर मिर्जा।
प्रधानमंत्री जो मिर्जा का शिकार बने
- मोहम्मद अली बोगराः 17 अप्रैल से 12 अगस्त 1955
- चौधरी मोहम्मद अलीः 12 अगस्त 1955 से 12 सितंबर 1956
- हुसैन शहीद सोहरावर्दीः 12 अक्तूबर 1956 से 17 सितंबर 11957
- इब्राहिम इस्माइल चुंद्रीगरः 17 अक्तूबर 1957 से 16 दिसंबर 1957
- फिरोज खान नूनः 16 दिसंबर 1957 से 7 अक्तूबर 1958
काबिल सैन्य अधिकारी से राष्ट्रपति बनने का सफर
इस्कंदर मिर्जा बड़े लायक अफसर थे। अंग्रेज भी उन्हें काबिल प्रशासक मानते थे। वो पहले ऐसे भारतीय थे जिन्हें ब्रिटिश सेना की सैंडरहर्स्ट मिलिटरी अकादमी से किंग कमीशन मिला था। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनको फौज से राजनीतिक सेवा में भेज दिया था। यही वजह थी कि जब पाकिस्तान बना, तो जिन्ना को देश के रक्षा सचिव के रूप में इस्कंदर मिर्जा से ज्यादा काबिल और अनुभवी कोई नहीं मिला था।
ऐतिहासिक भूल: अयूब खान को कोर्ट मार्शल से बचाना

क्योंकि इस्कंदर मिर्जा मूलरूप से फौजी थे और आगे चलकर नौकरशाह बने इसलिए उन्हें इन्हीं दोनों पर भरोसा भी था। उनका यह भरोसा आगे चलकर उनके लिए घातक भी साबित हुआ। दरअसल पाकिस्तानी फौज में एक बेहद नकारा किस्म का अफसर था, जिसका नाम अयूब खान था। वही अयूब खान जिसने खुद को फौजी तानाशाह घोषित किया था।
अयूब खान को फौज में कायर कहा जाता था। ऐसा इसलिए क्योंकि जब वो ब्रिटिश सेना में था, तब बर्मा भेजा गया था। वहां डरपोकपन और कायरता के चलते उसे निलंबित कर दिया गया था। मिर्जा को ये बातें मालूम थीं, फिर भी वो अयूब की काबिलियत पर काफी भरोसा करते थे।
वो अयूब को लगातार मजबूत बनाते रहे। हालांकि अयूब खान को मोहम्मद अली जिन्ना पसंद नहीं करते थे। खुद जिन्ना ने उनका कोर्ट मार्शल करने का आदेश दिया था। लेकिन इस्कंदर मिर्जा ने उसे बचा लिया था। बचते-बचते अयूब इतना ज्यादा ताकतवर हो गया कि जनवरी 1951 से अक्तूबर 1958 के बीच पाकिस्तान में सात प्रधानमंत्री आए और गए। लेकिन अयूब खान सेना प्रमुख की कुर्सी पर बना रहा।
अयूब खान को जनवरी 1955 में ही सेना प्रमुख के पद से रिटायर होना था, क्योंकि बतौर सेनाध्यक्ष उसे चार साल पूरे हो चुके थे। लेकिन इस्कंदर मिर्जा ने उसका कार्यकाल बढ़वाया। मिर्जा उस समय तक रक्षा सचिव थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री मुहम्मद अली बोगरा से अयूब का कार्यकाल बढ़ाने को कहा। बोगरा नहीं माने तो मिर्जा ने अपने पद से इस्तीफा देने की बात कह दी थी। मजबूरन प्रधानमंत्री ने अयूब को सेवा विस्तार दिया लेकिन मिर्जा को सावधान भी किया। उन्होंने इस्कंदर से कहा था कि वो अयूब पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करके गलती कर रहे हैं और इसके लिए वो पछताएंगे।
सैन्य शासक का बीज
1953 में पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम ने प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था। नजीमुद्दीन के बाद मुहम्मद अली बोगरा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। इससे पहले वो अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत थे। उन्हें गवर्नर जनरल गुलाम ने पाकिस्तान बुलाया और प्रधानमंत्री बनाया था। कुछ महीनों के बाद बोगरा और गवर्नर जनरल गुलाम मुहम्मद के बीच मतभेद शुरू हो गए थे।
प्रधानमंत्रियों का इस्तीफा
गवर्नर जनरल गुलाम मुहम्मद, बोगरा को प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहते थे। लेकिन बोगरा पद से हटने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। कुछ समय बाद 1956 में गुलाम मुहम्मद अपने इलाज के लिए इंग्लैंड गए और इस्कंदर मिर्जा को गवर्नर जनरल बनाया गया। मिर्जा ने पद पर आते ही बोगरा को प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया और चौधरी मोहम्मद अली को प्रधानमंत्री बना दिया।
1956 में ही मिर्जा ने पाकिस्तान में गवर्नर जनरल के पद को खत्म कर दिया गया और राष्ट्रपति पद बनाकर खुद पहले राष्ट्रपति बने। मिर्जा और मुहम्मद अली के बीच भी रिश्ते ठीक नहीं रहे। अली को इस्तीफा देना पड़ा था। वो एक साल एक महीने तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे। मुहम्मद अली के बाद हुसैन शाहिद सुहरावर्दी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, लेकिन राष्ट्रपति के साथ मतभेद के वजह से ज्यादा दिन इस पद पर नहीं रह पाए। एक साल में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
17 अक्तूबर 1957 को पाकिस्तान मुस्लिम लीग के इब्राहिम इस्माइल चुंदरिगर को प्रधानमंत्री बनाया गया। वो सिर्फ दो महीने ही इस पद पर रहे। 16 दिसंबर 1957 को फिरोज खान नून को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्हें भी करीब एक साल के बाद राष्ट्रपति मिर्जा ने पद से हटा दिया।
और फिर...
7 अक्तूबर 1958 राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने पाकिस्तान में सैनिक शासन लागू कर दिया। इसके साथ ही जनरल अयूब खान को पाकिस्तान सेना का कमांडर इन चीफ और मुख्य सैनिक शासक बनाया गया। 1956 में लागू हुआ संविधान भी रद्द कर दिया गया। यह तय हुआ कि मिर्जा राष्ट्रपति बने रहेंगे और अयूब सेना और बाकी व्यवस्थाएं संभालेंगे। मिर्जा ने सभी राजनैतिक दलों पर बैन लगा दिया था। फिर आई 27 अक्तूबर की तारीख, अयूब खान ने मिर्जा को गिरफ्तार किया और देश से निष्कासित करते हुए ब्रिटेन भेज दिया।
पाकिस्तान में इस्कंदर मिर्जा की जितनी जायदाद थी, वो सब अयूब ने अपने कब्जे में ले ली। लंदन में मिर्जा के दिन फकीरी में गुजरे। राष्ट्रपति के रूप में अपने शासन काल मे कई प्रधानमंत्रियों का इस्तीफा लेने वाले मिर्जा खुद देश से बाहर हो गए और 12 नवंबर 1969 को लंदन में उनकी मौत हो गई। मरने के बाद उनके मृत शरीर को पाकिस्तान ने दफनाने की इजाजत नहीं दी गई। तब मिर्जा के पुराने दोस्त और ईरान के शाह ने हवाई जहाज से उनकी लाश ईरान मंगवाई और वहां राजकीय सम्मान के साथ मिर्जा को दफनाया गया।