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Israel-US Talks: अमेरिका में नेतन्याहू को नहीं मिला मनचाहा समर्थन, ट्रंप के साथ बैठक में सामने आए बड़े मतभेद
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, तेल अवीव
Published by: पवन पांडेय
Updated Wed, 09 Apr 2025 07:34 AM IST
सार
अमेरिकी राष्ट्रपति और इस्राइली पीएम के बीच व्हाइट हाउस में हुई मुलाकात के दौरान कई बड़े मतभेद देखने को मिले हैं। जानकारी के मुताबिक, इस दौरान ईरान के परमाणु कार्यक्रम, ट्रंप के टैरिफ समेत अन्य मुद्दों पर दोनों के बीच असहमति देखने को मिली है।
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डोनाल्ड ट्रंप और बेंजमिन नेतन्याहू
- फोटो : ANI
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विस्तार
इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अचानक से अमेरिका दौरे पर पहुंचे। उनके इस दौरे का मकसद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलकर कई अहम मुद्दों पर बातचीत करना था। जिसमें ईरान का परमाणु कार्यक्रम, अमेरिका की तरफ से लगाए गए नए टैरिफ, सीरिया में तुर्की का बढ़ता दखल और गाजा में चल रहा 18 महीने पुराना युद्ध भी शामिल था। लेकिन सोमवार को व्हाइट हाउस में हुई इस बैठक के बाद इस्राइली पीएम लगभग खाली हाथ लौटे। दो महीने पहले जब वे अमेरिकी राष्ट्रपति से मिले थे तो वह दौरा एक बड़ी जीत की तरह पेश किया गया था, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।
यह भी पढ़ें - Congress: 'टैरिफ ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया...', शशि थरूर ने अमेरिकी आयात शुल्क पर जताई चिंता
नेतन्याहू ने बैठक को बताया अच्छी मुलाकात
हालांकि, मंगलवार को पीएम नेतन्याहू ने इस दौरे को बहुत अच्छी मुलाकात बताया और कहा कि सभी मुद्दों पर सफलता मिली है। लेकिन अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, इस्राइली प्रतिनिधिमंडल इस बैठक को कठिन और अपेक्षा से उलट मान रहा है। मामले से जुड़े विश्लेषकों का मानना है कि, 'नेतन्याहू को वह नहीं सुनने को मिला जो वह सुनना चाहते थे। इसलिए वह बहुत कम संतुष्ट होकर वापस लौटे।' हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि मुलाकात दोस्ताना माहौल में हुई।
ईरान मुद्दे पर ट्रंप-नेतन्याहू में मतभेद
2018 में नेतन्याहू के समर्थन से ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर कर दिया था। अब नेतन्याहू चाहते हैं कि ईरान पर सैन्य दबाव बनाए रखा जाए। इस्राइल ने पिछले साल ईरान पर हमला भी किया था, लेकिन उसके परमाणु ठिकानों को नहीं निशाना बनाया। इसके लिए अमेरिका की सैन्य मदद जरूरी होगी। ट्रंप ने सोमवार को संकेत दिया कि अगर ईरान बातचीत को तैयार नहीं हुआ तो अमेरिका सैन्य कार्रवाई कर सकता है। लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका और ईरान के बीच इस हफ्ते बातचीत होगी। यह बात नेतन्याहू की सख्त नीति के बिल्कुल उलट है।
यह भी पढ़ें - Politics: 'गवर्नर अब नहीं रह गए सरकारी विवि के कुलाधिपति'; DMK कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़े, बांटी मिठाइयां
टैरिफ पर अमेरिका-इस्राइल में टकराव
ट्रंप की तरफ से शुरू किए गए नए वैश्विक टैरिफ के एक दिन पहले ही इस्राइल ने घोषणा की थी कि वह अमेरिका से आने वाले सभी सामान पर शुल्क हटा देगा। इसके बावजूद, अमेरिका ने इस्राइली सामानों पर 17% का शुल्क लगा दिया। नेतन्याहू ट्रंप को समझाने वाशिंगटन आए, लेकिन ट्रंप अपने फैसले से टस से मस नहीं हुए। उन्होंने कहा, 'हम इस्राइल को हर साल 4 अरब डॉलर देते हैं, यह बहुत है।' उन्होंने यह भी कहा कि इस्राइल को पहले ही काफी सहायता मिल रही है।
सीरिया में तुर्की की बढ़ती भूमिका
सीरिया में असद शासन के पतन के बाद वहां तुर्की और इस्राइल दोनों अपनी-अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। इस्राइल को डर है कि सीरिया की नई सरकार, जो पहले इस्लामी विचारों से जुड़ी रही है, उसकी सीमा पर खतरा बन सकती है। इसलिए उसने एक बफर जोन पर कब्जा कर लिया है और कहा है कि जब तक नई सुरक्षा व्यवस्था नहीं बनती, वह वहां से हटेगा नहीं। दूसरी तरफ, तुर्की ने भी सीरिया में अपने सैन्य अड्डे बना लिए हैं, जिससे इस्राइल को खतरा महसूस हो रहा है। नेतन्याहू ने कहा कि सीरिया में तुर्की के अड्डे इस्राइल के लिए खतरा हैं। तुर्की और इस्राइल के संबंध पहले अच्छे थे, लेकिन गाजा युद्ध को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने इस्राइल की तीखी आलोचना की, जिससे संबंध और बिगड़ गए।
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नेतन्याहू ने बैठक को बताया अच्छी मुलाकात
हालांकि, मंगलवार को पीएम नेतन्याहू ने इस दौरे को बहुत अच्छी मुलाकात बताया और कहा कि सभी मुद्दों पर सफलता मिली है। लेकिन अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, इस्राइली प्रतिनिधिमंडल इस बैठक को कठिन और अपेक्षा से उलट मान रहा है। मामले से जुड़े विश्लेषकों का मानना है कि, 'नेतन्याहू को वह नहीं सुनने को मिला जो वह सुनना चाहते थे। इसलिए वह बहुत कम संतुष्ट होकर वापस लौटे।' हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि मुलाकात दोस्ताना माहौल में हुई।
ईरान मुद्दे पर ट्रंप-नेतन्याहू में मतभेद
2018 में नेतन्याहू के समर्थन से ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर कर दिया था। अब नेतन्याहू चाहते हैं कि ईरान पर सैन्य दबाव बनाए रखा जाए। इस्राइल ने पिछले साल ईरान पर हमला भी किया था, लेकिन उसके परमाणु ठिकानों को नहीं निशाना बनाया। इसके लिए अमेरिका की सैन्य मदद जरूरी होगी। ट्रंप ने सोमवार को संकेत दिया कि अगर ईरान बातचीत को तैयार नहीं हुआ तो अमेरिका सैन्य कार्रवाई कर सकता है। लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका और ईरान के बीच इस हफ्ते बातचीत होगी। यह बात नेतन्याहू की सख्त नीति के बिल्कुल उलट है।
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टैरिफ पर अमेरिका-इस्राइल में टकराव
ट्रंप की तरफ से शुरू किए गए नए वैश्विक टैरिफ के एक दिन पहले ही इस्राइल ने घोषणा की थी कि वह अमेरिका से आने वाले सभी सामान पर शुल्क हटा देगा। इसके बावजूद, अमेरिका ने इस्राइली सामानों पर 17% का शुल्क लगा दिया। नेतन्याहू ट्रंप को समझाने वाशिंगटन आए, लेकिन ट्रंप अपने फैसले से टस से मस नहीं हुए। उन्होंने कहा, 'हम इस्राइल को हर साल 4 अरब डॉलर देते हैं, यह बहुत है।' उन्होंने यह भी कहा कि इस्राइल को पहले ही काफी सहायता मिल रही है।
सीरिया में तुर्की की बढ़ती भूमिका
सीरिया में असद शासन के पतन के बाद वहां तुर्की और इस्राइल दोनों अपनी-अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। इस्राइल को डर है कि सीरिया की नई सरकार, जो पहले इस्लामी विचारों से जुड़ी रही है, उसकी सीमा पर खतरा बन सकती है। इसलिए उसने एक बफर जोन पर कब्जा कर लिया है और कहा है कि जब तक नई सुरक्षा व्यवस्था नहीं बनती, वह वहां से हटेगा नहीं। दूसरी तरफ, तुर्की ने भी सीरिया में अपने सैन्य अड्डे बना लिए हैं, जिससे इस्राइल को खतरा महसूस हो रहा है। नेतन्याहू ने कहा कि सीरिया में तुर्की के अड्डे इस्राइल के लिए खतरा हैं। तुर्की और इस्राइल के संबंध पहले अच्छे थे, लेकिन गाजा युद्ध को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने इस्राइल की तीखी आलोचना की, जिससे संबंध और बिगड़ गए।
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