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चिंताजनक: कुपोषण, अवरुद्ध विकास से हर साल होती है 10 लाख बच्चों की मौत, बना बड़ा वैश्विक जोखिम
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Wed, 10 Dec 2025 05:53 AM IST
सार
कुपोषण, अवरुद्ध विकास और शारीरिक कमजोरी वैश्विक समस्या बनता जा रहा है। जिसके चलते हर साल लगभग 10 लाख बच्चों की जान जा रही है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2023 की ताजा रिपोर्ट इसके बारे में विश्न को चेताया है।
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हर साल लगभग 10 लाख बच्चों की जान ले रहा कुपोषण
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
कुपोषण, अवरुद्ध विकास और शारीरिक कमजोरी मिलकर हर साल लगभग 10 लाख बच्चों की जान ले रहे हैं। सबसे गहरा संकट उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में है, जहां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौतों में कुपोषण तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक जोखिम बन चुका है।
दो दशकों की प्रगति के बावजूद विकास-अवरुद्धता बच्चों के स्वास्थ्य, भविष्य और मानव पूंजी पर खतरनाक असर डाल रही है। दुनिया को यह चेतावनी ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2023 की ताजा रिपोर्ट में दी गई है। यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट चाइल्ड ऐंड अडोलेसेंट हेल्थ में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के अनुसार 2000 में विकास-असफलता के कारण 27.5 लाख बच्चों की मौतें दर्ज की गई थीं, जो 2023 में घटकर 8.8 लाख रह गईं। प्रगति के बावजूद कुपोषण अब भी पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक जोखिम है। सबसे अधिक 6.18 लाख मौतें उप-सहारा अफ्रीका में दर्ज हुईं। दक्षिण एशिया में यह संख्या 1.65 लाख रही।
ठिगने बच्चों की संख्या बढ़ी
रिपोर्ट यह भी बताती है कि दुनिया में ठिगने (स्टंटेड) बच्चों की संख्या पहले के अनुमानों से कहीं अधिक है और मामूली बीमारियां भी इनके लिए जानलेवा साबित होती हैं।2023 में पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 8 लाख बच्चे निमोनिया, मलेरिया, खसरा और डायरिया जैसी बीमारियों का शिकार होकर मौत के मुंह में समा गए। इन संक्रमणों से मरने वाले बच्चों का भारी हिस्सा कुपोषण से जूझ रहा था। उप-सहारा अफ्रीका में डायरिया से मरने वाले 77 फीसदी बच्चे कुपोषित थे, जबकि सांस संबंधी संक्रमणों में यह आंकड़ा 65 फीसदी रहा।
ये भी पढ़ें: चिंताजनक: पर्यावरणीय खतरे में दुनिया की 99 फीसदी आबादी, वैश्विक अध्ययन में सामने आया भयावह सच
स्वास्थ्य-पोषण नीतियों पर वैश्विक दबाव बढ़ा
अध्ययन के सामने आने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठनों ने चेताया है कि कुपोषण, जलवायु परिवर्तन, भोजन की कमी और संघर्ष-ग्रस्त इलाकों की संयुक्त मार से बाल स्वास्थ्य वैश्विक नीति का अत्यंत संवेदनशील मुद्दा बन गया है। रिपोर्ट से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर डॉ. बॉबी राइनर का कहना है कि बच्चों में विकास-अवरुद्धता कई कारणों का परिणाम है। एक ही रणनीति से सभी क्षेत्रों में सुधार लाना संभव नहीं है। समृद्ध देशों में स्थिति बेहतर होने के बावजूद डायरिया और सांस संबंधी संक्रमणों से मरने वाले बच्चों में 33 से 35 फीसदी तक कुपोषण दर्ज किया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक नीतियों को मातृ–पोषण, स्वच्छता, संक्रमण-नियंत्रण और सामाजिक सुरक्षा के संयुक्त मॉडल की ओर जाना होगा।
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दो दशकों की प्रगति के बावजूद विकास-अवरुद्धता बच्चों के स्वास्थ्य, भविष्य और मानव पूंजी पर खतरनाक असर डाल रही है। दुनिया को यह चेतावनी ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2023 की ताजा रिपोर्ट में दी गई है। यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट चाइल्ड ऐंड अडोलेसेंट हेल्थ में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के अनुसार 2000 में विकास-असफलता के कारण 27.5 लाख बच्चों की मौतें दर्ज की गई थीं, जो 2023 में घटकर 8.8 लाख रह गईं। प्रगति के बावजूद कुपोषण अब भी पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक जोखिम है। सबसे अधिक 6.18 लाख मौतें उप-सहारा अफ्रीका में दर्ज हुईं। दक्षिण एशिया में यह संख्या 1.65 लाख रही।
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ठिगने बच्चों की संख्या बढ़ी
रिपोर्ट यह भी बताती है कि दुनिया में ठिगने (स्टंटेड) बच्चों की संख्या पहले के अनुमानों से कहीं अधिक है और मामूली बीमारियां भी इनके लिए जानलेवा साबित होती हैं।2023 में पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 8 लाख बच्चे निमोनिया, मलेरिया, खसरा और डायरिया जैसी बीमारियों का शिकार होकर मौत के मुंह में समा गए। इन संक्रमणों से मरने वाले बच्चों का भारी हिस्सा कुपोषण से जूझ रहा था। उप-सहारा अफ्रीका में डायरिया से मरने वाले 77 फीसदी बच्चे कुपोषित थे, जबकि सांस संबंधी संक्रमणों में यह आंकड़ा 65 फीसदी रहा।
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स्वास्थ्य-पोषण नीतियों पर वैश्विक दबाव बढ़ा
अध्ययन के सामने आने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठनों ने चेताया है कि कुपोषण, जलवायु परिवर्तन, भोजन की कमी और संघर्ष-ग्रस्त इलाकों की संयुक्त मार से बाल स्वास्थ्य वैश्विक नीति का अत्यंत संवेदनशील मुद्दा बन गया है। रिपोर्ट से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर डॉ. बॉबी राइनर का कहना है कि बच्चों में विकास-अवरुद्धता कई कारणों का परिणाम है। एक ही रणनीति से सभी क्षेत्रों में सुधार लाना संभव नहीं है। समृद्ध देशों में स्थिति बेहतर होने के बावजूद डायरिया और सांस संबंधी संक्रमणों से मरने वाले बच्चों में 33 से 35 फीसदी तक कुपोषण दर्ज किया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक नीतियों को मातृ–पोषण, स्वच्छता, संक्रमण-नियंत्रण और सामाजिक सुरक्षा के संयुक्त मॉडल की ओर जाना होगा।