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कौन हैं मार्क कार्नी: पूर्व गवर्नर बने कनाडा के अगले प्रधानमंत्री, भारत पर ट्रूडो से कितना अलग रुख? जानें
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Mon, 10 Mar 2025 08:24 AM IST
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सार
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मार्क कार्नी बने कनाडा के प्रधानमंत्री
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अमर उजाला
विस्तार
कनाडा में इस वक्त उथल-पुथल का माहौल है। वजह एक नहीं कई हैं। हालांकि, सबसे बड़ी वजह है पड़ोसी देश अमेरिका, जहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस वक्त कनाडा की आर्थिक स्थिति को निशाने पर लिए हुए हैं। ट्रंप ने हाल ही में कनाडा को न सिर्फ अमेरिका का 51वां राज्य बनाने से जुड़े बयान दिए हैं, बल्कि पूर्व कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को भी कनाडा का गवर्नर बुलाया था। इतना ही नहीं ट्रंप ने नशीले पदार्थों और अवैध आव्रजन की शिकायत करते हुए कनाडा पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने से जुड़े एलान तक किए हैं। ट्रंप की तरफ से कनाडा पर यह हमले ऐसे समय में हो रहे हैं, जब लिबरल पार्टी नेतृत्व संकट से जूझ रही है और जस्टिन ट्रूडो पार्टी का अगला नेता चुने जाने तक ही प्रधानमंत्री पद पर हैं।कनाडा में लिबरल पार्टी के अगले प्रमुख और कनाडा के अगले प्रधानमंत्री मार्क कार्नी बन गए हैं। वे पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की जगह लेंगे। उनकी जीत की सबसे बड़ी वजह है मार्क कार्नी का अर्थशास्त्री के तौर पर इतिहास, जिसे लेकर कनाडा को ट्रंप की आक्रामक नीति से उबरने की उम्मीद बंधी है। मार्क कार्नी अपने आप में कितना बड़ा नाम हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह अपनी उपलब्धियों के चलते दुनिया के दो बड़े देशों में केंद्रीय बैंकों के गवर्नर रह चुके हैं।
कौन हैं मार्क कार्नी?
मार्क कार्नी का जन्म 16 मार्च 1965 को कनाडा के उत्तर-पश्चिम में स्थित फोर्ट स्मिथ में हुआ। हालांकि, उनका शुरुआती जीवन अल्बर्टा राज्य के एडमंटन में बीता। मार्क के माता-पिता दोनों स्कूल में शिक्षक रहे। ऐसे में वे शुरुआत से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी अच्छे रहे। बकौल कार्नी उनके माता-पिता ने उनमें जनसेवा के लिए प्रतिबद्धता कूट-कूटकर भरी।
मार्क कार्नी ने 2004 में कनाडा के वित्त विभाग में भी काम किया। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में प्रतिभा दिखाने के बाद उन्हें 2007 में बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर बनाया गया।
मार्क कार्नी का जन्म 16 मार्च 1965 को कनाडा के उत्तर-पश्चिम में स्थित फोर्ट स्मिथ में हुआ। हालांकि, उनका शुरुआती जीवन अल्बर्टा राज्य के एडमंटन में बीता। मार्क के माता-पिता दोनों स्कूल में शिक्षक रहे। ऐसे में वे शुरुआत से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी अच्छे रहे। बकौल कार्नी उनके माता-पिता ने उनमें जनसेवा के लिए प्रतिबद्धता कूट-कूटकर भरी।
मार्क कार्नी ने 2004 में कनाडा के वित्त विभाग में भी काम किया। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में प्रतिभा दिखाने के बाद उन्हें 2007 में बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर बनाया गया।
2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी में कनाडा को संभाला
बताया जाता है कि 2007 के अंत में जब दुनियाभर में आर्थिक स्तर पर हलचल शुरू हुई तो मार्क कार्नी को आने वाले खतरों का अंदाजा हो गया था। इसके चलते उन्होंने कनाडा की मौद्रिक नीति को सख्त करना शुरू कर दिया। 2008 में जब लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया घोषित होने के बाद पूरी दुनिया मंदी की चपेट में आ गई, तब कार्नी ने कनाडा के केंद्रीय बैंक का नेतृत्व किया। कनाडा में उनकी प्रबंधन क्षमता को इस कदर का आंका जाता था कि 2013 में बैंक ऑफ इंग्लैंड का गवर्नर बनने तक वे कनाडा के गवर्नर पद पर रहे।
बताया जाता है कि 2007 के अंत में जब दुनियाभर में आर्थिक स्तर पर हलचल शुरू हुई तो मार्क कार्नी को आने वाले खतरों का अंदाजा हो गया था। इसके चलते उन्होंने कनाडा की मौद्रिक नीति को सख्त करना शुरू कर दिया। 2008 में जब लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया घोषित होने के बाद पूरी दुनिया मंदी की चपेट में आ गई, तब कार्नी ने कनाडा के केंद्रीय बैंक का नेतृत्व किया। कनाडा में उनकी प्रबंधन क्षमता को इस कदर का आंका जाता था कि 2013 में बैंक ऑफ इंग्लैंड का गवर्नर बनने तक वे कनाडा के गवर्नर पद पर रहे।
केंद्रीय बैंक बदला, पर चुनौतियां जारी रहीं
मार्क कार्नी के नाम एक उपलब्धि यह है कि वह बैंक ऑफ इंग्लैंड के 300 साल से भी ज्यादा के इतिहास में वह पहले गैर-ब्रिटिश गवर्नर रहे। हालांकि, यह पद उन्हें ऐसे समय मिला था, जब ब्रिटेन में ब्रेग्जिट यानी अर्थव्यवस्था को यूरोपीय संघ (ईयू) से अलग करने की मांग जोरों पर थी। कार्नी ने ब्रिटेन में बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच न सिर्फ ब्रेग्जिट का रास्ता साफ किया, बल्कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को मंदी के दंश से भी बचाया। इसके लिए कार्नी ने बैंक ऑफ इंग्लैंड की कई नीतियों को बदला।
2020 के मार्च में जब कार्नी का बैंक ऑफ इंग्लैंड में कार्यकाल खत्म होने वाला था, तभी दुनिया को एक और संकट ने घेरा। यह थी- कोरोनावायरस महामारी, जिसके तहत कई देशों ने प्रतिबंधों का एलान किया और आर्थिक गतिविधियां रुक गईं। हालांकि, कार्नी ने पद छोड़ने से पहले बैंक ऑफ इंग्लैंड के प्रमुख के तौर पर अपना आखिरी फैसला लिया और बैंक की ब्याज दरों को 0.5 फीसदी घटा दिया। इस छोटे कदम का मकसद ब्रिटेन को महामारी में अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से बचाना था।
मार्क कार्नी के नाम एक उपलब्धि यह है कि वह बैंक ऑफ इंग्लैंड के 300 साल से भी ज्यादा के इतिहास में वह पहले गैर-ब्रिटिश गवर्नर रहे। हालांकि, यह पद उन्हें ऐसे समय मिला था, जब ब्रिटेन में ब्रेग्जिट यानी अर्थव्यवस्था को यूरोपीय संघ (ईयू) से अलग करने की मांग जोरों पर थी। कार्नी ने ब्रिटेन में बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच न सिर्फ ब्रेग्जिट का रास्ता साफ किया, बल्कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को मंदी के दंश से भी बचाया। इसके लिए कार्नी ने बैंक ऑफ इंग्लैंड की कई नीतियों को बदला।
2020 के मार्च में जब कार्नी का बैंक ऑफ इंग्लैंड में कार्यकाल खत्म होने वाला था, तभी दुनिया को एक और संकट ने घेरा। यह थी- कोरोनावायरस महामारी, जिसके तहत कई देशों ने प्रतिबंधों का एलान किया और आर्थिक गतिविधियां रुक गईं। हालांकि, कार्नी ने पद छोड़ने से पहले बैंक ऑफ इंग्लैंड के प्रमुख के तौर पर अपना आखिरी फैसला लिया और बैंक की ब्याज दरों को 0.5 फीसदी घटा दिया। इस छोटे कदम का मकसद ब्रिटेन को महामारी में अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से बचाना था।
राजनीति में नया नाम नहीं हैं मार्क कार्नी
मार्क कार्नी ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र में जबरदस्त उपलब्धियां हासिल कीं। हालांकि, वे राजनीति के क्षेत्र से अंजान नहीं हैं। खुद कार्नी के मुताबिक, 2012 में कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने उन्हें वित्त मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि, कार्नी ने इसे नकार दिया था। कहा जाता है कि 2013 में जब लिबरल पार्टी के नेतृत्व के लिए चुनाव हो रहे थे, तब भी कार्नी का नाम उछला था। हालांकि, उन्होंने इससे भी इनकार किया।
बीते साल सितंबर में जब कनाडा की ट्रूडो सरकार अपनी आर्थिक नीतियों को लेकर घिरी, तब पीएम ने कार्नी को लिबरल पार्टी के आर्थिक विकास की टास्क फोर्स का प्रमुख बनाया। इसके बाद जब कनाडा की वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने ट्रूडो कैबिनेट से इस्तीफा दिया, तब भी कार्नी के यह पद लेने की अटकलें लगी थीं।
मार्क कार्नी ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र में जबरदस्त उपलब्धियां हासिल कीं। हालांकि, वे राजनीति के क्षेत्र से अंजान नहीं हैं। खुद कार्नी के मुताबिक, 2012 में कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने उन्हें वित्त मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि, कार्नी ने इसे नकार दिया था। कहा जाता है कि 2013 में जब लिबरल पार्टी के नेतृत्व के लिए चुनाव हो रहे थे, तब भी कार्नी का नाम उछला था। हालांकि, उन्होंने इससे भी इनकार किया।
बीते साल सितंबर में जब कनाडा की ट्रूडो सरकार अपनी आर्थिक नीतियों को लेकर घिरी, तब पीएम ने कार्नी को लिबरल पार्टी के आर्थिक विकास की टास्क फोर्स का प्रमुख बनाया। इसके बाद जब कनाडा की वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने ट्रूडो कैबिनेट से इस्तीफा दिया, तब भी कार्नी के यह पद लेने की अटकलें लगी थीं।
भारत पर क्या रहा है मार्क कार्नी का रुख?
मार्क कार्नी ऐसे समय में कनाडा के प्रधानमंत्री पद के लिए खड़े हुए हैं, जब जस्टिन ट्रूडो ने अपने बयानों से भारत के साथ रिश्तों को खराब करने में अहम भूमिका निभाई है। खासकर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बिना सबूतों के आरोप लगाने के बाद दोनों ट्रूडो ने दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों को सबसे निचले स्तर पर ला दिया है।
अमेरिका और कनाडा के बीच बिगड़ते संबंधों के मद्देनजर मार्क कार्नी के पास भारत से रिश्तों को बेहतर करने का जबरदस्त दबाव होगा। दरअसल, भारत का बाजार काफी बड़ा है और ऐसे में नई सरकार को अमेरिका पर आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए भारत समेत कुछ और देशों से संबंध बेहतर करने होंगे। कार्नी ने इस ओर सकारात्मकता भी दिखाई है। हाल ही में अल्बर्टा के कैलेगरी में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था...
मार्क कार्नी ऐसे समय में कनाडा के प्रधानमंत्री पद के लिए खड़े हुए हैं, जब जस्टिन ट्रूडो ने अपने बयानों से भारत के साथ रिश्तों को खराब करने में अहम भूमिका निभाई है। खासकर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बिना सबूतों के आरोप लगाने के बाद दोनों ट्रूडो ने दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों को सबसे निचले स्तर पर ला दिया है।
अमेरिका और कनाडा के बीच बिगड़ते संबंधों के मद्देनजर मार्क कार्नी के पास भारत से रिश्तों को बेहतर करने का जबरदस्त दबाव होगा। दरअसल, भारत का बाजार काफी बड़ा है और ऐसे में नई सरकार को अमेरिका पर आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए भारत समेत कुछ और देशों से संबंध बेहतर करने होंगे। कार्नी ने इस ओर सकारात्मकता भी दिखाई है। हाल ही में अल्बर्टा के कैलेगरी में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था...
उन्होंने कहा कि अगर वह कनाडा के प्रधानमंत्री चुने जाते हैं, तो वह भारत के साथ व्यापार संबंधों को फिर से स्थापित और मजबूत करेंगे। उन्होंने वर्तमान समय में दोनों देशों के रिश्तों में तनाव को स्वीकार किया और कहा कि आपसी मूल्यों और विश्वास पर आधारित मजबूत आर्थिक साझेदारी की आवश्यकता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर उनका अनुभव ब्रूक्सफील्ड एसेट मैनेजमेंट में काम करने के दौर का है। दरअसल, ब्रूक्सफील्ड का भारत में लगभग 30 अरब डॉलर का निवेश है, जिसमें रियल एस्टेट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, रिन्यूएबल एनर्जी, प्राइवेट इक्विटी, और विशेष निवेश जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इस अनुभव के जरिए कार्नी भारत की आर्थिक स्थिति और निवेश के संभावनाओं को बेहतर ढंग से समझते हैं।