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नेपाल: देउबा की सफल भारत यात्रा से बहुपक्षीय ऊर्जा सहयोग की जगी उम्मीदें

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो Published by: Harendra Chaudhary Updated Tue, 05 Apr 2022 04:50 PM IST
सार

नेपाल के पूर्व वाणिज्य सचिव पुरुषोत्तम ओझा ने अखबार काठमांडू पोस्ट से बातचीत में कहा कि पहले भारतीय अधिकारी सहयोग के ऐसे किसी समझौते की बात को खारिज कर देते थे। जबकि नेपाल ने ऐसा प्रस्ताव सबसे पहले 2003 में रखा था। उसमें कहा गया था कि जो देश जमीन से जुड़े हुए हैं, उनके बीच बिजली ट्रांसमिशन की लाइनें लगाई जानी चाहिए...

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Nepal PM Sher Bahadur Deuba recent visit to India shows energy sector is being considered a major success of Nepal
पीएम मोदी के साथ नेपाल के प्रधानमंत्री - फोटो : Agency (File Photo)
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विस्तार
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नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की ताजा भारत यात्रा के नतीजों से यहां संतोष का आलम है। खास कर ऊर्जा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच जो सहमति बनी, उसे नेपाल की एक बड़ी सफलता समझा जा रहा है। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि भारत पहले नेपाल के साथ ऊर्जा सहयोग करने को लेकर अनिच्छुक था। लेकिन देउबा की ताजा यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच ऊर्जा संबंधी बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने पर सहमति बन गई।

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देउबा की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई बातचीत के बाद दोनों देशों में बिजली के क्षेत्र में सहयोग के बारे में एक साझा दृष्टि वक्तव्य (विज़न स्टेटमेंट) जारी किया गया। इस तरह अब बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (बीबीआईएन) के बीच बिजली सहयोग का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि इस सहयोग के तहत बिजली की खरीद बिक्री की शर्तें क्या होंगी, अभी इस बारे में सभी पक्षों के बीच रजामंदी बाकी है।
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नेपाल के पूर्व वाणिज्य सचिव पुरुषोत्तम ओझा ने अखबार काठमांडू पोस्ट से बातचीत में कहा कि पहले भारतीय अधिकारी सहयोग के ऐसे किसी समझौते की बात को खारिज कर देते थे। जबकि नेपाल ने ऐसा प्रस्ताव सबसे पहले 2003 में रखा था। उसमें कहा गया था कि जो देश जमीन से जुड़े हुए हैं, उनके बीच बिजली ट्रांसमिशन की लाइनें लगाई जानी चाहिए। इसका मकसद यह है कि जमीन से घिरे देश अपने पड़ोसी देश को बिजली की बिक्री कर सकें।

ओझा ने कहा कि 2000 के दशक में नेपाल में बिजली की कमी थी। वह अपने घरेलू उपयोग के लिए भी पर्याप्त बिजली का उत्पादन नहीं कर पाता था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। अब नेपाल खपत से ज्यादा बिजली उत्पादन करने वाला देश बन गया है। ओझा ने कहा- ‘भारत अब इस क्षेत्र के भीतर बिजली सहयोग को बढ़ावा देने का इच्छुक दिख रहा है। यह सहयोग ट्रांसपोर्टेशन और कनेक्टिविटी कायम करने में होगा।’ ओझा ने कहा कि भारत संभवतः इस सहयोग से पाकिस्तान को बाहर रखना चाहता है। साथ ही वह चाहता है कि चीन इस क्षेत्र अपने कदम और अधिक ना पसार सके।

नेपाली विश्लेषकों के मुताबिक भारत के रुख में आए इस बदलाव के पीछे प्रधानमंत्री मोदी की लुक ईस्ट पॉलिसी (पूरब की तरफ देखो नीति) है। 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने इस नीति पर अमल करने की कोशिश की है। इस नीति के जरिए भारत अपने उत्तर-पूर्वी राज्यों में विकास को भी बढ़ावा देना चाहता है।

नेपाल में इस बात पर खुशी है कि अब उसके लिए बांग्लादेश और भूटान को बिजली बेचना आसान हो जाएगा। इसके अलावा भारत भी उससे बिजली खरीदने की स्थिति मे होगा। बांग्लादेश पहले ही नेपाल से 500 मेगावाट बिजली खरीदने का समझौता कर चुका है। नेपाल अपनी कारनाली पनबिजली परियोजना के जरिए उत्पादित बिजली बांग्लादेश को देगा। भूटान के साथ भी उसका द्विपक्षीय समझौता हो चुका है। लेकिन अब भारत में बनी सहमति से बहुपक्षीय व्यवस्था के तहत बिजली की बिक्री का रास्ता खुलने की उम्मीद की जा रही है।

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